लखनऊ।पूर्वांचल के प्रसिद्ध सूर्य उपासना के महापर्व छठ को लेकर तैयारियां शुरू हो गईं हैं। मंगलवार को छठ घाट की सफाई के साथ ही छठ मइया के प्रतीक सुसुबिता को बनाने व रंगरोगन का काम शुरू हो गया। राजधानी के लक्ष्मण मेला घाट पर होने वाले मुख्य आयोजन को लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही है।
अखिल भारतीय भोजपुरी समाज की ओर से पिछले 36 साल से होने वाले आयोजन में पहली बार सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होंगे। समाज के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने बताया कि चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत नहायखाय से 18 से होगी। 19 को छोटी छठ और मुख्य पर्व 20 और 21 नवंबर को होगा। कोरोना संक्रमण के चलते केवल पूजा होगी। एक व्रती के साथ सिर्फ एक व्यक्ति को ही सैनिटाइजेशन के बाद घाट पर जाने दिया जाएगा।
सुरक्षा के साथ ही जिला प्रशासन आयोजन पर पैनी नजर रखेगा। किसी भी तरह का सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होगा। उन्होंने सभी से अपने घरों के पास पार्क में पूजन की अपील की है।
यहां भी होगी पूजा
मनकामेश्वर उपवन घाट पर 20 और 21 नवंबर को छठ पूजा होगी। महंत देव्या गिरि के सानिध्य में सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। ओम ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष धनंजय द्विवेदी के संयोजन में खदरा के शिव मंदिर घाट पर पूजन होगा। पक्कापुल स्थित छठ घाट, श्री खाटू श्याम मंदिर घाट, पंचमुखी हनुमान मंदिर घाट के अलावा महानगर पीएसी 35वीं बटालियन, मवैया रेलवे काॅलोनी, कृष्णानगर के मानसनगर स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर परिसर के साथ ही छोटी व बड़ी नहर के अलावा हर इलाके में घरों में पूजा होगी।
बाजारों में दिखने लगी रौनक
सूर्य उपासना के इस पर्व को लेकर बाजार में भी तैयारियां शूरू हो गई हैं। पूजन में मौसमी फल सरीफा केला, अमरुद, सेब, अनन्नास, सूथनी हल्दी, अदरक, सिंघाड़ा, सूप व गन्ने का प्रयोग होता है। बांस की टोकरी में व्रती के पति या बेटा बांस की टोकरी में 6, 12-, व 24 की संख्या में फल रखकर घाट तक जाते हैं। छठ गीतों के साथ परिवार के लोग भी व्रती के साथ जाते हैं। 36 घंटे के निर्जला व्रत का समापन 21 को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर होगा। कुछ स्थानों पर इसे डाला छठ भी कहते है। आलमबाग, निशातगंज, इंदिरानगर व राजाजपुरम सहित सभी बाजारों में दुकानदार तैयारियों में जुटे हैं।
कब-क्या होगा
18 को नहाय खाय: मानस नगर की कलावती ने बताया कि इस दिन व्रती महिलाएं पूजन में प्रयोग होने वाली सामग्री की खरीदारी के साथ सफाई करती हैं। रसोई पूरी तरह से साफ की जाती है। दिनभर व्रत रहती हैं और शाम को लौकी की सब्जी व रोटी का सेवन करती हैं।
19 को रसियाव व छोटी छठ: पूर्वांचल की रंजना सिंह ने बताया कि इस दिन ठेकुआ बनाया जाता है। पूजन की पूरी तैयारी की जाती है। इसे छोटी छठ व खरना भी कहते हैं। कुछ महिलाएं इस दिन भी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर उपासना करती हैं। शाम को व्रती साठी के चावल व गुड़ की बनी खीर रसियाव का सेवन करके 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू करती हैं।
20 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य: उदय सिंह ने बताया कि इस दिन मुख्य पर्व होता है। व्रती नदी व तालाब तक जाकर पानी में खड़ी होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हैं। छठ गीतों से गुंजायमान वातावरण के बीच पूजन हाेता है। छठ मइया के प्रतीक सुसुबिता के पास बैठकर कलश स्थापित कर पूजन किया जाता है।
21 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य: मानसनगर के अखिलेश सिंह ने बताया कि उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए भोर में ही व्रती उसी स्थान पर फिर जाती हैं और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देती हैं। छठ गीतों के साथ घाट से घर आती हैं। प्रसाद वितरण के बाद ही खुद व्रत तोड़ती हैं। इसी के साथ व्रत का समापन होता है।
ऋगवेद में लिखा है सूर्य उपासना का महत्व
आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि आरोग्य के देवता सूर्य की पूजा सूर्य षष्ठी को होती है। सूर्य देव की उपासना के इस पर्व के महत्व के बारे में ऋगवेद में भी बताया गया है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्र और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर से होती हुई सूर्य की किरणें विशेष प्रभाव धारण करके अमावस्या के छठें दिन पृथ्वी पर आती हैं । इसीलिए छठ को सूर्य की बहन भी कहा जाता है। प्रकृति,जल व वायु का पूजन करके उनसे समृद्धि की कामना की जाती है।