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Bhagwat Geeta:- आज के समय मे भोजन तो हर कोई करता है लेकिन आजकल की भीड़ भाड़ और जल्दबाजी की दुनिया मे सभी के भोजन करने के नियम खूब बदल गए हैं अब कोई भी सुचारू तरीके से भोजन नहीं करता है और न भोजन करने के विशेष नियमो को जानता है। वास्तव में भोजन हमेशा शास्त्रों में दिए गए नियमो के मुताबिक करना चाहिए और अगर आप इस प्रकार से भोजन नहीं करते हैं तो आपको उससे कई प्रकार की हानि होती। हिंदुओ के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक ग्रन्थ भगवत गीता में भोजन करने के विशेष नियम बताए गए हैं। 

भगवत गीता के 13 वें अध्याय के 8 , 9 व 10 वें श्लोक में भोजन करने के विशेष नियमो का उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि एक व्यक्ति को भोजन करते वक़्त इन सभी नियमों की विधि को ध्यान में रखना चाहिए और उसी के आधार पर भोजन करना चाहिए जब आप ऐसा करते हैं तो यह आपके जीवन को एक दिशा देता है और आपका शरीर स्वस्थ रहता है।

भोजन को लेकर गीता के दिए गए श्लोक:-

आयुः,सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।

रस्याः स्निग्धाःस्थिरा हृद्याआहाराः सात्त्विकप्रियाः।।8।।

इस श्लोक में बताया गया है जो भोजन सात्त्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल स्वास्थ्य,सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है। ऐसा भोजन रसमय,स्निग्ध,स्वास्थ्यप्रद तथा हृदय को भाने वाला होता है।

कट्वम्लवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।

आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।। 9।।

इस श्लोक के मुताबिक अत्यधिक तिक्त, खट्टे, नमकीन, गरम, चटपटे, शुष्क तथा जलन उत्पन्न करने वाले भोजन रजो गुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं। ऐसे भोजन दुःख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले हैं।

यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।

उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।। 10।।

इस श्लोक के अनुसार खाने से तीन घण्टे पूर्व पकाया गया, स्वादहीन, वियोजित एवं सड़ा, जूठा तथा अस्पृस्य वस्तुओं से युक्त भोजन उन लोगों को प्रिय होता है, जो तामसी होते हैं।