इन दिनों भारत सहित पूरी दुनिया कोरोना वायरसमहामारी से जूझ रही है। दुनिया के लाखों लोगों को कोरोना महामारी ने असमय ही अपना ग्रास बना लिया। इस कोरोना वायरस के बारे में सदियों पहले ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिंदू धर्म के एक पावन ग्रंथ रामायण में लिख दिया था। श्रीरामचरित मानस में कोरोना महामारी का कारण और इस वैश्विक बीमारी के लक्ष्य के बारे में भी बताया गया है। श्रीरामचरित्रमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने बताया है कि कोरोना नामक महामारी का मूल स्रोत चमगादड़ पक्षी होगा और इसी के साथ ही इसमें ये भी लिखा है कि इस बीमारी को पहचाने के मुख्य लक्ष्ण क्या होंगे। तो चलिए जानते हैं :
तुलसीदास जी लिखते हैं-
दोहा– सब कै निंदा जे जड़ करहीं. ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥
सुनहु तात अब मानस रोगा. जिन्ह ते दु:ख पावहिं सब लोगा॥
भावार्थ– कोरोना महामारी के लक्षणों के बारे में उन्होंने लिखा है कि इस बीमारी में कफ़ और खांसी बढ़ जाएगी और फेफड़ों में एक जाल या आवरण उत्पन्न होगा या कहें lungs congestion जैसे लक्षण उत्पन्न होने लगेंगे।
दोहा– मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला. तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा।।
भावार्थ– इस दोहे में गोस्वामी जी कहते हैं कि इन सब के मिलने से “सन्निपात” या टाइफाइड रोग होगा जिससे लोग बहुत दुःख पाएंगे-
दोहा– प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई. उपजइ सन्यपात दुखदाई..
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना. ते सब सूल नाम को जाना..
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका.
कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका..
आगे तुलसीदास जी लिखते हैं-
दोहा- एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि.
पीड़हिं संतत जीव कहुं सो किमि लहै समाधि॥
दोहा- नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान.
भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान
इन सब के परिणाम स्वरूप क्या होगा गोस्वामी जी लिखते हैं-
दोहा- एहि बिधि सकल जीव जग रोगी।। सोक हरष भय प्रीति बियोगी॥
मानस रोग कछुक मैं गाए।। हहिं सब कें लखि बिरलेन्ह पाए॥
इस प्रकार सम्पूर्ण विश्व के जीव रोग ग्रस्त हो जाएंगे, जो शोक, हर्ष, भय, प्रीति और अपनों के वियोग के कारण और दुःख में डूब जाएंगे.
इस महामारी से मुक्ति कैसे मिलेगी- जब इस बीमारी के कारण लोग मरने लगेंगे तथा भविष्य में ऐसी अनेकों बीमारियां आने को होंगी तब आपको कैसे शान्ति मिल पाएगी, इसका उत्तर भी श्री राम चरित्र मानस में ही मिलेगा.
इस विषय पर गोस्वामी जी लिखते हैं-
राम कृपां नासहिं सब रोगा. जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा. संजम यह न बिषय कै आसा॥
भावार्थ-यदि श्री रामजी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएँ। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करे, यही संयम (परहेज) हो॥
रघुपति भगति सजीवन मूरी. अनूपान श्रद्धा मति पूरी॥
एहि बिधि भलेहिं सो रोग नसाहीं. नाहिं त जतन कोटि नहिं जाहीं॥
भावार्थ-श्री रघुनाथजी की भक्ति संजीवनी जड़ी है। श्रद्धा से पूर्ण बुद्धि ही अनुपान (दवा के साथ लिया जाने वाला मधु आदि) है। इस प्रकार का संयोग हो तो वे रोग भले ही नष्ट हो जाएँ, नहीं तो करोड़ों प्रयत्नों से भी नहीं जाते।