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हरिद्वार। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा में नागा संन्यासियों की सबसे अधिक संख्या है। इस अखाड़े के नागा साधु जब शाही स्नान के लिए बढ़ते हैं तो मेले में पूरी दुनिया से आए श्रद्धालु इस दृश्य को देखने के लिए लालायित रहते हैं। हरिद्वार में इसकी स्थापना विक्रम संवत 1202 में हुई थी। इस समय अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज और अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरी हैं। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के आचार्य स्वामी परमात्मानंद ने 1921 में काशी में टेढ़ीनीम और कनखल में मृत्युंजय आश्रम की स्थापना की थी। जूना अखाड़े की परंपरा अनुसार अखाड़े का संचालन 17 सदस्यीय कमेटी करती है। अखाड़े के ईष्ट देव भगवान दत्तात्रेय हैं। मां मायादेवी मंदिर, आनंद भैरव मंदिर, श्री हरिहर महादेव पारद शिवलिंग महादेव मंदिर इसी अखाड़े के अधीन है।

हरिद्वार में यह अखाड़ा काफी प्राचीन है। तमाम ऐतिहासिक और धार्मिक पुस्तकों में भी इसका वर्णन मिलता है। अखाड़े के नियम बेहद कठोर हैं और अखाड़ा इन्हें लेकर अनुशासन प्रिय है। नियमों का पालन ना करने वाले साधुओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। इस समय अखाड़े में पांच लाख से अधिक साधु संन्यासी हैं, जिसमें सबसे अधिक संख्या नागा संन्यासियों की है। अखाड़े में इस वक्त 120 से अधिक महामंडलेश्वर हैं। जिनकी शोभा यात्र कुंभ मेले की शान होती है और उसे भव्यता और दिव्यता प्रदान करती है।

किन्नरों को अपने छत्र तले दी जगह

जूना अखाड़ा समाज सुधार को काफी काम करता है। अखाड़े ने उच्चतम न्यायालय की ओर से थर्ड जेंडर के रूप में किन्नरों को मान्यता दिए जाने के बाद उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से किन्नर अखाड़ा को अपने अखाड़े में ना सिर्फ जगह दी, बल्कि उन्हें अपने साथ धर्म ध्वजा लगाने और शाही स्नान करने का भी मौका दिया।

जूना के साथ स्नान करता है अग्नि और आह्वान अखाड़ा

हरिद्वार कुंभ में श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़ा के साथ अग्नि और आह्वान अखाड़ा भी अपनी पेशवाई निकालता है और शाही स्नान भी उसी के साथ करता है। हरिद्वार कुंभ में महाशिवरात्रि स्नान करने के क्रम में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा ने सबसे पहले स्नान किया था। जिसमें उसके साथ अग्नि और आह्वान अखाड़े के संत महात्माओं ने स्नान किया और किन्नर अखाड़ा के सदस्यों ने भी उनके साथ स्नान किया।

कर्णप्रयाग में हुई थी स्थापना

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा की स्थापना संवत 1202 (वर्ष-1145) कार्तिक सुदी 10 मंगलवार के दिन देवभूमि उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में सुंदर गिरी महाराज, दलपत गिरी महाराज, लक्ष्मण गिरि महाराज, रघुनाथ गिरी महाराज, बैकुंठ गिरी महाराज, शंकर पुरी महाराज अवधूत, वेणी पुरी अवधूत, स्वामी दयावन, स्वामी रघुनाथ वन, स्वामी प्रयाग भारती और स्वामी नीलकंठ भारती ने सामूहिक रूप से की थी। इसे श्री पंचायती दशनाम जूनादत्त अखाड़ा या भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इनका मुख्यालय केंद्र वाराणसी में बड़ा हनुमान घाट पर है।