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धर्म नगरी काशी में सोमवार को पितृपक्ष की मातृनवमी तिथि पर गंगा तट पर अनोखा श्राद्ध किया गया। बाढ़ के पानी में डूबे दशाश्‍वमेध घाट के पास बजड़े पर बनी वेदी पर 5500 उन अजन्‍मी बेटियों के मोक्ष के लिए पिंडदान किया गया जिन्‍हें उन्‍हीं के माता-पिता ने जन्‍म लेने से पहले ही मार दिया।

धार्मिक मान्‍यता है कि पितरों के श्राद्ध और सम्‍मान के पर्व पितृपक्ष के 16 दिनों में पितृगण अपने परिजनों के पास विविध रुपों में आते हैं और अपने लिए मोक्ष की कामना करते हैं। श्राद्ध करने के लिए देश के हर हिस्‍से से बड़ी संख्‍या में लोगों का बनारस आना जारी है। इसी क्रम में मातृनवमी पर कन्‍या भ्रूण हत्‍या रोकने के लिए लोगों को जागृत करने के मकसद से अजन्‍मी बेटियों के श्राद्ध की अनूठी पहल सामाजिक संस्‍था ‘आगमन’ ने की। यह संस्‍था कई साल से बनारस में ‘बेटी बचाओ’ अभियान के तहत कन्‍या भ्रूण हत्‍या रोकने के लिए जागरुकता फैलाने में जुटी है।

विधि विधान से पूजन कर मोक्ष की कामना
आचार्य दिनेश शंकर दूबे के साथ कर्मकांडी ब्राह्मण सीतराम पाठक, नितिन गोस्‍वामी, उमेश तिवारी व बजरंगी पांडेय ने 5500 पिंड निर्माण कर गंगा की मिट्टी से बनी पांच अलग-अलग वेदियों पर वैदिक मंत्रों से आह्वान कर अजन्‍मी बेटियों को प्रतीक स्‍वरूप स्‍थापित किया। पिंडों का विधि विधान से पूजन कर मोक्ष की कामना की गई। इसके बाद गंगा की धारा में पिंड विसर्जन और जल तर्पण के उपरान्‍त बाह्मण भोज के साथ श्राद्ध कर्म पूरा हुआ। यजमान की भूमिका ‘आगमन’ के संस्‍थापक सचिव डॉ. संतोष ओझा ने निभाई। इस अनूठे आयोजन के साक्षी समाज के अलग-अलग वर्ग के लोग बने जिन्‍होंने अजन्‍मी बेटियों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

‘गर्भपात है हत्‍या’
अब तक 26 हजार बेटियों के श्राद्धकर्ता डॉ. संतोष ओझा का कहना है कि आमतौर पर गर्भपात को महज एक ऑपरेशन माना जाता है, लेकिन स्‍वार्थ में डूबे परिजन यह भूल जाते हैं कि भ्रूण में प्राण-वायु के संचार के बाद किया गया गर्भपात जीव हत्‍या है। संस्‍था का स्‍पष्‍ट विचार है कि अभागी बेटियों को जीने का अधिकार तो नहीं नहीं मिल सका लेकिन उन्‍हें मोक्ष तो मिलना ही चाहिए।