Aadhyatmik:- हिन्दू धर्म मे शिवलिंग का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना गया है इसे शिव का प्रतीक मानकर पूजा जाता है हिन्दू बड़े ही श्रद्धा भाव से शिवलिंग की पूजा करते हैं और इसका सम्मान करते हैं। लेकिन कई लोग शिवलिंग को लेकर तरह तरह के सवाल करते हैं और यह जानना चाहते हैं कि आखिर शिवलिंग का अर्थ क्या है। वह तर्क देते हैं की पुरुष लिंग का प्रतीक है पुरुष स्त्रीलिंग का प्रतीक है स्त्री नपुंसक लिंग का प्रतीक है नपुंसक तो शिवलिंग का प्रतीक क्या है। तो आइए जानते हैं शिवलिंग का क्या अर्थ है और इसके पीछे क्या कहानी है।
शिवलिंग का अर्थ:-
शिवलिंग को शिव का प्रतीक माना जाता है। शून्य आकाश ब्रह्मांड पाताल निराकार शिव का प्रतीक चिन्ह होने के कारण शिवलिंग हिन्दू धर्म मे महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शिवलिंग के संदर्भ में स्कंद पुराण में कहा गया है कि शिवलिंग घूमती धरती की तथा सारे ब्रह्मांड की घुरी का लिंग है। यह भगवान शिव का निराकार स्वरूप है।
शिवलिंग का कई लोग गलत अर्थ निकालते हैं इसके पीछे अमुख कारण यह है कि वास्तविक धर्मिक ग्रन्थों को कुछ धर्म विरोधियों द्वारा नष्ट कर दिया गया है जिसके चलते लोगो को निराकार शिवलिंग का वास्तविक मूल नहीं पता है और वह इसका गलत अर्थ निकालकर लोगो को अधूरी जानकारी देते हैं।
अगर हम शिवलिंग के संदर्भ में लिंग का अर्थ समझें तो इसका अर्थ है चिन्ह, संकेत , गुण, निशानी , व्यवहार या प्रतीक। धरती शिवलिंग का पीठ या आधार कहा जाता है यह शून्य अनन्त लय का प्रतीक है जिस कारण इसे लिंग कहा जाता है। शिवलिंग को अन्य कई नाम जैसे अग्नि स्तम्भ, ब्रह्मांडीय स्तम्भ या स्तम्भ लिंग के नाम से जाना जाता है।
सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विख्यात है कि मनुष्य का शरीर ऊर्जा और पदार्थ से निर्मित है यही मनुष्य के शरीर को गति प्रदान करता है उसी प्रकार शिव पदार्थ और ऊर्जा का केंद्र है जो इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड को बनाए हैं और शिवलिंग इस ब्रह्मांड की आकृति है। शिवलिंग स्त्री और पुरुष का सम्मिलित रूप है यह इस बात का व्याख्यान करता है कि इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में किसी एक का वर्चस्व नहीं है यहां स्त्री और पुरुष दोनों का सम्मान सम्मान होना चाहिए और प्रकृति निर्माण में दोनो की बराबर की हिस्सदारी है।
पौराणिक कथाओं में क्या है शिवलिंग की मान्यता:-
पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार शिव और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया इनके बीच के विवाद ने देवलोक में उथल पुथल मचा दी जब विवाद को शान्त करने के लिए कोई मार्ग नहीं दिखा तो एक दिव्य लिंग प्रकट किया गया। इस ज्योतिर्लिंग को ढूंढते वक्त ब्रह्मा और विष्णु को शिव के दिव्य अलौकिक परमब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ और शिवलिंग को शालीग्राम के रूप में पूजा जाने लगा।