हमारे देश में 33 करोड़ देवी देवताओं को पूजा जाता है, लेकिन हर पूजा और हर शुभ काम से पहले गणेश की ही पूजा होती है. गणपति को लेकर ये कहानियां बचपन से ही सुनी जाती रही हैं कि उनका सिर हाथी का कैसे हो गया? उन्हें क्यों सबसे पहले पूजा जाता है? लेकिन गणपति के बारे में कई ऐसे सवाल भी हैं जिनके जवाब अधिकतर लोग नहीं जानते हैं. ये ऐसे सवाल हैं जो शायद पहली बार में गणेश पूजा करने वालों के मन में आएं भी न. विध्नहर्ता के बारे में आज कुछ सवालों के जवाब जानते हैं.
1. गणपति की दो शादियां क्यों हुई थीं?
गणपित को अधिकतर कहानियों में और पुराणों में कुवांरा बताया गया है, फिर भी कुछ कहानियां और पुराण कहते हैं कि गणपति की दो पत्नियां थीं रिद्धी और सिद्धी. तो आखिर कैसे हुई थी दो लड़कियों से गणपति की शादी? इसको लेकर भी दो कथाएं कही जाती हैं.
गणेश जी को कई पुराणों में कुवांरा बताया है.
पहली कहानी-
गणपति और कार्तिकेय में एक बार झगड़ा हो गया कि श्रेष्ठ कौन है और किसकी शादी पहले होगी? इस बात पर शिव और पार्वति ने एक प्रतियोगिता रखी कि जो पहले पृथ्वी के 7 चक्कर लगा कर आएगा उसी की शादी पहले की जाएगी. ऐसा सुनकर कार्तिकेय अपने मोर पर बैठकर उड़ गए और गणपति अपने चूहे के साथ वहीं खड़े रह गए. गणपति ने ऐसे में माता-पिता के ही 7 चक्कर लगा लिए. जैसे ही गणपति का सातवां चक्कर खत्म हुआ वैसे ही कार्तिकेय वापस आ गए और कहने लगे कि उन्होंने शर्त पूरी की है. ऐसे में गणपति ने कहा कि उन्हें हमेशा यही सिखाया गया है कि माता-पिता की सेवा और परिक्रमा का मतलब है सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा. ऐसा सुनकर शिव और पार्वति ने खुश होकर गणपति की शादी विश्वरूपम की दोनों बेटियों रिद्धी और सिद्धी से करवा दी. गणपति के दो बेटे हुए शुभ और लाभ.
दूसरी कहानी-
दूसरी कहानी के अनुसार गणपति के हाथी जैसे सिर होने के कारण कोई भी लड़की उनसे शादी करने को तैयार नहीं थी, सभी देवताओं की पत्नियां थीं और ये बात गणेश को बहुत अखरती थी. ऐसे में गणपति ने अन्य देवताओं की शादियों में विध्न पैदा करना शुरू कर दिया और किसी न किसी तरह से वो देवताओं की शादी में कुछ गड़बड़ करते. ऐसे में सभी देवता ब्रह्मा के पास गए और ब्रह्मा ने गणपति के लिए दो सुंदर कन्याओं की रचना की. ये थीं रिद्धी और सिद्धी. इसके बाद गणपति की शादी हुई और शुभ और लाभ पैदा हुए.
2. गणेश को विध्नहर्ता ही क्यों कहा जाता है
गणपति को खास वर्दान मिला था जिसके तहत हर पूजा या शुभ कार्य से पहली उनकी पूजा जरूरी होती थी. गणपति के धड़ पर हाथी का सिर लगाने के बाद सभी देवताओं ने गणपति को आशिर्वाद दिया था. ऐसे में शिव का आशिर्वाद था कि अगर किसी भी शुभ कार्य के पहले उनकी पूजा होगी और अगर उनकी पूजा कर कार्य शुरू किया तो कार्य सफल होगा और बिना किसी विध्न पूरा होगा. यही कारण है कि गणपति को विध्नहर्ता कहा जाता है.
इससे जुड़ी एक कहानी भी है, लोककथा के अनुसार एक बार त्रिपुरासुर को मारने से पहले भगवान शिव ने गणेश को याद नहीं किया था तो इसलिए वो त्रिपुरासुर को आसानी से हरा नहीं पा रहे थे. जैसे ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ उन्होंने गणपति को याद किया और फिर त्रिपुरासुर का वध किया. ये भी माना जाता है कि गणेश की पूजा करने से शनि की बुरी दृष्टि और ग्रहदोष से मुक्ति मिलती है इसलिए गणपति की पूजा होती है.
3. आखिर गणपति का विसर्जन क्यों किया जाता है?
गणपति विसर्जन से जुड़ी भी दो कहानियां हैं, एक पौराणिक और दूसरी को ऐतिहासिक माना जाता है.
पौराणिक मान्यता-
पौराणिक मान्यता ये कहती है कि गणपति की पूजा 10 दिन करके मूर्ति को 11वें दिन विसर्जित कर देना चाहिए. इसका कारण ये है कि गणपति 10 दिन की पूजा के बाद कैलाश लौट जाते हैं और इस काम में कोई बाधा न आए इसलिए विसर्जन किया जाता है. मान्यता है कि गणपति अपने साथ अपने भक्तों के सभी दुख-दर्द ले जाते हैं.
ऐतिहासिक कहानी-
पहले गीली-पिसी हुई हल्दी से गणपति की एक छोटी मूर्ति बनाई जाती थी. उसकी 10 दिन तक पूजा की जाती थी, फिर उस हल्दी की मूर्ति को पानी में विसर्जित किया जाता था और उस पानी को पेड़ की जड़ में डाल दिया जाता था. मूर्ति बहुत छोटी होती थी जो हथेली में आ सके.
गणपति विसर्जन का इतिहास बाल गंगाधर तिलक से जुड़ा हुआ है
स्वतंत्रता सैनानी बाल गंगाधर तिलक ने 1857 में गणपति विसर्जन को विशाल रूप दिया. इतिहासकार मानते हैं कि ये पूजा सबसे पहले शिवाजी महाराज ने शुरू की और इसे तब सामाजिक रूप से नहीं मनाया जाता था. (हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि 271 BC से 1190 AD के बीच चालुक्या, राष्टकुटा और सत्वाहना राजवंशों में भी होती रही है.) इसके बाद बाल गंगाधर तिलक ने इस पूजा को एक विराट रूप दिया ताकि अलग-अलग हिंदू समाजों को एक साथ लाया जा सके और इसलिए एक पंडाल में पूजा की गई और ये पूजा पुणे में हुई थी. धीरे-धीरे इसे देश भर में अपना लिया गया और ये एक प्रथा बन गई. तब से ही विसर्जन नदी, तालाब या समुद्र में होने लगा.
4. गणपति बप्पा मोरिया में मोरिया शब्द का अर्थ क्या है?
गणपति बप्पा मोरिया के नारे तो सभी लगाते हैं, लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि आखिर जिस गणपति बप्पा मोरिया का जाप करते रहते हैं उसका मतलब क्या है? दरअसल, मोरिया कोई मंत्र नहीं है बल्कि कथाओं के अनुसार 14वीं सदी में गणपति के सबसे बड़े भक्त का नाम था मोरिया गोसावी. ये कर्नाटक के शालिग्राम गांव से था. कर्नाटक में मोरिया की भक्ति को पागलपन कहा जाता था. उसने कर्नाटक छोड़ दिया और पुणे में चिंचवाड़ा में रहने लगा. मान्यताओं के अनुसार उसने सिद्धी हासिल कर ली, मोरिया जी के बेटे ने चिंतामणी में एक मंदिर बनवाया जहां उसके पिता ने सिद्धी की थी. मोरिया जी ने सिद्धी विनायक में जाकर भी तपस्या की थी, अमदाबाद में भी और मोरेश्वय या मयुरेश्वर में भी. गणपति भगवान उसकी सिद्धी से बहुत खुश थे और इस कारण ही मोरिया की एक इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने हामी भर दी थी.
मोरिया की एक लौती इच्छा थी कि उसका नाम गणपति के परम भक्त के तौर पर पृथ्वी में प्रसिद्ध हो जाए और इसलिए मोरिया शब्द भगवान गणेश से हमेशा के लिए जुड़ गया. हर बार गणपति बप्पा मोरिया बोलने पर मोरिया को याद किया जाता है.
5. गणेश का एक दांत टूटा क्यों है?
गणेश जी का एक दांत परशुराम जी की वजह से टूटा था. परशुराम को विष्णु का अवतार माना जाता है. वो शिव के परम भक्त हैं. लोककथा के अनुसार जब परशुराम शिव से मिलने गए थे तब गणपति जी ने उनका रास्ता रोक लिया था. परशुराम जी को हमेशा गुस्से का बहुत तेज़ माना जाता था और इसी बात पर वो गुस्सा हो गए. गणेश से युद्ध तक की स्थिती बन गई. परशुराम जी ने गणेश पर अपनी कुल्हाड़ी से वार किया. गणपति जी जानते थे कि ये कुल्हाड़ी खुद शिव ने उन्हें दी है इसलिए वार से उन्हें कुछ नुकसान होगा, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. इसलिए गणेश जी को चोट लगी और उनका एक दांत टूट गया. (साभार: ichowk.in)