मानिला : कुमाऊं की बारदोली यानी वीरों की भूमि सल्ट में क्रांति की ज्वाला सन 1921 से ही धधक रही थी। 1930 में महात्मा गांधी के आह्वान पर यहां के क्रांतिकारियों ने ब्रितानी हुकूमत को लगान देना बंद तो किया ही गोरों के खिलाफ जो जंग का ऐलान किया उसकी गूंज नैनीताल कमिश्नरी से होकर दिल्ली तक जा पहुंची। देश के तमाम राज्यों सल्ट के वीरों की हुंकार ने स्वतंत्रता सेनानियों खासकर युवा क्रांतिवीरों का जगाने का काम किया ।
स्वतंत्रता आंदोलन दबाने के लिए तत्कालीन पाली पछाऊं परगना (रानीखेत) के एसडीएम जॉनसन ने निहत्थे क्रांतिवीरों पर पहले लाठीचार्ज फिर दो बार गोलियां बरसाने का फरमान दिया। कई क्रांतिकारी शहीद हुए, मगर आजादी के आंदोलन की धार पैनी होती गई। कुली बेगार प्रथा के खात्मे को कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे, हरगोविंद पंत व विक्टर मोहन जोशी की अगुआई में युवा क्रांतिकारियों को ब्रितानी हुकुमत के खिलाफ तैयार किया जा रहा था।
आजादी के दीवानों की फौज खड़ी करने में सल्ट के पं. पुरुषोत्तम उपाध्याय व लक्ष्मण ङ्क्षसह अधिकारी की बड़ी भूमिका रही। सन 1930 में पं. पुरुषोत्तम, लक्ष्मण सिंह व पं. हरगोविंद पंत ने महात्मा गांधी के फरमान पर लगान बंदी, जंगलात सत्याग्रह व सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिये सल्ट से गोरों के खिलाफ बिगुल फूंक ब्रितानी हुकूमत की चूलें हिला दीं।
तब बापू ने छुड़वाए थे सत्याग्रही
सल्ट क्षेत्र से लगान मिलना बंद हुआ तो बौखलाए इलाकाई हाकिम अब्दुल रहमान ने लगभग सौ पुलिस कर्मियों के साथ तल्ली पोखरी में अचानक घुसपैठ कर दी। लूटपाट भी की। क्रांतिकारी पं. पुरुषोत्तम उपाध्याय व उनके कई साथियों को पाली पछाऊं पगना मुख्यालय (रानीखेत) ले गए। वहां से अल्मोड़ा जेल भेजे गए। वहीं जंगलात सत्याग्रह में मोहान पर बैठे निहत्थे सत्याग्रहियों पर लाठीचार्ज कर जुल्म ढाया। कुमाऊं यात्रा के दौरान 1931 में जब गांधीजी सल्ट पहुंचे तो उन्होंने इसे कुमाऊं की बारदोली नाम दिया। गांधी इरविन समझौते के बाद हालांकि सभी सत्याग्रहियों को रिहा कर दिया गया। मगर गोरों के खिलाफ सल्ट में आंदोलन की ङ्क्षचगारी सुलगती रही।
पहले गोलीकांड में हीरामणि व हरिकृष्ण शहीद
नौ अगस्त 1942 को गांधीजी के आह्वान पर अंग्रेजो भारत छोड़ो व करो या मरो प्रस्ताव पारित होने के बाद सल्ट में संदेश पहुंचते ही खुमाड़ व देघाट (वर्तमान स्याल्दे ब्लॉक) में क्रांति की च्वाला भड़क उठी। रानीखेत के तत्कालीन परगनाधिकारी जॉनसन के नेतृत्व में पहुंची अंग्रेज पुलिस ने 19 अगस्त को देघाट पटवारी चौकी में क्रांतिवीरों को कैद कर लिया। भनक लगने पर क्रांतिकारियों ने चौकी घेर दी। जान पर आफत देख जॉनसन ने निहत्थे स्वतंत्रता सेनानियों पर गोलियां बरसाने का हुक्म दे दिया। क्रांतिकारी हरिकृष्ण उप्रेती व हीरामणि बडोला शहीद हो गए। पांच सितंबर को सल्ट के खुमाड़ में क्रांतिवीर जुटे। आंदोलन की रणनीति बनाई जा रही थी। किसी मुखबिर की सूचना पर एसडीएम जॉनसन 200 सशस्त्र पुलिस र्किमयों को लेकर रानीखेत से भिकियासैंण से चौकोट और देघाट के रास्ते खुमाड़ की ओर बढ़ा।
दूसरे विद्रोह में दो सगे भाइयों समेत चार क्रांतिवीर शहीद
क्रांतिकारियों ने ब्रितानी पुलिस को रास्ते में ही रोक दिया। जबर्दस्त विरोध के बीच अंग्रेजो भारत छोड़ो के नारे गूंजने लगे। जॉनसन ने फिर गोलियां चलवा दीं। क्रांतिकारी सगे भाई गंगाराम व खीमराम शहीद हुए। गोली लगने से घायल चूड़ामणी व बहादुर ङ्क्षसह भी चार दिन तक ङ्क्षजदगी की जंग लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। भयंकर जनाक्रोश के बीच जॉनसन मय पुलिस बल बैरंग लौट गया। मगर कुमाऊं की इस बारदोली की क्रांति की गूंज नैनीताल कमिश्नरी से होकर दिल्ली तक सुनाई दी थी। तब महात्मा गांधी ने भी कहा था कि बारदोली के क्रांतिकारियों की शहादत बेकार नहीं जाने दी जाएगी।