डेस्क। ओडिशा के पुरी में हर साल आषाढ़ महीने में भगवान जगन्नाथ की विश्वविख्यात रथ यात्रा निकलती है। आप सभी यह तो जानते ही होंगे की जगन्नाथ जी, भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है और भगवान जगन्नाथ की यह रथ यात्रा बेहद मशहूर है केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया से लोग यहां आते हैं और भगवान की इस यात्रा में शामिल होते हैं।
रथ यात्रा की ही तरह पुरी में भगवान को भोग लगने वाला प्रसाद भी बेहद मशहूर है, इसे ‘महाप्रसाद’ भी कहा जाता है। आप सभी को बता दें कि आज 1 जुलाई को जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू (Rath Yatra 2022) की शुरुआत हो चुकी है और यह 12 जुलाई तक चलने वाली है।
जगन्नाथ भगवान की इस रथ यात्रा के मौके पर हम आपको बताते हैं आखिर क्यों जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है और इसे बनाने की प्रक्रिया की क्या खासियतें हैं?
बेहद खास है बाबा का ये प्रसाद
जगन्नाथ मंदिर की रसोई में बनने वाले प्रसाद को तैयार करने के लिए ना केवल स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है बल्कि इसे बनाने के लिए खास तरह के पानी का इस्तेमाल होता है। कहा जाता है भगवान के भोग को किचन के पास बने 2 कुओं के जल से तैयार किया जाता है और इन कुओं के नाम गंगा-यमुना कुआं हैं।
काफी बड़ी मात्रा में तैयार किए जाने वाले इस भोग को बनाने में केवल गंगा-यमुना कुओं के पानी का ही इस्तेमाल किया जाता है। बता दें कि जगन्नाथ मंदिर के किचन को दुनिया का सबसे बड़ा किचन भी कहा जाता है। यहां बहुत बड़ी मात्रा में रोजाना भगवान का भोग (महाप्रसाद) तैयार किया जाता है और इस भोग की मात्रा इतनी ज्यादा होती है कि इसे तैयार करने के लिए एक बार में किचन में कम से कम 800 लोगों की जरूरत लगती है।
इसमें करीब 500 रसोइए होते हैं और 300 लोग इनकी मदद के लिए यहां काम करते हैं। इसके अलावा जगन्नाथ मंदिर में तैयार होने वाले महाप्रसाद को पकाने में केवल मिट्टी के बर्तनों का ही प्रयोग किया जाता है। इसको पकाने की प्रक्रिया बेहद अलग है क्योंकि इसके लिए इन बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है और चौंकाने वाली बात यह है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना सबसे पहले और सबसे नीचे रखे बर्तन का भोजन सबसे बाद में पककर तैयार होता है।
ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर के किचन में पूरा भोग माँ लक्ष्मी की देख-रेख में तैयार होता है और इस महाप्रसाद की महिमा ऐसी है कि इसे पाने के लिए लोग दूर-दूर से चलकर यहां आते हैं।