कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। इस वर्ष यह चतुर्दशी 29 नवंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। विष्णु जी वैकुंठ के अधिपति हैं। ऐसे में अगर इस दिन सच्चे मन से विष्णु जी की पूजा की जाए तो व्यक्ति को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस दिन केवल विष्णु जी की ही नहीं बल्कि शिव जी की भी पूजा होती है। यह दिन भगवान शिव और विष्णु जी के मिलन को भी दर्शाता है। यही कारण है कि इस चतुर्दशी को हरिहर का मिलन भी कहा जाता है। वैकुंठ चतुर्दशी के दिन पूजा करते समय कथा जरूर पढ़नी चाहिए। आइए पढ़ते हैं वैकुंठ चतुर्दशी की कथा।
कथा के अनुसार, विष्णु जी, महादेव के दर्शन के लिए काशी नगरी आए थे। यहां पर विष्णु जी ने मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया और उसके बाद एक हजार स्वर्ण कमलों से शिव जी का पूजन करने का संकल्प किया। शिव जी ने यह देख सोचा कि क्यों न विष्णु जी की परीक्षा ली जाए। उन्होंने उन स्वर्ण कमलों में से एक कमल कम कर दिया। ऐसे में संकल्प को पूरा करने और कमल की पूर्ति करने के लिए विष्णु जी ने अपने नयन कमल भोलेनाथ को अर्पित करने का विचार किया।
विष्णु जी अपने नयन कमल अर्पित करने के लिए तैयार हुए तो शिव जी उनके समक्ष प्रकट हो गए। शिव जी ने विष्णु जी से कहा कि मेरे पास ऐसा कोई भक्त नहीं है जो ऐसा हो। फिर शिव जी ने कहा कि आज से कार्तिक मास की चतुर्दशी वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाएगा। साथ ही शिव जी ने विष्णु जी की भक्ति देख उन्हें सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया।