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डेस्क। पुराणों की माने तो भगवान सूर्यदेव एकमात्र ऐसे देवता हैं जो पंचदेवों में शामिल हैं और ग्रहों में भी इनको गिना जाता है। इन्हें ग्रहों का राजा भी बताया जाता है। सूर्यदेव के प्रभाव से ही जीवन में सुख-दुख का आना-जाना भी लगा रहता है।
ऐसा भी कहा जाता है कि सूर्यदेव अपने साथ घोड़ों के रथ पर सवार होकर निरंतर चलते ही रहते हैं। वहीं उनका रथ एक क्षण के लिए भी नहीं ठहरता। पर इस रथ को चलाता कौन हैं, इस बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं? आज हम आपको सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी के बारे में बताने जा रहे हैं।
महाभारत (Mahabharat) के अनुसार, सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी का नाम अरुण हैं और ये भगवान विष्णु के वाहन गरुड़देव के भाई हैं। बताया जाता है वो महर्षि कश्यप और विनिता की संतान हैं। कथाओं की माने तो विनिता ने अपने पति महर्षि कश्यप की सेवा कर दो महापराक्रमी पुत्रों का वरदान मांगा था और महर्षि कश्यप ने उन्हें ये वरदान दे दिया। 
समय आने पर विनिता ने दो अंडे दिए और महर्षि कश्यप ने विनिता से कहा कि “इन अंडों से तुम्हें दो पराक्रमी पुत्रों की प्राप्ति होगी।”
काफी समय बाद भी जब उन अंडों से बच्चे नहीं निकले तो उत्सुकतावश विनिता ने एक अंडे को समय से पहले ही फोड़ दिया और उस अंडे से अरुण निकले, लेकिन समय से पहले अंडा फोड़ने के कारण उनके पैर नहीं थे जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अपनी माता को सौतन की दासी बनने का श्राप दे दिया। जिसके बाद अरुण ने घोर तपस्या की और भगवान सूर्यदेव के रथ के सारथी बन गए। 
जानिए अरुण और विष्णुजी के वाहन गरुड़ में क्या संबंध है?
महाभारत के अनुसार, विनिता के दूसरे अंडे से महापराक्रमी गरुड़ का जन्म हुआ और इस तरह अरुण और गरुड़ एक ही माता-पिता की संतान हैं यानी की भाई हैं। अरुण के श्राप के कारण जब उनकी माता अपनी सौतान कद्रूी की दासी बनी तो गरुड़ ने उन्हें दासत्व से मुक्त भी करवाया। उनके पराक्रम को देखकर भगवान विष्णु ने उन्हें अपना वाहन बना लिया।