आध्यात्मिक| अक्सर जब हम शनि देव का नाम सुनते हैं तो हम कांपने लगते हैं हमारे मन मे अनेकों सवाल आते हैं। हमारा मन घबराने लगता है और इनके प्रकोप से बचने के उपाय खोजने लगता है। क्योंकि शनि को क्रूर ग्रह माना जाता है और धार्मिक ग्रन्थों के मुताबिक शनि जल्द ही प्रसन्न और रुष्ट हो जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनि को न्यायप्रिय या दंडाधिकारी के देवता की क्षेणी में रखा गया है। वहीं शनि के प्रकोप से बचने के लिए लोग कई प्रकार के उपाय भी करते हैं। कहते हैं शनि की कृपा हो तो व्यक्ति के सम्पूर्ण कष्ट नष्ट हो जाते हैं और अगर शनि आपसे रुष्ट हैं तो आपको उसका भयानक दुष्प्रभाव झेलना पड़ेगा। शनि के जन्म को लेकर हिन्दू के प्रमुख धार्मिक ग्रंथ स्कन्दपुराण में कहा गया है की राज दक्ष की एक कन्या थी संज्ञा जिसका विवाह सूर्यदेव के साथ हुआ था। सूर्यदेव का तेज इतना प्रज्वलित था की संज्ञा को चिंता होने लगी वह नित्य ही यह सोंचती की वह ऐसा क्या करे की वह सूर्य देव के इस तेज को कम कर सके। दिन बीतते गए और संज्ञा ने तीन संतान वैवस्वत मनु, यमराज, और यमुना को जन्म दिया। तब भी संज्ञा ने देखा की सूर्य देव का तेज कम नहीं हुआ।
संज्ञा ने विचार किया कि अब वह सूर्य के तप को कम करने हेतु तपस्या करेगी। लेकिन उनके मन मे यह चिंता थी की बच्चो का पालन पोषण कैसे होगा और सूर्य देव को इसकी भनक भी नहीं लगनी चाहिए। तब संज्ञा ने एक युक्ति निकाली और अपनी हमशक्ल को अपने सम्मुख खड़ा कर दिया। संज्ञा ने उसका नाम सवर्णा रखा और उसके भरोसे बच्चो को महल में छोड़कर वहां से अपने पिता के घर चली गई।
संज्ञा जब पिता के घर पहुंची तो दक्ष में उसको क्रोध में आकर कसके डाँट पाटकर लगाई जिससे संज्ञा पिता के घर से तो वापस लौट आई लेकिन सूर्यदेव के महल न जाकर वन में चली गई ओर एक घोड़ी का रूप धारण कर तपस्या में लीन हो गई। सूर्यदेव को इस बात की बिल्कुल भी भनक नहीं लगी की संज्ञा महल में नहीं है। सवर्णा छाया थी जिसके चलते उसे सूर्य देव से मिलने में कोई समस्या नही हुई और उससे भी तीन बच्चे हुए। मनु शनि और भद्रा। कहा जाता है शनि देव का जन्म जब हुआ तो इनके ऊपर छाया का प्रभाव देखने को मिला जिससे इनका रंग काला हो गया। शनि ने जब इन्हें देखा तो वह क्रोधित हो गए और इन्हें अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया। शनि में उनकी माँ के तप की शक्ति थी उन्होंने क्रोध में आकर सूर्य को देखा तो वह भी काले पड़ गए। उनके घोड़ो ने दौड़ना बन्द कर दिया। सूर्य को इस समस्या से निजात पाने के लिए भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी शिव ने उन्हें उनकी गलती बताई और जब उन्होंने पश्चाताप किया तो उनको उनका पुराना रूप मिला। लेकिन सूर्य के इस वर्ताव के बाद उस युग से आज तक शनि को सूर्य विद्रोही माना जाता है।
आखिर क्यों घातक बन गई शनि की नजर:-
ब्रह्मपुराण के मुताबिक शनि भगवान विष्णु के परम भक्त थे यह नित्य ही इनकी भक्ति में लीन रहते थे इन्हें पूजा और भगवान विष्णु के अलावा कुछ न दिखाई देता था न सुनाई। शनि देव का विवाह चित्ररथ की कन्या ऋतु से हुआ था। कहा जाता था विवाह के बाद भी यह अपनी पत्नी को वक़्त नही देते थे। एक रात ऋतु जब संतान प्राप्ति की इच्छा लिए शनि देव के पास पहुंची तो उसने देखा की वह विष्णु की भक्ति में लीन है वह इंतजार करती रही लेकिन शनि ने उनकी ओर नहीं देखा। रात खत्म हो गई और ऋतु ने क्रोध में आकर शनि देव को श्राप दिया की वह अब जिसपर भी अपनी नजर डालेंगे वह नष्ट हो जाएगा। जब शनि ने ऋतु की यह बात सुनी तो वह घबरा गए उन्होंने उसे मनाने की कोशिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ और शनि देव सर झुकारकर रहने लगे।