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क्‍या होता है मांगलिक दोष ? कैसे प्रभावित करता है ये आपके जीवन को

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ज्योतिषाचार्य सुमित तिवारी

मांगलिक के विषय में आईये जानते है सुप्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य सुमित तिवारी जी से अधिकांश लोग मांगलिक दोष का अभिप्राय ‘मंगला’ या ‘मंगली’ होने से ही लगा लेते हैं। ऐसा समझा जाता है कि किसी भी कुंडली में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल की उपस्थिति जातक को मंगला या मंगली बना देती है और यह भी मान लिया जाता है कि उस कुंडली से संबंधित लड़के या लड़की का दांपत्‍य जीवन अति कष्टपूर्ण होगा। पर, वस्तुतः ऐसा होता नहीं है और यदि हम कुछ और बारीकियों में जाएं तो पाएंगे कि दिनभर में जन्म लेने वाले 60 फीसदी से अधिक लोग या तो मंगला होते हैं या मंगली। लेकिन क्या इतने सारे लोगों का वैवाहिक जीवन असफल होता है? शायद नहीं।

 

अगर हम थोड़ी और गहराई में जाएं तो पाएंगे कि सिर्फ मंगल ग्रह के कारण मांगलिक दोष नहीं उत्पन्न होते हैं, बल्कि इस दोष में शनि, सूर्य, राहु एवं केतु का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। मंगली दोष का विचार सिर्फ लग्न से करने पर परिणाम हमेशा सही नहीं आते और यह विचार करने का उचित तरीका भी नहीं है। इस योग का विचार लग्न के साथ साथ चंद्र एवं शुक्र से भी करना जरूरी है। लग्न से बनने वाले दोष कम प्रभावी होते हैं, चंद्रमा से कुछ ज्यादा और शुक्र से पूर्ण प्रभावी होते हैं, इसी प्रकार शास्त्रों में पाप ग्रहों में मंगल, शनि, सूर्य, राहु एवं केतु उत्तरोत्तर कम पापी माने गए हैं।

इसलिए यह कहा जा सकता है कि मंगल, शनि, सूर्य राहु एवं केतु इन ग्रहों से बनने वाले योगों का प्रभाव उत्तरोत्तर कम होता जाता है। गहन अध्ययन एवं अनुसंधान के बाद यह पाया गया कि सप्तम, लग्न या चतुर्थ स्थानों पर उपर्युक्त ग्रहों से विशेषकर मंगल एवं शनि से बनने वाला योग दांपत्‍य जीवन को प्रभावित करता है और शेष स्थिति में बनने वाले योग का बहुत कम या तात्कालिक प्रभाव पड़ता है। मांगलिक दोष का विचार कुंडली में स्थित ग्रहों और राशि की स्थितियों के आधार पर भी करके निर्णय लेना चाहिए।

मांगलिक दोष के परिहार :-

1.मंगली दोष स्वतः समाप्त हो जाता है, जब मंगली योगकारक ग्रह अपने स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या उच्च राशि में हो।

2.सप्तमेश या शुक्र बलवान हो तथा सप्तम भाव इनसे युत दृष्ट हो तो उस कुंडली में मंगल दोष स्वतः समाप्त हो जाता है।

3.वर या कन्या में से किसी एक की कुंडली में मंगली दोष हो और दूसरे की कुंडली में शनि यदि लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो दोष स्वतः समाप्त हो जाता है।

4.बलवान गुरु या शुक्र के लग्न के होने पर या सप्तम में होने पर एवं मंगल के निर्बल होने पर मंगली दोष समाप्त हो जाता है।

5.मेष लग्नस्थ मंगल, वृश्चिक राशि में चतुर्थ भावस्थ मंगल वृष राशि मे सप्तम भावस्थ मंगल कुंभ राशि अष्टम भावस्थ मंगल तथा धनु राशि में व्यय भावस्थ मंगल दोष उत्पन्न नहीं करते।

6.मंगल शुक्र की राशि में स्थित हो तथा सप्तमेश बलवान होकर केंद्र – त्रिकोण में हो तो मंगली दोष प्रभावहीन हो जाता है।

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