डेस्क। स्वस्तिक कोई आकृति नहीं यह एक तंत्र है। जिस प्रकार ओम को सर्वश्रेष्ठ मंत्र के रूप में जाना जाता है। वैसे की स्वस्तिक भी सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला सबसे शक्तिशाली तंत्र हैं। इसकी महानता और विशेषता काफी अधिक है। वैसे तो स्वास्तिक दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ का अर्थ ‘होना’ होता है। अर्थात् स्वास्तिक का शाब्दिक अर्थ ‘शुभ होना’, ‘कल्याण हो’ आदि है।
स्वास्तिक का प्रयोग हर शुभ कार्य में विशेष रूप से किया जाता है। कहते है सुख, समृद्धि, शांति, धन, विद्या सबकुछ पाने में स्वस्तिक विशेष भूमिका रखता है।
इसे भगवान गणेश का प्रतीक भी माना जाता है। इसी लिए इसे ज्यादातर प्रवेश द्वार पर बनाया जाता है। तिजोरी और पैसे रखने की जगह पर भी इसे बनाया जाता है। स्वास्तिक को सतिया के नाम से भी जाना जाता है। वास्तु शास्त्र में भी घर के मुख्य द्वार पर स्वस्तिक बनाने को मंगलकारी बताया जाता है।
मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाते समय इन बातों का रखें ख्याल-
घर के प्रवेश द्वार पर हमेशा सिंदूर का ही स्वास्तिक बनाएं। बता दें कि सिंदूर से बना स्वस्तिक घर में सुख-समृद्धि का मार्ग खोलता है।
स्वास्तिक बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि दरवाजे पर धूल और मिट्टी न हो।
स्वस्तिक बनाने के बाद इस बात का ध्यान रखें कि उसके आसपास जूते या चप्पल न रखें जाएं।
इसके आकार का भी ध्यान रखें क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वास्तु दोषों को खत्म करने के लिए स्वस्तिक को केवल नौ अंगुल लंबा और चौड़ा ही बनाए।
बता दें कि अगर आपके घर के सामने कोई पेड़ या खंभा है तो यह नकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है है। इसके दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए प्रतिदिन मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाएं।
मुख्य द्वार पर बने स्वस्तिक के चारों ओर पीपल, आम या फिर अशोक के पत्तों की माला बनाकर बांध दें।
कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि अगर आप स्वस्तिक बनाकर ऐसे ही गंदा होने के लिए छोड़ देंगे या फिर आप गलती से स्वस्तिक को उल्टा बना देते हैं तो यह नकारात्मक ऊर्जा को आपके घर की ओर आकर्षित करेगा जो आपकी जान भी ले सकती है।