आध्यत्मिक – हिन्दू धर्म मेंपरम्पराओ और त्योहार का एक अलग ही महत्व है। हिन्दुओ का प्रत्येक त्योहर कोई न कोई संदेश देता है। जहां अभी हाल की में बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहर दशहरा मनाया गया। वही अब महिलाओ का प्रमुख त्योहार करवा चौथ आने वाला है। इस साल करवा चौथ का त्योहार 13 अक्टूबर को पद रहा है। करवा चौथ के दिन महिलाएं करवा महारानी से अपने पति की लम्बी आयु की कामना करती है और उनके लिए निर्जला व्रत रखती है।
सभी महिलाये करवा चौथ के दिन शाम को सोलह श्रृंगार करती है विधि पूर्वक करवा महारानी की पूजा अर्चना करती है और शाम को चाँद को अर्घ्य दकर और पूजा संम्पन्न करने के बाद अपने पति का मुख देखने के साथ उसे हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती है। धार्मिक ग्रंथो में कहा गया है जो महिला विधि विधान से करवा चौथ का व्रत रखती है और अपने पति की लम्बी आयु के लिए कामना करती है। करवा महारानी उस महिला पर अपनी कृपा बरसाती है और उसे उसके पति का साथ सात जन्मो के लिए मिलता है।
करवा चौथ की कथा –
पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार की बेटी करवा थी और उसके 7 बेटे थे. सभी भाई अपनी बहन करवा से बहुत प्रेम करते थे. एक दिन उनकी बहन मायके आई और उसने व्रत रखा था. उस शाम उसके भाई अपने काम से लौटकर घर आए तो देखा कि उसकी बहन कुछ परेशान है. उन्होंने बहन से कारण जानना चाहा तो उसने बताया कि आज वह निर्जला व्रत है और चंद्रमा को जल अर्पित करे बिना पारण नहीं कर सकती है. चद्रमा के उदय न होने से वह भूख प्यास से व्याकुल थी.
सभी भाई करवा की व्याकुलता से परेशान हो गए. उन से नहीं रहा गया. तक छोटे भाई ने एक उपाय सोचा और घर से दूर पीपल के पेड़ पर छलनी की ओट में एक दीपक ऐसे छिपा देता है, जैसे कि चंद्रोदय हो रहा हो. इसके बाद वह करवा को जाकर बताता है कि चंद्रोदय हो गया है. यह सुनकर करवा खुश हो जाती है और उसे चांद समझकर जल अर्पित करके पारण करने बैठ जाती है.
जैसे ही पहला निवाला डालती है तो उसे छीक आती है, दूसरा निवाला उठाती है तो उसमें बाल निकल आता है. जैसे ही वह तीसरा निवाला मुंह में डालती है तो उसे अपने पति के निधन की खबर सुनाई पड़ती है. यह सुनकर के वह बिलख पड़ती है. तभी उसकी भाभी उसे बताती है कि उसके छोटे भाई ने व्रत का पारण कराने के लिए क्या किया था. यह जानने के बाद करवा प्रण करती है कि वह अपने पति को फिर जीवित कराकर ही रहेगी.
वह पूरे सालभर तक पति के शव के पास ही रहती है और उसके शव के पास सूई जैसी उगने वाली घासों को एकत्र करती रहती है. जब करवा चौथ का व्रत आता है तो उसकी सभी भाभियां व्रत रखती हैं और उसके पास आशीर्वाद लेने आती हैं तो अपनी हर भाभी से कहती है कि यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपने जैसे सुहागन बना दो. हर भाभी उसे दूसरी भाभी से यह निवेदन करने को कहती है.
जब वह छठवीं भाभी से कहती है तो वह उसे बताती है कि सबसे छोटे भाई के कारण ही तुम्हारा व्रत टूटा था, इसलिए तुम उसकी पत्नी से कहो, वह अपनी शक्ति से तुम्हारे पति को जीवित कर देगी. जब तक वह जीवित न करे, तब तक उसे छोड़ना मत. इतना कहकर वह चली जाती है. तब अंत में छोटी भाभी आती है. करवा उससे भी अपने पति को जीवित करने और उसे सुहागन बनाने को कहती है. छोटी भाभी उसकी बात नहीं मानती है, वह टालमटोल करती है. करवा उसे कसकर पकड़ लेती है और निवेदन करती रहती है.
उसकी जिद और कठोर तप को देखकर छोटी भाभी करवा के पति को जीवित करने के लिए मान जाती है. वह अपने हाथ की छोटी अंगुली को चारकर अमृत निकालती है और उसके पति के मुख में डाल देती है. उसके प्रभाव से उसका पति श्रीगणेश का नाम लेते हुए उठ जाता है. इस तरह से करवा का पति जीवित हो जाता है. इस प्रकार से सभी पर माता पार्वती की कृपा हो और सभी को करवा की तरह अखंड सौभाग्य का वरदान मिले.