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आध्यात्मिक:- माँ कात्यायनी की पूजा उपासना का हिन्दू धर्म सर्वर्धिक महत्व है। कात्यायनी माता दुर्गा के नौ रूपों में छठे स्वरूप के रूप में पूज्य हैं। माता ने यह रूप अपने भक्त ऋषि कात्यायन के लिए धारण किया था। देवी भागवत पुराण में ऐसी कथा मिलती है कि, ऋषि कात्यायन मां आदिशक्ति के परम भक्त थे। इनकी इच्छा थी कि देवी उनकी पुत्री के रूप में उनके घर पधारें। इसके लिए ऋषि कात्यायन ने वर्षों कठोर तपस्या की।

इनके तप से प्रसन्न होकर देवी इनकी पुत्री रूप में प्रकट हुई।कात्यायन की पुत्री होने के कारण माता कात्यायनी कहलायीं। सबसे पहले इनकी पूजा स्वयं महर्षि कात्यायन ने की थी।तीन दिनों तक ऋषि की पूजा स्वीकार करने के बाद देवी ने ऋषि से विदा लिया और महिषासुर को युद्ध में ललकार कर उसका अंत कर दिया इसलिए इन्हें महिषासुर मर्दनी के नाम से भी जाना जाता है।
देवी कात्यायनी को ब्रजभूमि की अधिष्ठात्री देवी के रूप में भी जाना जाता है। ब्रजभूमि की कन्याओं ने श्रीकृष्ण के प्रेम को पाने के लिए इनकी आराधना की थी। भगवान श्रीकृष्ण ने भी देवी कात्यायनी की पूजा की थी। देवी कात्यायनी को मधुयुक्त पान अत्यंत प्रिय है। इन्हें प्रसाद रूप में फल और मिठाई के साथ शहद युक्त पान अर्पित करना चाहिए।
माता का प्रभाव कुंडलिनी चक्र के आज्ञा चक्र पर है। नवग्रहों में माता कात्यायनी शुक्र को नियंत्रित करती हैं। इनकी साधना और भक्ति से वैवाहिक जीवन के सुख की प्राप्ति होती है। जिनके विवाह में बाधा आ रही हो उनके विवाह की बाधा माता कात्यायनी दूर करती हैं।
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनी॥‘ इस मंत्र से देवी का ध्यान करके नवरात्र के छठे दिन देवी की पूजा करनी चाहिए।