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गौतम बुद्ध एक धर्मगुरु थे जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। वे नेपाल और भारत के बौद्ध धर्म के महापुरुष माने जाते हैं। उन्होंने 6वीं या 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में जन्म लिया था। उनके जन्म स्थान के बारे में कुछ विवाद है, लेकिन आमतौर पर उन्हें नेपाल के लुम्बिनी नगर में जन्मा माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश समय ध्यान और तत्त्वज्ञान की खोज में व्यतीत किया और अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को दुःख से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया।

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय-

गौतम बुद्ध ने जन्म 6 वीं या 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में नेपाल के लुम्बिनी नगर में लिया था। उनके पिता शुद्धोधन नाम का राजा था जो कपिलवस्तु नगर के राजा थे। उनकी माता का नाम माया था। गौतम बुद्ध के जन्म के बाद, वे एक शाक्य क्षत्रिय परिवार में पले। उन्होंने बचपन से ही दुःख और मृत्यु के अनुभव किये थे जो उन्हें अधिक ध्यान की ओर खींचते गए।

गौतम बुद्ध ने 29 साल की उम्र में अपने घर से भागकर संन्यास ले लिया। वे दुनियाभर में धर्मगुरुओं और आध्यात्मिक शिक्षकों के पास गए और विभिन्न तत्त्वों को अध्ययन करने लगे। उन्हें अधिकतर आध्यात्मिक शिक्षाओं का पूर्णतः निराकरण कर दिया गया था।

फिर उन्होंने सत्य और मौन का मार्ग अपनाया और महाबोधि वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान का अभ्यास करते हुए अपने अंतिम निर्वाण प्राप्त किया। इससे पहले, उन्होंने दुनियाभर में अपने उपदेशों का प्रचार किया।

गौतम बुद्ध का जीवन संघर्ष-

गौतम बुद्ध का जीवन संघर्ष उनकी तपस्या, अनुभव, और उनके दिए गए उपदेशों में दिखता है। उन्हें अपने जीवन के दौरान कई संघर्षों का सामना करना पड़ा। गौतम बुद्ध का पहला संघर्ष उनके अनुभवों के अभाव में था। उन्हें अपने दुःखों के साथ सामना करना पड़ा और उन्हें समझने की कोशिश की गई।दूसरा संघर्ष उनके त्याग के साथ था। उन्होंने अपने राजकुमार के स्थान से संन्यास ले लिया था और अपनी सम्पत्ति, स्त्रियों और वैभव से विचलित हुए।तीसरा संघर्ष उनके उपदेशों को स्थापित करने के लिए था। गौतम बुद्ध को शिक्षाओं को संभालने के लिए अपने अनुभवों का उपयोग करना पड़ा। उन्होंने अपने शिष्यों को अपनी संदेश का प्रचार करने के लिए प्रेरित किया। चौथा संघर्ष उनके शिष्यों की सुरक्षा थी। उन्होंने उन्हें स्वस्थ रहने के लिए समझाया और उन्हें धर्म के मार्ग पर बने रहने के लिए प्रेरित किया।

गौतम बुद्ध उपदेश-

  1. चतुर आर्य सत्यानुव्रत:

    चतुर आर्य सत्यानुव्रत जैन धर्म के मूल अंगों में से एक है। इस अवधि में, जैन श्रवकों को चार आर्य सत्यों का अनुगमन करना चाहिए। ये चार आर्य सत्य हैं:  अहिंसा परमो धर्मः (अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है): यह मानव जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण सत्य है। जैन धर्म में, अहिंसा का अर्थ होता है किसी भी प्राणी के प्रति क्रूरता या हिंसा से बचना। जैन श्रवकों को इस सत्य का अनुसरण करना चाहिए और किसी भी प्राणी के प्रति अत्यंत सदभाव व्यक्त करना चाहिए। अनेकान्तवाद परमो धर्मः (अनेकान्तवाद सबसे बड़ा धर्म है): यह सत्य वस्तु के विवेक के लिए होता है। यह मानव जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हम दूसरों के विचारों को समझते हैं और उनसे सहयोग करते हुए समस्याओं का समाधान करते हैं। अनिर्वेदी परमो धर्मः (अनिर्वेदी सबसे बड़ा धर्म है): यह सत्य साधक के लिए होता है जो ध्यान करता है। यह मानव जीवन के लिए महत्वप

  2. अहिंसा:  अहिंसा एक मूलभूत तत्त्व है, जो बहुत से धर्मों और दर्शनों के मूल में होता है। इस शब्द का अर्थ होता है “हिंसा से बचना” या “किसी भी प्राणी के प्रति क्रूरता या हिंसा न करना”। अहिंसा के मूल उद्देश्य है सभी प्राणियों के प्रति सदभाव और समझदारी का विकास करना। इससे हम अपनी स्वभाविक भावनाओं में से बुराई को दूर करते हुए शांति और सुख की अनुभूति कर सकते हैं। अहिंसा के मूल उपदेशों को संक्षेप में निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है:  दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना। किसी भी प्राणी के प्रति क्रूरता या हिंसा से बचना। अहिंसा का महत्व भारतीय संस्कृति में बहुत उच्च माना जाता है और यह हिंसा के खिलाफ लड़ाई में अपनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण है। अहिंसा धर्म के मूल तत्त्वों में से एक है और बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म के मूल उपदेशों में से एक है। सभी प्राणियों के प्रति समझदारी व्यक्त करना।

  3. मध्यम मार्ग:  

    मध्यम मार्ग बौद्ध धर्म के तीन मुख्य मार्गों में से एक है। इसे संसार से मुक्ति प्राप्त करने का सरल तथा मध्यम मार्ग माना जाता है। मध्यम मार्ग अर्थात् “मध्य रास्ता” बुद्ध के उपदेशों का मूल भाव था, जिसमें संसार के दुःखों से मुक्त होने के लिए उच्चतम सुख और निर्वाण की तलाश नहीं की जाती थी।

    इस मार्ग के अनुयायी अपने जीवन को उच्चतम सुख और निर्वाण की तलाश में खत्म नहीं करते, बल्कि संसार के सभी मुद्दों का उचित समझने तथा इसे समझने की कोशिश करते हैं। इसके अनुयायी अन्य दो मार्गों के अनुयायियों से अलग होते हैं जो उच्चतम सुख या निर्वाण की खोज में लगे रहते हैं।

    मध्यम मार्ग के अनुयायी चार आदर्शों का पालन करते हैं – सहानुभूति, मौन, शील और ध्यान। सहानुभूति का अर्थ होता है सभी जीवों के प्रति दया और करुणा रखना, मौन का अर्थ होता है वचनों की कमी और अनुचित बोलचाल से बचना, शील का अर्थ होता है

    अनिच्छा:  

    अनिच्छा एक धार्मिक अवधारणा है जो बौद्ध धर्म के मूल तत्वों में से एक है। इस अवधारणा के अनुसार, सभी संसारी सत्ताएं अनित्य होती हैं, यानि उनका जन्म, मृत्यु और संसार में अस्थायी रूप से रहना एक निश्चित समय तक होता है। इस अवधारणा के अनुसार, संसार में कुछ भी स्थायी नहीं होता है, इसलिए इसमें आसक्ति रखना उचित नहीं होता है।

    बौद्ध धर्म में, सभी दुखों की मूल वजह आसक्ति होती है, जो इच्छाओं और अभिलाषाओं के साथ जुड़ी होती है। इसलिए, अनिच्छा का अनुसरण करने के द्वारा, एक व्यक्ति दुःखों से मुक्त हो सकता है। यह मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जीवन के दुखों को कम करने में मदद करता है और शांति और सुख का अनुभव करने में मदद करता है।

  4. अनात्मवाद:

    अनात्मवाद गौतम बुद्ध के उपदेशों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अनुसार, आत्मा नहीं होती है। बुद्ध ने कहा कि आत्मा एक कल्पना है जो हमारी मन की एक अवधारणा है। इससे हम अपने आप को दुख से मुक्त नहीं कर सकते हैं।

    बुद्ध ने यह भी बताया कि हमारे संज्ञान और अनुभवों की एक श्रृंखला होती है, जिसमें कोई अंतर्निहित आत्मा नहीं होती है। वे आत्मा की अवधारणा के विरोध में, अनित्यता, दुःख और अज्ञानता के कारणों को बताते हुए उसे अस्तित्वहीन मानते थे।

    इसके साथ ही बुद्ध के अनात्मवाद का महत्वपूर्ण अर्थ है कि हम संघर्षों, संदेहों और दुखों से मुक्त हो सकते हैं क्योंकि हमारे संज्ञान और अनुभवों की श्रृंखला को हम अस्तित्वहीन मानते हुए उससे से जुड़े सब कुछ अस्थायी और अनित्य होते हुए उससे मुक्त हो सकते हैं।