देश– राम का नाम सत्य है। हिन्दू धर्म मे राम को परमपिता कहा जाता है। मान्यता है कि राम के नाम मात्र से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। राम सत्य और सर्वश्रेष्ठ हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक राम का नाम व्यक्ति के जीवन से जुड़ा है। व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति में राम का नाम लेता है। अगर कोई न भी चाहे तो उसके मुख से राम का नाम निकलता है।
कहते हैं कि तुलसी दास की राम चरित मानस ने राम के नाम को घर- घर पहुंचाया। लोग वाल्मीकि रामायण को नहीं पढ़ पाए क्योंकि यह संस्कृत भाषा मे लिखी थी। वहीं जब वाल्मीकि रामायण का तुलसी दास ने अनुवाद किया तो राम का गुंजन हर ओर होने लगा और राम के नाम से जीवन जुड़ गया।
परन्तु आज कुछ विशेष समुदाय से जुड़े लोग रामचरित मानस में उपयोग हुए शब्दों पर सवाल उठा रहे हैं। एक ओर जहां राम चरित मानस को सबसे महान धर्मिक ग्रंथ का दर्जा मिला है वहीं इसकी चौपाइयों को जाति सूचक बताया जा रहा है। लेकिन राम चरित मानस पर सवाल उठाना हिंदूओ की आस्था पर सवाल उठाने जैसा है।
कब लिखी गई राम चरित मानस-
राम चरित मानस की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में की थी। यह हिंदुओ का सबसे प्रिय ग्रंथ है इससे हिंदूओ की भावनात्मक आस्था जुड़ी हुई हैं। इसे महाकाव्य का दर्जा प्राप्त है। रामचरितमानस में 12,800 पंक्तियाँ हैं, जो 1,073 दोहों और सात कांड में विभाजित हैं। यह भक्ति आंदोलन से जन्मा है। इसे 1574 में लिखना शुरू किया गया था।
क्या वास्तव में स्त्री और दलित विरोधी है राम चरित मानस-
बीते दिनों से यह सवाल चर्चा में है। बिहार के शिक्षा मंत्री ने कहा राम चरित मानस समाज मे नफ़रत फैला रहा है। उनका कहना है कि यह ग्रन्थ समाज को बांट रहा है। तुलसी दास की चौपाई
प्रभु भल कीन्ही मोहि सिख दीन्ही।
मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।।
ढोल, गंवार शूद्र, पशु, नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
दूसरी चौपाई-
अधम जाति मैं बिद्या पाए, भयउँ जथा अहि दूध पिआए
इन दोनों प्रसंगों जिक्र करके दावा किया जा रहा है कि यह दलित और महिलाओं का विरोधी ग्रंथ है। अगर हम इसे सरसरी नजर से देखेंगे तो इसमे समस्या ही दिखेगी। लेकिन इसका अर्थ बिना जाने यदि आप राम चरित मानस पर सवाल उठाते है तो यह आपके ज्ञान का परिचय नहीं देता है। लेकिन अधम जाति मैं बिद्या पाए, भयउँ जथा अहि दूध पिआए’। इस दोहे का प्रसंग यह है रामचरितमानस के उत्तर कांड में गरुड़ और काकभुशुण्डि के बीच संवाद का है। इसमें काकभुशुण्डि मतलब कौवे से है।
इसमें काकभुशुण्डि ख़ुद स्वीकार करते हुए कहते हैं कि उन्होंने थोड़ी विद्या क्या हासिल कर ली कि अपने गुरु की अवज्ञा कर बैठे। कौवे की प्रतिष्ठा गरुड़ के सामने तो कुछ भी नहीं है। काकभुशुण्डि अपने भटकाव को स्वीकार रहे हैं और इसी क्रम में ख़ुद को अधम बताते हैं।
एक प्रसंग आता है-
विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।
राम लंका के रास्ते में हैं। बीच में समंदर पड़ता है।तीन दिनों से समंदर से रास्ता मांगते हैं, लेकिन समंदर सुनता नहीं है। राम नाराज़ हो जाते हैं और लक्ष्मण से अग्निबाण निकालने का आदेश देते हैं । राम समंदर को सुखाने की हद तक नाराज़ हो जाते हैं। राम इसी ग़ुस्से में कहते हैं-अग्निबाण छूटने से पहले ही समंदर राम के सामने प्रकट होता है और कहता है, ‘प्रभु हम तो जड़ हैं। प्रार्थना समझ में नहीं आती है। समंदर इसी प्रसंग में राम से कहता है- ‘ढोल, गंवार शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी। यह चौपाई किसी व्यक्ति विशेष से नहीं जुड़ी है इसमे समुद्र अपनी यथा स्थिति को प्रभु श्री राम में समाने बयां कर रहा है और ताड़ना का अर्थ यहां मोक्ष से है।
जानें क्या थी राम के लिए नारी और दलित-
यदि हम प्रभु श्री राम की बात करें तो राम ने सर्वस्त्र जनता को समान भाव से देखा। उनके लिए स्त्री, दलित और समाज मे रहने वाला प्रत्येक प्राणी समान है। नारी उनके लिए माता समान रही है। राम ने किसी को ऊंच नीच के भाव से नहीं देखा। उन्होंने प्रेम पूर्वक सवरी की जूठे बेर खाए और केवट को ह्रदय से लगाया। राम न तो नारी विरोधी थे और न दलित क्योंकि राम सत्य थे। जिनका कर्तव्य जनता को हित और सभी को सुखी रखना था।