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आध्यात्मिक- जीवन में उतार-चढाव आना आम बात है यदि भगवान ने जन्म दिया है तो उन्होंने भाग्य में सुख और दुःख से जोड़ा है.लेकिन कई बार हम अपने आस-पास कुछ ऐसे लोगों को देखते हैं जो बड़े प्रसन्न चित होते हैं उनके चेहरे पर दुःख की एक भी रेखा नही दिखाई देती जो भी व्यक्ति उनसे सम्वाद करता है उनका मन सकारात्मक दिशा में चलने लगता है. लेकिन हम समझ नहीं पाते हैं कि आखिर वह लोग इतना क्यों प्रसन्न हैं.

लोगों के सकारात्मक व्यवहार को लेकर आचार्य चाणक्य का कहना है कि इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से सुखी नहीं है क्योंकि प्रभु ने अगर जन्म दिया है तो सभी को बराबर अनुपात में सुख-दुःख दिया है.लेकिन इस अगर कोई सुख के साथ दुःख में भी प्रसन्न रहना चाहता है तो उसे अपने जीवन में कुछ मूल बातों को स्वीकार लेना चाहिए.जो व्यक्ति आपना जीवन यापन कुछ विशेष नियमों को अपनाकर करता है उसे कभी भी दुखी नहीं होना पड़ता और ऐसे लोग न सिर्फ प्रसन्न रहते हैं अपितु यह लोग सकारात्मक उर्जा से भरे रहते हैं और इनके आसपास के लोग इनके साथ रहने से स्वयं को सुखी महसूस करते हैं.

प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्न रहने के नियम-

परिस्थितियों को स्वीकार करना- आचार्य चाणक्य के मानना है कि इस संसार में यदि कोई व्यक्ति सुखी रहना चाहता है तो उसे अपने भीतर स्वीकृति का भाव जगाना होगा. क्योंकि यही वह भाव है जो लोगों को अन्य से बेहतर बनाता है और सभी परिस्थितियों में मुस्कुराना सिखाता है. यदि अप परिस्थितियों को स्वीकार करना जानते हैं तो आप कभी भी दुःख को महसूस नहीं करते यदि आपके साथ कुछ बेहतर होता है तो आप संतुष्ट रहते हैं और यदि कोई आपके साथ अनुचित व्यवहार करता है या आपके सम्मुख कोई विकट परिस्थिति आती है तो आप उसे समय का खेल समझ कर सकारात्मक लेते हैं और परिस्थितियों को स्वीकारते हुए अपने जीवन में सकारात्मक रूप से आगे बढ़ जाते हैं.

वहीं जो व्यक्ति परिस्थितियों को स्वीकार नही करता अपने साथ होने वाले प्रत्येक व्यहार पर दुःख व्यक्त करता है निगेटिव सोचता है खुश रहने की जगह अपने दुःख से अपने आसपास के लोगों को प्रभावित करता है उसे जीवन में कभी भी सुख प्राप्त नही होता है.

गतियों से सीखना –

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति अपनी गलतियों से सीखने की चाहत रखता है यदि कोई उसे टोकता है तो वह झुल्झुलाता है बात-बात पर गुस्से से आग बबूला होता है अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता है. तो उस व्यक्ति को जीवन में निरंतर दुःख भोगना पड़ता है और वह स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है. वहीं जो अपनी गलतियों को स्वीकार लेता है और परिस्थितियों के अनुकूल अपने आप को ढालता है तो उसे व्यक्ति के जीवन में दुःख भी सुख का कारण बन जाते हैं और ऐसे व्यक्ति सकारात्मक उर्जा का केंद्र होते हैं.

सुनने की शक्ति-

कई लोगों को हमने देखा होगा वह अपनी कहने से अधिक लोगों की सुनना पसंद करते हैं. आचार्य चाणक्य का मानना था जो लोग सुनने में विश्वास रखते हैं वह सुख और दुःख में मूल को समझते हैं अगर कोई सुख दुःख का मूल समझ जाता है तो वह अपने जीवन को सकारात्मक पथ की ओर अग्रसर करता है. यह लोग सदैव दूसरों को सुनते हैं उसकी समस्याओं का हल खोजते हैं उनका मार्गदर्शन करते हैं और उनके मन में आने वाले नकारात्मक विचारों को खत्म करते हैं.

कहते हैं जो व्यक्ति दूसरों को सुनने का साहस रखता है वह सुखी रहता है वहीं जो लोग किसी को सुनने से अधिक अपनी बात कहने और बात-बात पर गुस्सा करने में विश्वास करते हैं वह अपने जीवन में काफी दुःख झेलते हैं और निगेटिव उर्जा से भरे रहते हैं.