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आध्यात्मिक :-कुम्भ मेले में अक्सर हमने साधुओं को तपस्या करते देखा है। कई बार साधुओं का पहनावा देखकर हम उनको पुजारी या अघोरी समझते हैं। जब हम किसी संत को साधरण वस्त्र में टीका लगाए देखते है तो हम कहते हैं वह अघोरी है लेकिन जब हम किसी को काले कपड़ो में गले मे तरह तरह के कंठी माला पहने बिखरे बालो में माथे पर मोटा चंदन का टीका लगाए देखते है तो हम उन्हें दूर से देखकर ही समझ जाते हैं कि यह अघोरी है। लेकिन इनके बारे में कोई कुछ खास नहीं जानता है और न यह आपको अपने बारे में कभी कुछ बताते हैं लेकिन आज हम आपको बताएंगे इनके बारे में कुछ रहस्यमयी सच जिन्हें सुनकर आप दंग रह जाएंगे।

जाने कौन है अघोरी:- 

अघोरी के बारे में कुछ भी जानने से पहले यह जानना अत्यधिक आवश्यक होता है कि आखिर यह लोग होते कौन है। अघोरी का अर्थ होता हैं अ+घोर यानी जो घोर नही होते,जो सीधे या सरल होते है,जिनके अंदर कोई भेद भाव की भावना नही होती। शास्त्रों में कहा गया है कि एक संत बनना सरल है लेकिन एक अघोरी बनना बेहद मुश्किल काम है। क्योंकि यह बेहद सरल होते हैं इनके कोई नियम नहीं होते यह स्वतंत्र रहते हैं इन्हें किसी की आवश्यकता नहीं होती। वही अघोरी बनने के लिए सबसे पहले साधना करने की आवश्यकता होती है। यह साधना के बाद जब आंखे खोलते हैं तो मोह माया को त्याग कर हिमालय चले जाते हैं और कई वर्षों तक वही भ्रमण करते हैं। भ्रमण के पश्चात इन्हें ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है और यह अघोरी बनते हैं। 

जाने कहा है अघोर स्थान:- 

वाराणसी को अघोर स्थान माना जाता है क्योंकि यह शिव भूमि है और अघोरी शिव के अनुयायी होते हैं। काशी के अलावा यह तपस्या के लिए गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। जूनागढ़ को अवधूत भगवान दत्तात्रेय के तपस्या स्थल के रूप में भी जाना जाता है। अघोरी शिव को पूजते है और उन्हीं की भक्ति में लीन रहते हैं क्योंकि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया था।

अघोर के रहस्य:- 

अघोरी के बारे में यह प्रख्यात है कि इनसे अगर मिलना है तो श्मशान घाट जाना होगा। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि आखिर अघोरी ऐसा क्यों करते हैं। यह शमशान में क्यों जाते हैं। असल मे अघोरी उन्हें अपनाते है जिन्हें हर कोई नकारता है। श्मशान में लाश, कपन, मिट्टी, चिता की राख मिलती है इससे हर कोई नफरत करता है लेकिन अघोरी इन्हें अपनाते हैं। यह अपने पराए को भूलकर हर किसी को समान मानने लगते हैं इनके लिए जितने सम्मान का पात्र एक जीवित व्यक्ति होता है उतने ही सम्मान का पात्र एक मरा हुआ व्यक्ति भी होता है। साधना करने से पहले उन्हें मोह माया का त्याग करना पड़ता है।हम अघोरी उन्हें भी कहते है जिनके भीतर से अच्छे-बुरे, सुगंध-दुर्गन्ध,प्रेम-नफरत, ईर्षा-मोह जैसे सरे भाव मिट जाते है।
अघोरी श्मशान में रहते हैं क्योंकि यह मौत और वैराग्य को समझना चाहते हैं। यह हमेशा यह जानने की इच्छा अपने मन मे रखते हैं कि मौत के बाद आत्म कहाँ जाती और क्या आत्मा से बात की जा सकती है या नहीं। अघोरी इन्ही सब सवालो को सुलझाने के उद्देश्य से शमशान में रहते हैं। इनका मानना है कि श्मशान में शिव का वास होता है शिव की उपासना इन्हें मोक्ष दिलाती है और मोक्ष की प्राप्ति हेतु यह श्मशान में शिव की साधना करते हैं।

अघोरी करते हैं श्मशान में भयंकर साधना:- 

अघोरी श्मशान में शव साधना करते हैं इसमे मुर्दा जिन्दा हो कर बोलने लगता है और आपकी इच्छा पूरी हो जाती है।
शिव साधना में शव के ऊपर पैर रख कर खड़े रहकर साधना करते है। बाकि साधना शव साधना की तरह ही होती है। ऎसी साधना में मुर्दे को प्रशाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाया जाता है। अब तीसरी साधना जो की समशान साधना होती है इसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह एक विशेष पूजा की जाती है जिसमे प्रशाद के रूप में मांस मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।