देश – लोकसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। राजनीतिक दल सियासी ताना बाना बुनने में जुटे हैं। जातियों के जाल फेंके जाने लगे हैं क्योंकि भारत में राजनीति का मुख्य तमगा जातियां हैं। वहीं अब ताज्जुब की बात यह है कि जहां सभी दल पिछड़ी जाति की राजनीति करते हैं वहीं बिहार में कांग्रेस ने अगड़ी जातियों की राजनीति शुरू की है।
सूत्रों से मिली सूचना के आधार पर अगड़ी जाति की जनता को लुभाने के लिए अलग-अलग जिलों में काम शुरू कर दिया है। कांग्रेस का बिहार में राजनीति का केंद्र 2 भूमिहार और 8 ब्राह्मण और 6 राजपूत बिरादरी हैं। इसके आलावा कार्यकर्ता मुस्लिम वोट बैंक को भी साधने की कवायद में जुटे हुए हैं।
जानकारों का कहना है – कांग्रेस राजनीति में पुनः अपनी धाक बनाना चाहती है बिहार में कांग्रेस की लोकप्रियता खत्म हुई है जनता कांग्रेस की नीतियों से असंतुष्ट है अब ऐसे में कांग्रेस अपनी बिहार की कड़ी मजबूत करने के लिए अगड़ी जाति के वोट बैंक को अपनी ओर करने की कवायद में लग गई है। हालाकि कांग्रेस नेताओं का कहना है कि हमनें सिर्फ अपनी रणनीति में बदलाव किया है हमारी पार्टी जाति की राजनीति नहीं कर रही है अगर हर जिले में जिला अध्यक्ष नियुक्त किया गया है और उसकी जाति वहां से सम्बन्धित है तो यह महज एक संजोग है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ –
राजनीतिक विशेषज्ञ का मानना है यह कोई नई बात नहीं है यदि बिहार में कांग्रेस अगड़ी जाति पर ध्यान केंद्रित करती हो तो यह उनका पुराना ताना-बाना है कांग्रेस का बिहार में नेतृत्व अगड़ी जातियों द्वारा ही किया गया है। बिहार के मुख्यमंत्रियों में देखें तो जगन्नाथ मिश्र, एसएन सिन्हा, भागवत झा आज़ाद और बिंदेश्वरी दुबे सभी अगड़ी जाति के हैं। समय बदला और कांग्रेस अपने पुराने वोट बैंक से दूर चली गई अब कांग्रेस पुनः उसे प्राप्त करने और बिहार में अपनी धाक जमाने की कोशिश में जुटी हुई है।
एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं- पिछड़ी जातियों पर सभी का ध्यान है लेकिन अगड़ी जाति की कोई बात नहीं कर रहा है प्रत्येक व्यक्ति को कांग्रेस अब अपने साथ लेकर चलना चाहती है कांग्रेस अगड़ी जाति पर ध्यान केंद्रित कर रही है इसका मूल कारण अपने पुराने वोट बैंक को पुनः हासिल करना। हालाकि अगड़ी जाति की राजनीति कांग्रेस द्वारा तब ही शुरू हो गई जब मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।