राजनीति: बिहार की राजनीती को समझना आसान नहीं है। यहाँ कब क्या बदलाव आ जाए कोई नहीं जानता। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो अभी तक भाजपा का बखान करते थे दल बदलतेही ही भाजपा विरोधी बन गए हैं। वर्तमान में नीतीश कुमार की छवि विपक्ष को एकजुट करने वाले पुल के रूप में विकसित हुई है। वही अब नीतीश की चुप्पी ने हर किसी को परेशान कर दिया है। काफी दिनों से नीतीश कुमार मौन धारण किये हुए राजनीति कर रहे हैं। हालांकि यह बात सभी जानते हैं कि नीतीश कुमार बहुत अधिक बोलने वाले नेता नहीं हैं लेकिन वह जब सन्न ने चुप्पी साधते हैं तो बिहार में बड़ा बदलाव भी देखने को मिलता है।
नीतीश की चुप्पी ने सोशल मीडिया पर हंगामा काट रखा है। कई लोग कह रहे हैं कि नीतीश कुमार पुनः पलटी मारने को हैं तो कई लोग कह रहे हैं कि नीतीश कुमार विपक्ष को नया आधार देने की योजना बना रहे हैं। बीजेपी नेताओं का दावा है कि अगर अब नीतीश कुमार भाजपा की ओर झुकाव दिखाते हैं तब भी उन्हें भाजपा परिवार द्वारा स्वीकार नहीं किया जाएगा। लोगों के अनुमान के बीच नीतीश के करीबियों ने दावा क्या है कि जो भी बातें हो रही हैं उनमे कोई दम नहीं है क्योंकि नीतीश कुमार क्या करने वाले हैं इस बात का पता कोई पहले से नहीं लगा सकता।
उन्होंने आगे कहा – नीतीश कुमार शांत स्वाभाव के व्यक्ति हैं वह उग्र होकर कोई भी निर्णय नहीं लेते वह क्या करने वाले हैं यह तब पता चलता है जब वह अपना निर्णय लेकर उसपर काम शुरू कर देते हैं। नीतीश पहले से भले अपनी बात सभी से नहीं जाहिर करते लेकिन उनका यह स्वाभाव उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता है। क्योंकि वह सोच समझ कर निर्णय लेते हैं और उसपर बाद में अडिग रहते हैं।
क्या है नीतीश की असहजता में –
राजनीति के जानकारों का कहना है नीतीश कुमार भले ही कुछ बोलते नहीं है। लेकिन जब भी वह असहज हुए हैं हमने बड़ा बदलाव देखा है। बीते वर्ष जब भाजपा के नेताओं द्वारा नीतीश की आलोचना हुई तो नीतीश ने चुप्पी साधी वह असहज हुए और उन्होंने भाजपा को अलविदा कहा व महागठबंधन की सरकार बना ली। वही अब नीतीश जो विपक्ष को एकजुट करने के सूत्रधार बनें हैं क्या उनको विपक्ष के बीच वह सम्मान मिल रहा है या उनके साथ कम का व्यवहार उन्हें विपक्ष एकता में असहज कर रहा है जिसके चलते उन्होंने पुनः चुप्पी साध कर किसी बड़े बदलाव की तरफ इशारा किया है।
क्योंकि नीतीश कुमार ही वह कड़ी हैं जिसने विपक्ष को एकजुट करने की नीव रखी वह अलग -अलग जगह नेताओं से मिले। नेताओं को यह विश्वास दिलाया की यदि बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकना है तो विपक्ष को एकजुट होना होगा। एकता की ताकत बीजेपी को आसानी से धूल चटा सकती है। नीतीश ने भले यह साप कर दिया है कि उन्हें पद की चाहत नहीं है वह प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते हैं लेकिन नीतीश समर्थक यह बार-बार कह रहे हैं कि नीतीश विपक्ष को जोड़ने की मजबूत कड़ी हैं नीतीश कुमार को विपक्ष में एक बड़ा पद मिलना चाहिए।
विपक्ष एकता की जब मीटिंग हुई तो कई दल एक साथ आए और उन्होंने एकता का संकल्प लिया लेकिन मीटिंग में समन्वय नहीं बैठा और केजरीवाल ने स्वयं को विपक्ष एकता से अलग कर लिया। अब लोगों को नीतीश के निर्णय का इंतजार है कि क्या नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करेंगे या विपक्ष को एक नई राजनीति के दर्शन करवाएंगे।