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आध्यात्मिक: शिव का प्रिय माह सावन चल रहा है। शिव भक्त भोलेनाथ की खूब पूजा-आराधना कर रहे हैं। कावड़िया कावड़ लेकर जा रहे हैं तो कई लोग अपने घरों में रुद्राभिषेक का पाठ करवा रहे हैं। लेकिन आज हम आपको शिव को प्रसन्न करने के सबसे सरल तरीके के विषय में बताने जा रहे हैं। यदि आप उसका नित्य पाठ करते हैं तो आपको शिव को खुश करने के लिए अधिक जतन नहीं करना होगा। असल में हम बात कर रहे हैं शिव स्तुति की। 

भगवान शिव को शिव स्तुति बेहद प्रिय है। जो भी भक्त रोजाना शिव स्तुति का पाठ करता है उसके सभी कष्ट मिट जाते हैं। आध्यात्म के मुताबिक़ शिव स्तुति की रचना शिव के परम भक्त रावण ने की थी। जब रावण भगवान शिव को कैलाश से अपने साथ लेकर जा रहा था तो शिव ने अंगूठे से रावण को दबा दिया शिव के भार तले रावण काफी दिन दबा रहा। तब रावण ने शिव को अपनी भक्ति से प्रसन्न करने के लिए शिव स्तुति की रचना की और भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया। आज उस स्थान को राक्षस ताल के नाम से जाना जाता है जहां भगवान शिव ने रावण को अपने अंगूठे से दबाया था। 

क्या है शिव स्तुति –

।। शिव स्तुति मंत्र ।।

कर्पुरगौरं करुणावतारं

संसारसारं भुजगेन्द्रहारं।

सदा वसन्तं हृदयारविन्दे

भवं भवानीसहितं नमामि।।

।। शिव स्तुति श्लोक ।।

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।।