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मकर संक्रांति 2025: आस्था, उल्लास और पौराणिक महत्व का संगम!

क्या आप जानते हैं कि मकर संक्रांति का पर्व भारत में अलग-अलग नामों और रीति-रिवाजों से मनाया जाता है? यह पर्व न केवल मौसम के बदलाव का प्रतीक है, बल्कि आस्था और धार्मिक महत्व से भी जुड़ा हुआ है। इस लेख में हम मकर संक्रांति 2025 के शुभ मुहूर्त, महत्व, और इस पर्व से जुड़ी रोचक बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। तैयार हो जाइए, क्योंकि हम आपको मकर संक्रांति की दुनिया में एक अद्भुत यात्रा पर ले जाने वाले हैं!

मकर संक्रांति 2025: शुभ मुहूर्त और पौराणिक महत्व

मकर संक्रांति का समय साल का सबसे शुभ समय माना जाता है। 2025 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी। यह वह दिन है जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस दिन सूर्योदय के साथ ही उत्तरायण का आरंभ होता है, जो शुभ माना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस दिन स्नान, दान, पूजा, और व्रत का विशेष महत्व है। महापुण्य काल और पुण्य काल का समय भी निर्धारित होता है, जिसके दौरान पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं।

शुभ मुहूर्त की जानकारी:

  • सूर्य का मकर राशि में प्रवेश: सुबह 8 बजकर 41 मिनट पर
  • पुण्य काल: सुबह 9 बजकर 03 मिनट से शाम 5 बजकर 46 मिनट तक
  • महापुण्य काल: सुबह 9 बजकर 03 मिनट से सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक

इस शुभ मुहूर्त में दान, पूजा-पाठ, और धार्मिक कार्य करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है।

दान का महत्व और मकर संक्रांति की परंपराएँ

मकर संक्रांति पर दान करने का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय फलदायी होता है। तिल, गुड़, धन, वस्त्र, और अन्न का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए दीपदान या प्रकाश का दान भी किया जाता है।

विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति का स्वरूप:

मकर संक्रांति भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु जैसे राज्यों में नई फसल कटने की खुशी में इसे उत्सव के रूप में मनाते हैं। किसान भगवान का शुक्रगुजार होते हैं और नई फसल की शुभकामनाएं मांगते हैं। पतंग उड़ाना, तिल-गुड़ की मिठाईयाँ बाँटना, और पारिवारिक मिलन भी इस पर्व के अभिन्न अंग हैं।

मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथाएँ और महत्व

मकर संक्रांति की अपनी एक समृद्ध पौराणिक पृष्ठभूमि है। इस दिन सूर्यदेव अपने पुत्र शनि के साथ मिलन करते हैं, क्योंकि शनि मकर राशि के स्वामी हैं। यह पिता-पुत्र के मिलन का प्रतीक है। एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इसी दिन असुरों का वध किया था।

मकर संक्रांति का आध्यात्मिक अर्थ:

मकर संक्रांति आध्यात्मिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह उत्तरायण का प्रारंभ है, जिसका अर्थ है प्रकाश का विजय। अंधकार पर प्रकाश की जीत, अच्छाई पर बुराई की विजय का प्रतीक है। इस दिन आध्यात्मिक प्रगति के लिए योग और ध्यान का अभ्यास करना भी शुभ माना जाता है।

टेक अवे पॉइंट्स:

  • मकर संक्रांति का पर्व आस्था, उल्लास और आध्यात्मिक महत्व से परिपूर्ण है।
  • इस दिन दान करने का विशेष महत्व है।
  • यह पर्व भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
  • मकर संक्रांति आध्यात्मिक विकास और नए आरंभ के लिए अनुकूल समय है।