लखनऊ। काल भैरव की पूजा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन सात दिसंबर सोमवार को काल भैरव जयंती या कालभैरव अष्टमी मनाई जाएगी। इस दिन शिव के पांचवे रुद्र अवतार माने जाने वाले कालभैरव की पूजा-अर्चना साधक विधि-विधान से करते हैं। सात दिसंबर को शाम 6:47 से 8 दिसंबर को शाम 5:17 बजे तक इसका मान रहेगा।
आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि काल भैरव भगवान शिव का रौद्र, विकराल एवं प्रचंड स्वरूप है। तंत्र साधना के देवता काल भैरव की पूजा रात में की जाती है। इसलिए अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह दिन तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। काल भैरव को दंड देने वाला देवता भी कहा जाता है इसलिए उनका हथियार दंड है। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भी उनकी विशेष कृषा प्राप्त होती है। उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए साधकों को भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति चौकी पर गंगाजल छिड़ककर स्थापित करना चाहिए। इसके बाद काल भैरव को काले, तिल, उड़द और सरसोंं का तेल अर्पित करना उत्तम होता है। भैरव जी का वाहन श्वान (कुत्ता ) है। भैरव के वाहन कुत्ते को पुआ खिलाना चाहिए। भैरव जी को काशी का कोतवाल भी माना जाता है। भैरव की पूजा से शनि, राहु व केतु ग्रह भी शान्त हो जाते है। बुरे प्रभाव और शत्रु भय का नाश होता है।
ऐसे करें पूजन
आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि दान करने से इस दिन आपके घर में आने वाली व्याधियों दूर होती हैं। काल भैरव सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए आपकी मदद करते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से देवताओं की व्याधियों भी काल भैरव दूर करते हैं। आमजन के अंदर के मानसिक तनाव को दूर कर सात्विक विचार धारा का सूत्रपात होता है। हालांकि काल भैरव की मूर्ति घर में स्थापित करना तर्कसंगत नहीं लगता, लेकिन शास्त्रों में पूजन का विधान दिया गया है, आप मंदिर में भी पूजन कर सकते हैं।
पूजन के दौरान स्थापित कलश में गंगाजल डालकर पूजन की समाप्ति पर उसका पूरे घर में छिड़काव करना चाहिए। शेष जल को सूर्य देव को अर्पित कर प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भैरवनाथ हमारे घर समाज और देश पर आने वाली व्याधियों दूर हो जाएं। वफादारी के प्रतीक स्वान को पुआ खिलाने से उसके अंदर भी आपके प्रति वफादारी बढ़ती है। आपके अंदर भी एक एक नई ऊर्जा का संचार होता है।