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आध्यात्मिक – महाभारत का जब भी जिक्र आता है तो हम कुरुवंश के विषय में सुनते हैं. आज के दौर में यह बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर कुरुवंश की उत्पत्ति हुई कैसे. धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक़ ब्रह्मा जी से अत्री की उत्पत्ति हुई फिर अत्री से जब चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई, चन्द्रमा से बुध, बुध से पुरुरवा, पुरुरवा से आयु,आयु से राजा नहुष, नहुष से ययाति, ययाति से पुरु, पुरु से वंश, वंश में भरत, भरत के कुल से कुरु वंश की उत्पत्ति हुई.

कुरु वंश से शांतनु, शांतुन से गंगा नंदन, गंगा नन्दन से भीष्म उनके दो भाई चिन्त्रा गंद और विचित्रवीर्य की उत्पत्ति हुई यह लोग शांतनु से सत्यवती के गर्भ से जन्मे थे. शांतुनु स्वर्ग चले गए जिसके बाद भीष्म अविवाहित रहे उन्होंने आपने भाई विचित्रवीर्य के राजपाठ की देखरेख की, यदि हम मोटा – मोटा समझें तो भीष्म सर्वशक्तिमान, शांतनु पुत्र महाभारत के प्रमुख पात्र थे. भीष्म आजीवन अविवाहित रहे इसका अमुख कारण इनका अपने पिता को ब्रह्मचर्य का दिया वचन था. भीष्म को कोई भी मृत्यु नहीं दे सकता था क्योंकि इनको इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था.

जानें क्यों नही की थी भीष्म ने शादी- 

भीष्म के शादी न करने के पीछे उनके पिता द्वारा लिया गया वचन था. कहते हैं एक बार भीष्म और उनके पिता शांतुन शिकार पर गए. शांतनु शिकार पर आगे निकल गए और भीष्म पीछे रह गए. शांतनु के आगे एक सुन्दर कन्या दिखी वह उसको देखकर मोहित हो गए उस स्त्री का नाम सत्यवती था यह स्वर्ग की अप्सरा थी जिसका प्रथ्वी पर जन्म शाप के कारण हुआ था. शांतनु ने सत्यवती के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रख दिया सत्यवती ने उनसे इस विषय में अपने पिता से बात करने को कहा.

राजा शांतनु जब सत्यवती के पिता से विवाह के परिपेक्ष्य में मिलने गए तो उन्होंने उनके सामने प्रस्ताव रखा की वह सत्यवती का विवाह उनके साथ तभी करेंगे जब वह यह वचन दें की हस्तिनापुर का सम्राट सत्यवती का पुत्र होगा. राजा शांतनु सत्यवती के पिता की यह शर्त नहीं मानते हैं क्योंकि वह देवब्रत को पहले ही राजा घोषित कर चुके होते हैं. विवाह प्रस्ताव मना हो गया राजा शांतनु दुखी रहने लगे. देवब्रत यानी भीष्म से आपने पिता की यह स्थिति देखी नहीं गई उन्होंने इसके पीछे का कारण जाना और सत्यवती के पिता के पास अपने पिता के विवाह का प्रस्ताव लेकर गए.

सत्यवती के पिता ने दोबारा अपनी बात दोहरा दी यह सुनकर भीष्म ने उनको वचन दिया मैं राजकुमार रहूँगा लेकिन हस्तिनापुर पर राज सत्यवती का पुत्र करेगा उनके पिता ने कहा यह तुम तक है तुम्हारे विवाह के बाद तुम्हारे पुत्र ही राजकुमार होंगे यह सुनकर भीष्म ने आजीवन कुंवारे रहने की प्रतिज्ञा ली और अपने पिता की ख़ुशी हेतु आजीवन ब्रह्मचर्य को स्वीकार लिया.