Ram Navami : रामायण एक प्राचीन भारतीय कथा है जिसे महर्षि वाल्मीकि ने रचा था। यह कथा मुख्य रूप से प्रभु श्रीराम के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर आधारित है। रामायण के विभिन्न भागों में सुंदरकांड, अयोध्याकांड, किष्किंधाकांड और लंकाकांड शामिल हैं, लेकिन उनमें से एक विशेष अहम भाग है – रामायण की चौपाई।
रामायण की चौपाई रामायण के प्रमुख चरित्रों और उनके उद्धारणों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है। यह कथा जीवन के नियमों, मूल्यों और नैतिकता को सीखने का अद्वितीय तरीका है। चौपाई के हर पंक्ति में गहरी ज्ञान और अनुभव है, जो हमें अपने जीवन में नेतृत्व और नैतिक मूल्यों की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है।
चौपाई का अर्थ और उपयोग
रामायण की चौपाई के प्रत्येक पंक्ति में गहरा अर्थ और संदेश छिपा होता है। यह चौपाई हमें सार्वभौमिक मूल्यों, धर्म, और नैतिकता के प्रति सच्ची प्रतिष्ठा का मार्गदर्शन करती है। इसके माध्यम से हम सच्ची समर्थन, सामर्थ्य, और साहस का मान्यता करते हैं। चौपाई न केवल धार्मिक महत्वपूर्णता लेकर आती है, बल्कि इसका आध्यात्मिक और मानवीय संदेश भी है।
रामायण की चौपाई के लाभ
रामायण की चौपाई को पढ़ने और समझने के कई लाभ हैं। इसके माध्यम से हम जीवन के उपयोगी सिख सकते हैं और अपने जीवन को संतुलित और सफल बना सकते हैं। यह हमें धार्मिकता, विश्वास, और सच्चाई के महत्व को समझाती है। यह हमें सच्चे प्रेम और समर्पण की भावना को विकसित करती है।
अवसर
रामायण की चौपाई हमें न सिर्फ धार्मिकता और नैतिकता के महत्व को समझने में मदद करती है, बल्कि यह हमें जीवन में सफलता की राह दिखाती है। इसका पाठन और समझना हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने में सहायक होता है और हमें सही मार्ग पर ले जाता है।
रामायण की चौपाई का अध्ययन करने से हम जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और समाज में एक अच्छे नागरिक की भूमिका निभा सकते हैं। इससे हमारे अंतर्निहित क्षमताओं का विकास होता है और हम समाज में उपयोगी योगदान दे सकते हैं।
रामायण की लोकप्रिय चौपाई:
बिनु सत्संग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सठ सुधरहिं सत्संगति पाई।
पारस परस कुघात सुहाई॥
जनकपुरी रघुनन्दन आये ।
नगर निवासी दर्शन पाए ।।
जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करहिं सब कोई॥
जिनके कपट, दम्भ नहिं माया।
तिनके ह्रदय बसहु रघुराया॥
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता॥
रामचंद्र के चरित सुहाए।
कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥
जासु नाम जपि सुनहु भवानी।
भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥
तासु दूत कि बंध तरु आवा।
प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥