आध्यत्मिक- आज के समय मे हर कोई सुख की तलाश में परेशान हो रहा है। किसी को लगता है कि अगर उसके पास अपार धन आ गया तो वह सुखी हो जाएगा। किसी को लगता है कि यदि उसने अपने जीवन मे अपनी इच्छाओं को पूरा कर लिया तो उसे सुख मिलेगा। किसी व्यक्ति के लिए उसका शारिरिक हित सुख है तो कोई रिश्तों में सुख तलाशता है। लेकिन वास्तविक में सुख है क्या यह खोजने का कोई प्रयास नहीं करता है।
यदि हम सुख की बात करें तो यह सिर्फ एक भाव है। जिसे आप अनुभव कर सकते हैं। जो लोग धन में सुख खोजते हैं वह सदैव अधिक धन प्राप्त करने की अभिलाषा में दुखी रहते हैं। इसी तरह प्रत्येक भौतिक चीज जिंसमे आप सुख तलाशते हैं वह अधिक के भाव के कारण आपका दुख बन जाती है। इस सम्पूर्ण संसार मे सुख सिर्फ इतना है कि आप अभिलाषा को छोड़ कर वास्तविकता को स्वीकार लें।
जो व्यक्ति अभिलाषा को त्याग देता है और उसके पास जो कुछ जैसा भी है उसे स्वीकार लेता है उसे इस संसार मे सुख प्राप्त होता है। सुख प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को कुछ हासिल करने की अगर आवश्यकता है तो वह है अपनी इच्छाओं पर काबू। क्योंकि इच्छाएं हमें दुख की खाई में धकेलती है और हम सुख के भाव को जीना ही नहीं चाहते। अधिक की लालसा में हम जो हमारे पास है उसका सुख नहीं भोगते और लालसा के लालच में हमारा पूरा जीवन सुख खोजने में चला जाता है।
सुख की दुश्मन इच्छा है। यदि आप आधी रोटी में संतुष्ट हैं तो आप सुखी है। यदि आप धन के पीछे नहीं भागते और जो आपको मिला है उसमें संतुष्ट हैं तो आप सुखी है। यदि रफ्तार से भागती इस दुनिया मे आपके रिश्ते भावनात्मक रूप से जीवित हैं तो आप सुखी है। क्योंकि सुख सिर्फ संतुष्ट हैं और जो इस संसार में संतुष्ट है वही सुखी है।