img

[object Promise]

इन दिनों पूरी दुनिया कोरोना नाम के वायरस से डरी हुई है। भारत सहित दुनिया के कई देशों में लॉक डाउन है। लोगों की जिंदगी सिमटकर घर के दहलीज के अंदर तक रह गई है। कलि-युग जिसे कल कारखानों का भी युग कहा जाता है कोविड-19 ने जैसे उसकी विदाई कर दी है। कल-कल-कारखाने बंद पड़े हैं, उन पर बड़े-बड़े ताले लटके हुए हैं, जो बता रहे हैं कि सब लॉकडाउन है। दिन रात कारखानों की चिमनियों से उगलता धु्आं भी ऐसे विलीन हो चुका है जैसे चूल्हे की आंच की अब जरूरत ही नहीं है।

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

मजदूर अपनी जमीन को लौट चुके हैं या लौटने के लिए बेचैन हैं जैसे उन्हें मोक्ष मिल गया हो, उनकी साधना पूरी हो गई हो और परम ज्ञान मिल गया हो। कोई भौतिक चाह नहीं है, बस अपने जीवन में संतुष्ट होकर परिवार के साथ राम नाम भजना ही जीवन का ध्येय हो। ऐसा लग रहा है जैसे कोविड-19 के साथ साल 2020 में सतयुग का आगमन हुआ है।

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

लोभ का अंत, दूसरे का धन कंकड़ समान

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

चंद महीने पहले की बात कर लीजिए अगर सड़क पर 50 रुपये का नोट गिरा मिल जाता तो लोग कनखी निगाहों से यह देखते कि कोई देख तो नहीं रहा है और चुपके से उठाकर जेब में डालकर यूं मुस्कुराते जैसे कोई दबा खजाना मिल गया है। लेकिन कोविड-19 ने लोगों के मन से तो जैसे लोभ का अंत ही कर दिया है। अगर रास्ते पर 2000 का नोट भी गिरा मिले तो लोग उसे देखकर उठाने की कोशिश नहीं करते बल्कि, देखकर ऐसे भागते हैं जैसे बम देख लिया हो। लोग पराए धन को कंकड़ मानकर उससे दूरी बना ले रहे हैं। इसका उदाहण दिल्ली के लॉरेंस रोड के घर पास देखने को मिला जहां एक महिला के पांच सौ के तीन नोट गलती से बालकनी से नीचे गिर गए। किसी ने उसे उठाने का साहस नहीं दिखाया। जब पुलिस आई तब जाकर पूरा मामला सामने आया। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि ऐसा सतयुग में होता था कि लोग दूसरे के धन को कंकड़ समान समझते थे और उसे छूते तक नहीं थे।

शुचिता की प्राचीन पंरापरा का आगमन

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

आज की पीढ़ी जिनका ग्रामीण परिवेश से संपर्क नहीं रहा है वह शायद ही जानते होंगे कि पुराने जमाने में कोई भी अतिथि, मित्र कहीं से आता था तो घर में प्रवेश से पहले उसके हाथ-पैर-मुंह धुलवाए जाते थे। इसके लिए घर के बाहर ही एक छोटी सी चौकी होती थी। जिस पर खड़े होकर अतिथि पवित्र होते थे। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र से हाथ मुंह को पोंछकर अतिथि घर में प्रवेश करते थे। कोविड-19 के आगमन से वही प्राचीन व्यवस्था फिर से चलन में आ गई है। एक तो लॉक डाउन के कारण कोई किसी के घर नहीं जाता है। अगर किसी कारणवश को पड़ोसी घर आ जाए तो पहले उन्हें सैनिटाइजर या हैंडवॉश थमा दिया जाता है। इतना ही नहीं जो लोग पहले भोजन के समय भी शायद ही हाथ धोते थे वह भी दिन में कई बार हैंडवॉश कर लेते हैं।

लोग त्याग रहे मांसाहार, अपना रहे कंद मूल और फलाहार

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

कोराना को लेकर एक अफवाह यह फैली कि मांसाहर से कोरोना का खतरा अधिक रहता है। इस वजह से लोग इन दिनों शाकाहर पर अधिक भरोसा करने लगे हैं। कई लोग जो हर हफ्ते मांस-मछली खाए बिना नहीं रह सकते थे। वह भी शाकाहारी हो गए हैं। हिंदू धर्म में मांसाहार को तामसिक भोजन कहा गया है और इसे आसुरी भोजन की श्रेणी में रखा गया है। मनुष्य के लिए शास्त्रों में कहा गया है कि शाकाहारी भोजन करें कंद-मूल का सेवन करें इससे शरीर भी स्वस्थ रहता है और संस्कार भी बढता है। आजकल कोरोना के भय से लोग इसी नीति को अपनाने में लगे हैं।

लोगों में परोपकार की भावना भी बढ़ी

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

पुण्याय पापाय परपीडनम्महर्षि व्यासजी ने कहा है कि 18 पुराणों का मूल यह है कि परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नहीं और दूसरों को पीड़ा देने से बड़ा कोई पाप नहीं है। कोराना से विश्व भर में व्याप्त संकट के बीच लोगों में परोपकार की भावना भी बढ़ी है। लोग एक-दूसरे की मदद करने के लिए भी आगे आए हैं। सरकारी और सामाजिक संस्थाओं के अलाव व्यक्तिगत तौर पर भी लोग आस-पास के जरूरतमंदों की सहायता कर रहे हैं। इस आपदा की घड़ी में किन्नरों ने भी जरूरतमंदों की ओर मदद का हाथ बढ़ाया है। कलियुग के बारे में पुराणों में लिखा है कि इस समय में लोग एक-दूसरे से छल करेंगे, सभी स्वार्थी हो जाएंगे। लेकिन कोरोना संकट के बीच लोग जिस तरह से एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं वह सतयुग के गुण को दिखा रहा है।

राम नाम कीर्तन भजन

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

कलियुग के पैर पसारने तक लोग सुबह शाम राम नाम का जप किया करते थे। पवित्र भाव से लोग घर में बैठकर राम नाम का कीर्तन भजन किया करते थे। वर्तमान समय में जब लॉक डाउन लग हुआ है तब घर में बैठे लोग सुबह शाम इस आपदा से निकलने के लिए भगवान का ध्यान कर रहे हैं। दूरदर्शन द्वारा रामायण और महाभारत का प्रसारण होने से लोगों में फिर से रामायण और महाभारत के प्रति रुचि बढ़ी है लोग अध्यात्म की ओर रुचि लेने लगे हैं।

गंगा-यमुना की जलधारा फिर से निर्मल हो गई

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

विष्णु पुराण में कहा गया है कि कलियुग में गंगा भी पृथ्वी से स्वर्ग को चली जाएंगी। कोरोना संकट से पूर्व गंगा यमुना की धारा देखकर यह पूरी तरह से सच जान पड़ता था कि गंगा अब वह गंगा कहां रहीं क्योंकि उसका जल दूषित हो रहा था। लेकिन कोरोना के कारण जब लोग घरों में बंद हैं तो गंगा, यमुना की जलधारा फिर से निर्मल हो गई है, मानो सतयुग की गंगा हो गई है। पशु पक्षी भी भय मुक्त होकर विचरण कर रहे हैं।

सतयुग में राजा- रंक का भेद नहीं रहता

[object Promise]
कोरोना से कलि-युग खत्म हो रहा, सतयुग का आगमन हुआ ?

सतयुग का एक और गुण पुराणों में बताया गया है। इस युग में राज रंक का भेद नहीं रहता है। सभी लोग अपना काम स्वयं करते हैं। राजा भी प्रजा के समान ही अपने कर्तव्य और दैनिक कार्यों को करते हैं। कोरोना ने भी आज भेद-भाव मिटा दिया है। पुराणों में राजा पृथु का जिक्र आता है जिनकी यह संपूर्ण पृथ्वी थी, उन्हीं के नाम पर इस समूची धरती को पृथ्वी कहा गया है। उन्होंने स्वयं अपने हाथों से खेती किया उन्हें से कृषि परंपरा का आरंभ भी हुआ माना जाता है। आज कोविड -19 यानी कोरोना के कारण अमीर परिवार और गरीब परिवार का भेद भाव मिट गया है। गरीब-अमीर सभी लोग अपना सारा काम खुद ही कर रहे हैं। (साभार-नवभारतटाइम्स.कॉम)