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डेस्क। दुनिया में कई इमारतें ऐसी हैं जो अपनी नक्काशी से आपको अचंभे में डाल दें। पर भारत की कई इमारतें वास्तुकला और अपने अनोखेपन के लिए जानी जाती है। कई भरतीय इमारतों से जुड़ी लोक कथाएं भी आज विश्व प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको भारत में स्थित एक ऐसा मंदिर (रत्नेश्वर महादेव, वाराणसी) की कहानी बताने जा रहें है जो अपनी वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। इस मंदिर को भारत में उतनी प्रसिद्ध नहीं मिली है पर दुनिया में यह मंदिर बहुत ही विख्याती पा रहा है।

इस मंदिर की हैरान करने वाली बात यह है कि सैकड़ों वषों से गंगा किनारे पर स्थित यह मंदिर एक तरफ 9 डिग्री तक झुका हुआ है। बता दें कि यह मंदिर वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर बना हुआ है। 

इस मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव है। इस मंदिर का एक तरफ का झुका होना ही लोगों को बहुत आकर्षित करता है। कई धार्मिक लोग इसे पीसा की झुकी मीनार से भी बेहतर बताते हुए दुनिया के अजूबो में गिनते हैं।

सैकड़ों वर्षों से इस मंदिर के एक तरफ झुके होने का दावा किया जाता है। 

कुछ लोग इस मंदिर की वास्तुकला को भगवान शंकर का चमत्कार बताते हैं। आपको बता दें कि वाराणसी के गंगा घाटो पर जहां एक तरफ सभी मंदिर ऊपर की ओर बने हैं वहीं दूसरी तरफ मणिकर्णिका घाट के नीचे इस मंदिर का निर्माण किया गया था। 

हैरान करने वाली बात यह है कि गंगा नदी के किनारे पर स्थित यह मंदिर हर साल छह महीने से ज्यादा पानी में डूबा हुआ रहता है। मंदिर में सिर्फ दो-तीन महीने ही पूजा की जाती है। 

मंदिर के टेढ़ेपन के पीछे क्या है कारण

भगवान शिव के इस मंदिर के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना ​​है कि किसी ने अपनी मां के कर्ज से मुक्ति पाने के लिए रत्नेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। पर वह टेढ़ेपन के कारण अपनी मां के कर्ज से मुक्ति नहीं पा सके। तो कुछ लोगों का मानना है कि रानी अहिल्याबाई होल्कर की दासी रत्ना बाई ने काशी में मणिकर्णिका घाट के सामने भगवान शंकर का मंदिर बनाने की इच्छा रखी। इसके लिए नौकरानी ने अहिल्या बाई होल्कर से कुछ पैसे उधार मांगे। इस मंदिर को देखकर अहिल्या बाई होल्कर बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने नौकरानी से कहा कि वो इस मंदिर को अपना नाम ना दें। पर नौकरानी ने अहिल्या की एक न सुनीं। इस कथा के अनुसार उस नौकरानी ने अपने नाम पर मंदिर का नाम ‘रत्नेश्वर महादेव मंदिर’ रखा। इससे क्रोधित होकर अहिल्या बाई होल्कर ने श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही पूजा हो सकेगी। लोग बताते है की रानी के इस श्राप के कारण ही यह मंदिर ज्यादातर समय तक पानी में डूबा हुआ रहता है।