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भीम सेन एकादशी, हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण एकादशी व्रत है जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे विशेष भक्ति और उपासना के साथ मनाया जाता है। भीम सेन एकादशी का नाम पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। इसकी कथा के अनुसार, महाभारत काल में भीम, पांडवों के पुत्र, एकादशी तिथि को उठ गए और उन्हें यदि व्रत नहीं रखा जाएगा तो उनकी जीवनसाथी द्रौपदी की मृत्यु हो जाएगी। इस परिस्थिति में भीम ने भगवान विष्णु की अराधना की और भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया जिससे द्रौपदी की मृत्यु रोकी गई। इस प्रकार भीम सेन एकादशी व्रत का आयोजन किया जाता है। भीम सेन एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त इस दिन उठते ही स्नान करके व्रत का पालन करते हैं और विष्णु जी की आराधना करते हैं। इस वर्ष भीम सेन एकादशी आज यानी 31 मई को मनाई जा रही है ….

जानें भीम सेन/निर्जला एकादशी का मुहूर्त –

निर्जला एकादशी व्रत: बुधवार, 31 मई 2023
ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष एकादशी प्रारंभ: मंगलवार 30 मई दोपहर 01 बजकर 07 मिनट से
ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष एकादशी समाप्त: बुधवार 31 मई 2023 दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर
निर्जला एकादशी व्रत का पारण मुहूर्त: गुरुवार 01 जून 2023 सुबह 05 बजकर 24 मिनट से 08 बजकर 10 मिनट तक

जानें भीम सेन/निर्जला एकादशी व्रत के नियम –

भीम सेन एकादशी व्रत, जिसे निर्जला एकादशी भी कहा जाता है, एक सख्त व्रत है जिसके दौरान उपासकों को अपने खाने-पीने को सम्पूर्ण रूप से त्यागना पड़ता है। इस व्रत के नियम निम्नलिखित होते हैं:

  1. नियमित उठाना: व्रत की प्रारंभिक तिथि दिन सूर्योदय के पहले ही होती है। उपासकों को उठकर स्नान करना और विष्णु भगवान की पूजा का आयोजन करना चाहिए।

  2. अन्न-पान का त्याग: निर्जला एकादशी में उपासकों को पूरे दिन भोजन का त्याग करना पड़ता है। इसका अर्थ है कि उपासक को पानी और आहार का संपूर्ण त्याग करना होगा।

  3. निर्जला व्रत: इस व्रत में उपासकों को निर्जला व्रत आयोजित करना पड़ता है, जिसका अर्थ है कि व्रती एक बार भी पानी नहीं पी सकता है। यह व्रत अत्यधिक सख्त होता है और सभी खाद्य पदार्थों, जल, नींद, आदि का संपूर्ण त्याग किया जाना चाहिए।

  4. पूजा और ध्यान: उपासक को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए

जानें भीम सेन/निर्जला एकादशी व्रत करने का पुण्य-

भीम सेन या निर्जला एकादशी व्रत को करने का मान्यतापूर्ण पुण्य होता है। इस व्रत के माध्यम से उपासक अपनी भक्ति, त्याग, और संकल्प को प्रदर्शित करते हैं और अपने प्रार्थनार्थी समस्त कर्मों के माध्यम से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का साधन है और व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शुद्धि की प्राप्ति में मदद करता है।

निर्जला एकादशी व्रत के माध्यम से जब व्यक्ति अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करता है और खाने-पीने के साथ अन्नदान, दान, और आराधना जैसे धर्मिक कार्यों में अधिक महत्व देता है, तो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत उपासक को अन्तरंग शांति, स्वास्थ्य, और मनोवैज्ञानिक स्थिरता प्रदान करता है। इसके अलावा, इस व्रत का पुण्य मान्यतापूर्ण भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक परंपराओं में भी बहुत महत्व है। हालांकि, पुण्य की माप व्यक्ति के निर्धारित संकल्प, निष्ठा, और साधना पर निर्भर करता है .