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शुभ दिन भगवान बलभद्र के जन्मदिन का प्रतीक है। घटना को चिह्नित करने के लिए बदादेउला और मार्कंडा पुष्करणी (तालाब) के पास विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इस दिन देवताओं को ‘गाम्हा मांड’ नामक एक विशेष ‘भोग’ की पेशकश की जाती है। आज इस अवसर पर देवताओं के पास ‘भोग मंडप’ की समाप्ति के बाद श्री सुदर्शन एक पालकी पर चढ़कर मारकंडा तालाब तक जाते हैं। मार्कंडा तालाब में सेवक भगवान बलभद्र की मिट्टी की मूर्ति बनाते हैं और विशेष अनुष्ठान करते हैं। सेवक मंत्रों का जाप करते हैं और मूर्ति में प्राण फूंकते हैं। तत्पश्चात, तालाब में विसर्जित करने से पहले मूर्ति को ‘भोग’ चढ़ाया जाता है। आज पुरी के जगन्नाथ मंदिर में ‘राखी लागी नीति’ भी की जाती है। परंपरा के अनुसार, पतारा बिसोई सेवक ‘पटा राखी’ तैयार करते हैं, जिसे देवी सुभद्रा भगवान बलभद्र और भगवान जगन्नाथ से बांधती हैं। इस अवसर पर देवताओं को ‘गुआमाला’ (सुपारी की माला) भी चढ़ाया जाता है।