सनातन परंपरा में गुरु पूर्णिमा का पवित्र पर्व उन सभी आध्यात्मिक गुरुओं को समर्पित है जिन्होंने कर्म योग के सिद्धांत के अनुसार स्वयं व अपने शिष्यों के साथ ही सदैव संपूर्ण जगत के कल्याण की ही कामना की। गुरु पूर्णिमा का पर्व भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायी बड़े ही उत्साह व हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। यह पर्व अपने आध्यात्मिक गुरुओं के सम्मान और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने का एक दुर्लभ क्षण है । हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा को ही ‘गुरु पूर्णिमा’ कहा जाता है । हिन्दू परम्परा के अनुसार ‘गुरु पूर्णिमा’ का पर्व वेदों के रचयिता ‘महर्षि वेदव्यास’ के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है इसलिए इसका एक प्रचलित नाम ‘व्यास पूर्णिमा’ भी है ।
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है,प्रायः इसी दिन से ‘चातुर्मास’ या ‘चौमासा’ का भी प्रारंभ माना जाता है,इस वर्ष चातुर्मास 20 जुलाई से प्रारंभ हुआ है । चातुर्मास को ऋतुओं का संधिकाल भी कहा जाता है इस दिन से चार माह तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं क्योंकि इन चार महीनों में न ही अधिक गर्मी और न ही अधिक सर्दी होती है अतः ये माह अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गये हैं जिस प्रकार सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में गुरु का दुर्लभ लक्षण भी बताया गया है जिसके अनुसार ‘गु’ का अर्थ है- अंधकार या मूल अज्ञान और ‘रु’ का अर्थ है- उसका निरोधक अर्थात नष्ट करने वाला ।
अर्थात जो मनुष्य को अज्ञान से ज्ञान की प्राप्ति की ओर ले जाये उसे ही ‘गुरु’ कहा जाता है ।
“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवे नमः”
सनातन परम्परा में गुरु को ईश्वर से भी उच्च स्थान प्राप्त है इसीलिए कहा गया है –
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
श्रीरामचरितमानस के रचयिता और परम श्रीराम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी नें श्रीरामचरितमानस को सद्गुरु की उपाधि दी है और श्रीरामचरित मानस के सात कांडों को सद्गुरु के सात लक्षण बताया है I गोस्वामी जी ने हमें हर कांड के माध्यम से ये बताने व समझाने का दुर्लभ प्रयत्न किया है कि एक सच्चे गुरु में कौन कौन से दिव्य लक्षण होने चाहिये,अतः हम श्रीरामचरितमानस के सातो कांड के माध्यम से सदगुरु के उन सात दिव्य लक्षणों को समझने का प्रयास करते हैं –
१- बालकाण्ड – बाल अर्थात बालक अर्थात निर्मल व शुद्ध ह्रदय I द्वेष,जलन,छल,कपट,राग-वैराग्य,झूँठ-पाखंड,ऊँच-नीच से मुक्त ह्रदय Iये सद्गुरु का पहला लक्षण है I
२- अयोध्या कांड – यह अध्याय श्रीरामचरितमानस के सभी पात्रों के त्याग का विलक्षण उदाहरण है इस अध्याय में महाराजा दशरथ,भगवान श्रीराम,माता सीता जी,लक्ष्मण जी,कौशल्या जी,भरत जी,समस्त अयोध्यावासियों व अन्य सभी लोगों के द्वारा जो त्याग किया गया है उसकी महिमा अपरम्पार है I यह है सद्गुरु का दूसरा लक्षण अर्थात त्याग भावना I
३- अरण्यकांड- इस अध्याय में प्रभुश्रीराम अपने रथ को त्याग कर अपने पिता को दिए वनवास के वचन को निभाने हेतु पैदल यात्रा करते हुए बिना किसी जातिगत भेदभाव के सभी वर्णों के लोगों के यहाँ गए जैसे निषादराज गुह,केवट,भारद्वाज ऋषि, महर्षि वाल्मीकि,अत्रिमुनि,सती अनुसूया,शबरी इत्यादि I यह अध्याय हमें सिखाता है कि सद्गुरु वो है जो निरंतर गतिशील रहे उसके ह्रदय में जाति,पंथ व पद का कोई भी भेद ना हो फिर चाहे उसका शिष्य किसी राजा का पुत्र हो या सामान्य दास पुत्र I
४- किष्किन्धा कांड- इस अध्याय में प्रभुश्रीराम ने वानरराज सुग्रीव को अपना सखा बना कर उसका खोया हुआ राजसिंहासन पुनः वापस दिलाया है I यही सद्गुरु के लक्षण हैं कि वो अपने शिष्य से मित्रवत व्यवहार रखकर सफलतापूर्वक उसका मार्गदर्शन करते हुए उसको धर्म व सदमार्ग के रास्ते पर लेकर जाये I भगवतगीता में भगवान ने कभी भी अर्जुन को शिष्य न कहकर अपना “सखा” ही कहा है, हे अर्जुन तुम मेरे “सखा” हो I
५- सुन्दरकाण्ड – सम्पूर्ण श्रीरामचरितमानस में “सुन्दरकाण्ड” ही एक ऐसा अध्याय है जिसकी इस कलिकाल में सबसे अधिक महत्ता है I “सुन्दरकाण्ड” में महाबली हनुमान जी के द्वारा लंका-दहन किया गया है ! पूज्य संतों द्वारा लंका-दहन का तात्पर्य यह बताया गया है कि हमारे जीवन में जो काम-क्रोध-मद-लोभ नामक चार विकार हैं उनका पूर्णतया दहन कर देना I जो गुरु साधक के इन चार विकारों का सफलतापूर्वक दहन करवा दे वही सच्चा सदगुरु है I
६- लंकाकांड – इस अध्याय में लंकापति रावण का वध प्रभुश्रीराम ने उसकी नाभि में बाण मारकर किया इसका अर्थ ये है कि जो गुरु शिष्य के मनरुपी नाभि के विकारों को छेद दे और मोहरूपी रावण का वध कर दे वही सच्चा सद्गुरु है I
७- उत्तरकाण्ड – उत्तर अर्थात समाधान अर्थात निष्कर्ष I शिष्य के मन-मस्तिष्क में उठ रहे प्रत्येक प्रश्न का समुचित उत्तर देकर उसका समुचित समाधान करना ही सद्गुरु का सातवां व अंतिम लक्षण व कर्तव्य है I
इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस के सातों अध्याय के माध्यम से ‘सद्गुरु’ के सात लक्षणों को परिभाषित किया गया है I हिन्दू मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा का पर्व हमें अंधकार से प्रकाश अर्थात अज्ञान से ज्ञान के मार्ग पर प्रशस्त करने का एक सुगम व सरल मार्ग दिखाता है I
लेखक-पं. अनुराग मिश्र ‘अनु’
स्वतंत्र पत्रकार व आध्यात्मिक लेखक