वट सावित्री पूजा एक प्रमुख हिंदू त्योहार है जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। यह पूजा हिंदू महिलाओं द्वारा की जाती है और इसे विशेष धार्मिक और सामाजिक महत्व होता है। यह पूजा व्रत, पूजा, और मंत्र-जाप के माध्यम से मान्यता और भक्ति के साथ मनाई जाती है वट सावित्री पूजा का आयोजन ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है, जो मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर) और ज्येष्ठ (मई-जून) महीनों के बीच में पड़ता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष के नीचे बैठकर उसे पूजती हैं और अपने पतियों की लंबी उम्र और खुशहाली की कामना करती हैं। वह अपने पति के लिए व्रत रखती हैं और उनकी सुरक्षा और सुख की कामना करती हैं। वट सावित्री पूजा का उद्देश्य महिलाओं को शक्ति और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए ब्रह्मचर्य, पतिव्रता, और उनके पतियों के लंबे जीवन की कामना करना है।
जानें कब मनाई जाएगी वट सावित्री-
सावित्री पूजा 2023 19 मई, शुक्रवार को ज्येष्ठ अमावस्या के दौरान मनाई जा रही है। यह पर्व शुक्ल और कृष्ण दोनों ही पक्ष में मनाया जाता है। कुछ लोग कृष्ण पक्ष को वट सावित्री पूजा मनाते हैं और कुछ शुक्ल पक्ष में पूजा मनाने में विश्वास करते हैं, और व्रत सावित्री पूर्णिमा व्रत के रूप में जाना जाता है।
वट सावित्री पूजा विधि-
वट सावित्री पूजा को मान्यता और भक्ति के साथ अपनाने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जाता है:
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तिथि और समय: वट सावित्री पूजा ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। पूजा का समय सूर्योदय के पश्चात् सूर्यास्त के बीच चुना जाता है।
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सामग्री: पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की तैयारी करें:
- वट वृक्ष की पेड़ी का एक छोटा सा टुकड़ा या पत्ता
- पूजा के लिए सामान जैसे कि कलश, दीपक, अगरबत्ती, पूजा थाली, अच्छे, रोली, अबीर, गंध, फूल, पान पत्र, फल, नारियल, पुष्पमाला आदि।
- पूजा के लिए वस्त्र और श्रृंगार सामग्री
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पूजा विधि:
- स्नान आदि के बाद शुद्ध रूप से विश्रामित हों और वट वृक्ष के नीचे बैठें।
- पूजा की थाली पर पूजा सामग्री को अभिषेक करें।
- पहले वट वृक्ष की पेड़ी का पूजन करें। पत्ते या छोटे टुकड़ों को अभिषेक करें और उन्हें ध्यान से स्थान पर रखें।
वट सावित्री पूजा का महत्व-
वट सावित्री पूजा का महत्व हिंदू धर्म में बहुत उच्च मान्यता रखता है। इस पूजा का महत्व मुख्य रूप से पतिव्रता, पति-पत्नी के सामरिक संबंधों के उत्कृष्टता और पतियों के लंबे जीवन की कामना में समाहित होता है। यह पूजा विवाहित महिलाओं द्वारा व्रत के रूप में रखी जाती है और उनके पतियों के लंबे जीवन और सुख की प्राप्ति की कामना करती है।
वट सावित्री पूजा का महत्व इस प्रमुख कथा से जुड़ा हुआ है – महाभारत काल में सत्यवान और सावित्री नामक दंपति थे। सावित्री की पतिव्रता, प्रेम और त्याग की कथा इस पूजा के पीछे महत्वपूर्ण कारक हैं। सावित्री ने यमराज से अपने पति के लिए उनकी जीवन की व्रत कथा के माध्यम से प्राण प्रदान करने की विनती की थी। उनकी अद्भुत पतिव्रता के कारण, यमराज ने उन्हें एक वरदान दिया और उनके पति की जीवन आयु को वापस ले लिया।
वट सावित्री पूजा की कहानी-
वट सावित्री पूजा की कहानी महाभारत में सावित्री और सत्यवान के बारे में है। इस कथा के अनुसार, सावित्री एक बहुत ही सुंदर, प्रेमी और चतुर राजकुमारी थी जो अपने पति सत्यवान से बहुत प्रेम करती थी। उन्होंने उसे अपने जीवन का साथी चुना था और सब कुछ उसी के साथ बिताने का वचन दिया था। एक दिन, सावित्री और सत्यवान घने जंगल में घूम रहे थे, जहां वामन यमराज (काल) उनके पास आये। यमराज ने सत्यवान को उनकी आयु की समाप्ति के बारे में बताया और उसे जीवन संभालने के लिए ले जाने की विनती की। सावित्री ने देखा कि सत्यवान की जीवन की मध्यम आयु का समय खत्म हो गया है और उसे यमराज के साथ जाना होगा। सावित्री ने यमराज के पास गयी और उससे अपने पति के लिए उनकी आयु की वृद्धि की विनती की। यमराज ने सावित्री को कई बार रोकने की कोशिश की, लेकिन सावित्री दृढ़ आस्था और समर्पण के साथ यमराज के सामर्थ्य की परीक्षा करती रही।