हमारे धार्मिक ग्रन्थ में कहा गया है कि यदि आप अपने मन को साध लेते हैं तो आप चाहे कोई भी जीवन व्यतीत करें आपको मोक्ष की प्राप्ति हो सकती हैं। कहा जाता है आप वानप्रस्थी हैं या संन्यासी, आपको मोक्ष मिल जाएगा। लेकिन वास्तव में यह सिर्फ एक मनोस्थिति है। क्योंकि यह आवश्यक नहीं की मोक्ष के लिए आप सन्यासी हो।
अगर आप सोचते हैं कि मैं गृहस्थ हूं और वो संन्यासी है। वास्तव में यह एक विचार है जो आपका पीछा करता है। यदि आप गृहस्थ धर्म त्याग कर संन्यासी बन जाएं और जंगल में चले भी जाएं तो भी यदि आपने मन को नहीं साधा है तो यह जंगल में भी आपको गृहस्थ बनाए रखेगा।
आपका मन आपके अहंकार का स्रोत है। वही तय करता है कि आप बाहर से भले कुछ हों, अंदर कैसे विचार रखेंगे! ऐसे में मनुष्य का प्रयत्न होना चाहिए कि वह मन को साध ले। कोई मनुष्य भले ही संसार का त्याग कर संन्यासी बन जाए, फिर भी यदि विचार नहीं बदला तो जंगल भी घर हो जाएगा, जबकि यदि विचार बदल गया तो घर में रहकर भी संन्यास की साधना की जा सकती है।
वास्तव में सच्चाई यह है कि वातावरण के परिवर्तन से क्षणिक सहयोग मिल सकता है, लेकिन यदि आपके मन में चलने वाले विचार नहीं बदले, मन का अवरोध नहीं टूटा तो चाहें घर पर हों या जंगल में, कभी भी सच्ची साधना नहीं हो सकती।