भगवान सूर्य देव को सम्पूर्ण रूप से समर्पित खास त्योहार कहलाता है छठ. यह पर्व पूरी स्वच्छता के साथ मनाया जाता है और इस व्रत को पुरुष और स्त्री दोनों ही सामान रूप से धारण करते हैं. यह पावन पर्व पुरे चार (4) दिनों तक चलता है. व्रत के पहले दिन यानि कि कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए होता है, जिसमें सारे वर्ती आत्म सुद्धि के हेतु केवल शुद्ध आहार का ही सेवन करते हैं. वहीं, कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन खरना रखा जाता है, जिसमें शरीर की शुद्धि के बाद पूजा करके सायं काल में ही गुड़ की खीर और पुड़ी बनाकर छठी माता को भोग लगाया जाता है. सबसे पहले इस खीर को प्रसाद के तौर पर वर्तियों को खिलाया जाता है और फिर ब्राम्हणों और परिवार के लोगो में बांटा जाता है.
बता दें कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन घर में पवित्रता को ध्यान में रखकर पकवान बनाये जाते है और सूर्यास्त होते ही सारे पकवानों को बड़े-बड़े बांस के डालों में भरकर निकट घाट पर ले जाया जाता है. वहीं, नदियों में ईख का घर बनाकर उनपर दीप भी जलाया जाता हैं. व्रत करने वाले सारे स्त्री और पुरुष जल में स्नान कर इन डालों को अपने हाथों में उठाकर षष्ठी माता और भगवान सूर्य को अर्ग देते है. यही नहीं, सूर्यास्त के पश्चात अपने-अपने घर वापस आकर सह-परिवार रात भर सूर्य देवता का जागरण किया जाता है. जान लें कि इस जागरण में छठ के गीतों का अपना एक अलग ही महत्व होता है.
दूसरी ओर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सूर्योदय से पहले ब्रम्ह मुहूर्त में सायं काल की भाती डालों में पकवान, नारियल और फलदान रख नदी के तट पर सारे वर्ती एक जुट हो जाते हैं. इस दिन व्रत करने वाले स्त्रियों और पुरुषों को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना होता है. इस खास दिन छठ व्रत की कथा सुनी जाती है और कथा के बाद लोगों के बीच प्रसाद वितरण किया जाता है. सारे वर्ती इसी दिन प्रसाद ग्रहण कर पारण करते हैं.
छठ पर्व से जुड़ी पौराणिक परंपरा
इस पर्व से जुड़ी एक पौराणिक परंपरा भी है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं और वह यह है कि जब छठ मईया से मांगी हुई मुराद पूरी हो जाती है, तब सारे वर्ती सूर्य भगवान की दंडवत आराधना करते है. अब आपके दिमाग में यह सवाल ज़रूर आ रहा होगा कि यह दंडवत आराधाना क्या होती है? दरअसल, सूर्य को दंडवत प्रणाम करने की विधि काफी कठिन होती है.
दंडवत प्रणाम की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है –
पहले सीधे खड़े होकर सूर्य देव को सूर्य नमस्कार किया जाता है और उसके पश्चात् पेट के बल जमीन पर लेटकर अपने दाहिने हाथ से ज़मीन पर एक रेखा खिंची जाती है. इस प्रक्रिया को घाट पर पहुँचने तक बार-बार दोहराया जाता है. बता दें कि इस प्रक्रिया से पहले सारे वर्ती अपने घरों के कुल देवता की आराधना करते है.
छठ पूजा से जुड़े कुछ खास नियम –
• छठ पर्व में पुरे चार दिन शुद्ध कपड़े पहने के नियम हैं और इन कपड़ो में सिलाई ना होने का पूर्ण रूप से खास ध्यान रखा जाता है. जहां महिलाएं साड़ी पहनती हैं तो वहीं, पुरुष धोती धारण करते हैं.
• त्योहार के पुरे चार दिन व्रत करने वाले वर्तियों का जमीन पर सोना ज़रूरी होता है. कम्बल या फिर चटाई का प्रयोग करना उनके इच्छा पर निर्भर करता है.
• इन खास दिन प्याज और लहसुन भी वर्जित होता है.
• वहीं, पूजा के बाद अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राम्हणों को भोजन कराने का नियम है.
• बता दें कि इस पावन पर्व में वर्तियों के पास बांस के सूप का होना बहुत अनिवार्य माना जाता है.
• प्रसाद के तौर पर गेहूँ और गुड़ के आटों से बना ठेकुआ और फलों में केले प्रमुख होते हैं.
• यही नहीं, अर्घ्य देते वक्त सारी वर्तियों के पास गन्ना होना बहुत आवश्यक माना जाता है. जान लें कि गन्ने से भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
छठ पर्व का खास मंत्र –
दोस्तों अगर आप सही रूप से बताए जा रहे मंत्रों का जाप करेंगे तो आपकी मनोकामना अवश्य से पूरी होगी और यह मंत्र कुछ इस प्रकार है –
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं. अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्धमाल्याक्षतै युतम् || साभार: वेद संसार डॉट कॉम