अघोरी साधु: रहस्य, आस्था और मिथक की दुनिया में एक अनोखी यात्रा
क्या आप जानना चाहते हैं कि कैसे कुछ साधु श्मशान में रहकर करते हैं साधना? कैसे वे चिता की राख से सने शरीर और नरमुंडों से सजे रहते हैं? क्या सच में अघोरी मानव मांस खाते हैं? इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए आगे बढ़िए, अघोरी साधुओं की रहस्यमयी दुनिया में एक अनोखी यात्रा पर।
अघोरी साधु कौन होते हैं?
'अघोरी' शब्द संस्कृत के 'अघोर' से निकला है, जिसका अर्थ है निर्भय। ये साधु भगवान शिव के परम भक्त हैं और कपालिका परंपरा का पालन करते हैं, यही वजह है कि नरमुंड इनसे जुड़ा रहता है। वे शक्ति के रूप काली के भी उपासक हैं, जिसका प्रमाण इनका राख से सना शरीर, रुद्राक्ष की माला और नरमुंड है। अघोरी शिव और शक्ति की आराधना कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खोजते हैं। अघोरी साधु 18वीं सदी में हुए बाबा कीनाराम के अनुयायी हैं और उनकी शिक्षाओं को अपनी परंपरा में मानते हैं। इनकी उत्पत्ति काशी से हुई थी, लेकिन अब ये देश के विभिन्न मंदिरों में दिखाई देते हैं। कुंभ मेले जैसी धार्मिक घटनाओं में ही इनकी सक्रिय उपस्थिति दिखाई देती है।
श्मशान की साधना: मृत्यु का सामना, मोक्ष की प्राप्ति
अघोरी साधु श्मशान में रहकर साधना करते हैं, जन्म-मृत्यु के भय से परे रहकर। वे चिता का अधजला मांस भी खाते हैं, इसे अपनी साधना का हिस्सा मानते हैं। माना जाता है कि इससे डर और घृणा का अभाव ही उनकी साधना का सबसे बड़ा परीक्षा है, ये सिद्ध करता है कि वे मोक्ष के पथ पर कितने आगे बढ़ चुके हैं। लेखक मयूर कलबाग के अनुसार अघोरी साधु अनेक विषयों का प्रतीक हैं: उनकी रहन-सहन के तरीके और श्मशान में रहने की जीवन शैली इनसे जुड़ी अनेक भ्रांतियों का कारण है। हालांकि, अघोरी अपनी जीवनशैली और साधनाओं के ज़रिये यह दिखाते हैं कि भोजन और निवास स्थान एक मामूली बात है, उनका फोकस मोक्ष पर है।
रहस्यमय जीवन और आम धारणाएं: सच्चाई और भ्रांति का मेल
अघोरी साधुओं का जीवन रहस्यमय बना हुआ है, इनके विषय में जनसाधारण के मन में भय और कौतुहल दोनों ही मौजूद हैं। कई बार फ़ोटो या वीडियो शूट करने की इच्छा के आगे उनकी असहजता उनके प्रति लोगों की आम धारणा का परिणाम ही है, जो अघोरी साधुओं को तांत्रिक समझने और उनसे डरने की ओर ले जाती है। मयूर कलबाग के अनुसार, अघोरी अपनी शक्तियों का प्रयोग निजी साधना के लिए ही करते हैं और दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाते। लेकिन उनका ये काम कितना सही है या फिर गलत, इस पर अलग से चर्चा की जानी चाहिए।
नागा बाबा और अघोरी साधु: समानता और अंतर
अक्सर लोग नागा साधु और अघोरी साधुओं को एक मान लेते हैं, लेकिन उनमे कई अंतर हैं। नागा साधु अखाड़ों से जुड़े हैं, आदिगुरु शंकराचार्य से प्रेरित हैं, और लगभग 8 वीं सदी से चले आ रहे हैं। दूसरी तरफ अघोरी परंपरा भगवान दत्तात्रेय से जुड़ी मानी जाती है। नागा साधु शास्त्र विद्या में पारंगत होते हैं, जबकि अघोरी पूरी तरह से शिव साधना में लीन रहते हैं। नागा साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और ब्रह्मचर्य के रक्षण के उपायों पर बल देते हैं। अघोरी ब्रह्मचर्य के लिए बाध्य नहीं हैं। नागा भिक्षाटन करते हैं, जबकि अघोरी विभिन्न प्रकार के भोजन और उपभोग से परहेज़ नहीं करते। नागा धर्म के रक्षक और शस्त्र के जानकार हैं, जबकि अघोरी तंत्र साधना के माध्यम से सकारात्मक उद्देश्यों से ही तांत्रिक शक्तियों का उपयोग करते हैं। वे शव साधना, शिव साधना और श्मशान साधना जैसे विभिन्न प्रकार की साधना करते हैं।
Take Away Points:
- अघोरी साधु शिव भक्त हैं जो कपालिका परंपरा का पालन करते हैं।
- श्मशान में रहकर साधना करना और चिता के अधजले मांस का सेवन अघोरी साधना का हिस्सा है।
- अघोरी साधुओं के बारे में कई भ्रांतियाँ हैं, जो उनके रहस्यमय जीवन से उपजी हैं।
- अघोरी और नागा साधुओं के बीच कई अंतर हैं, जैसे कि जीवनशैली और साधना विधियाँ।
- अघोरी साधु तंत्र-मंत्र का प्रयोग अपनी साधना के लिए और सकारात्मक उद्देश्यों के लिए करते हैं।