छठ का महापर्व चल रहा है। आज इसका तीसरा दिन यानी मुख्य दिन है। छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी मनाया जाता है। इस दिन को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ पूजा दिवाली के 6 दिन बाद मनाई जाती है। इसे खासतौर से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करने का विधान है। इसे लोकपर्व भी कहा जाता है। इस पर्व की रौनक बिहार-झारखंड में मुख्यत: देखने को मिलती है। आइए जानते हैं सूर्यदेव और छठी मैय्या के पूजा का विधान।
सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान:
छठ पूजा के दौरान सूर्यदेव की आराधना की जाती है। साथ ही इन्हें उगते और डूबते समय अर्घ्य भी दिया जाता है। मान्यता है कि सूर्य ही एक मात्र ऐसे देव हैं जो प्रत्यक्ष हैं। सूर्य ही पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार माने गए हैं। छठ पूजा के दौरान सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की पूजा का भी विधान है। छठी मैय्या की पूजा करने से वो संतानों की रक्षा करते हैं। साथ ही उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा जाता है। षष्ठी देवी को मां कात्यायनी भी कहा जाता है। नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर भी मां कात्यायनी की ही पूजा की जाती है।
यह उत्सव चार दिनों तक चलता है। यह बिहार का लोकपर्व है। यह चार दिवसीय उत्सव है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू हो जाता है। इस उत्सव का समापन कार्तिक शुक्ल की सप्तमी तिथि को किया जाता है।