जांजगीर-चांपा। जिले में गांवों की कमान 329 महिला सरपंच संभाल रही हैं। इतना ही नहीं जिले की 657 पंचायतों में 4600 से अधिक महिला पंच ग्राम विकास के निर्णय लेने में सहभागिता निभा रही हैं। जनपद व जिला पंचायतों में भी आधी आबादी ने अपना लोहा मनवाया है। 25 सदस्यीय जिला पंचायत में अध्यक्ष सहित 13 महिला सदस्य हैं। ये जिले के विकास की बातें जनपद व जिला पंचायत के माध्यम से सरकार तक पहुंचाती हैं और सरकार के सामने लोगों की समस्याएं भी दमदारी से रखती हैं।
राज्य सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत राज में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया है। इससे वे न केवल अधिकारों के प्रति सजग हुई हैं, बल्कि उनकी सोच का दायरा भी बढ़ा है। चूल्हा, चौका से आगे बढ़कर महिलाओं ने चौपाल, जनपद व जिला पंचायत तक अपना परचम फहराया है। जिले के 657 ग्राम पंचायतों में से 329 में महिला सरपंच काबिज हैं। इसी तरह लगभग 278 पंचायतों में महिला उप सरपंच अपनी भूमिका निभा रही हैं। जिले के सभी पंचायतों के 9884 वार्डों में से 4943 वार्डों में विभिन्न आयु व वर्ग की महिलाएं सदस्य हैं। ये ग्राम विकास के महत्वपूर्ण पैᆬसले लेने में भूमिका अदा करती हैं। इसी तरह 9 जनपदों में 209 में 105 महिला सदस्य हैं, वहीं 25 सदस्यीय जिला पंचायत में 13 महिलाएं सदस्य हैं, शिक्षा और समाज के विकास से लोगों की सोच में अंतर आया है और महिलाएं दहलीज लांघकर कृषि, उद्योग, प्रशासन, खेल, राजनीति, कला, संस्कृति शिक्षा सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। महिलाओं में शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ा है।
नवागढ़ में प्रीति देवी सिंह, अकलतरा में शिवानी सुशांत सिंह, बलौदा में नम्रता कन्हैया राठौर, बम्हनीडीह में आशा साहू, जैजैपुर में कुलदीप चंद्रा, मालखरौदा में लकेश्वरी देवा लहरे, डभरा में पत्रिका दयाल सोनी जनपद अध्यक्ष है। 9 में से सिपर्ᆬ दो ब्लाकों में सक्ती और पामगढ़ में ही पुरूष अध्यक्ष है।
विधानसभा व नगरीय निकायों में भी भागीदारी
पामगढ़ विधानसभा क्षेत्र की विधायक इंदू देवी बंजारे हैं। इसी तरह चार नगरपालिकाओं में से दो नगरपालिका सक्ती में सुषमा जायसवाल व अकलतरा में शांति देवी भारते अध्यक्ष हैं। और 11 नगर पंचायतों में से 6 नगर पंचायतों में शिवरीनारायण में अंजनी तिवारी, राहौद में सत्या राजेन्द्र गुप्ता, बाराद्वार में रेशमा विजय सूर्यवंशी, बलौदा में ललिता पाटले सहित अन्य दो नगर पंचायत में महिला अध्यक्ष है जबकि जिले में कुल 15 नगरीय निकाय हैं।
कप्तान से एसडीएम तक महिलाएं
राजनीति के अलावा प्रशासन में भी महिलाओं का दबदबा है। जिले में एसपी पारूल माथुर हैं। वहीं जिला वनमंडला अधिकारी प्रेमलता यादव तथा जिला उपभोक्ता आयोग अध्यक्ष की जिम्मेदारी तजेश्वरी देवांगन निभा रही हैं। एडीएम लीना कोसम, एसडीएम मेनका प्रधान हैं। इसके अलावा महिला एवं बाल विकास विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी प्रीति खोखर चखियार व जिला योजना एवं सांख्यिकी अधिकारी पायल पाण्डेय, डीएसपी के पद पर पद्मश्री तंवर, दिनेश्वरी नंद सहित विभिन्न विभागों में भी महिलाएं अपना लोहा मनवा रही हैं।
खेती व मछलीपालन से आत्मनिर्भर बनी बसंती
पᆬोटो : 7 जानपी 1 – बसंती बाई
जांजगीर-चांपा (नईदुनिया न्यूज)। उम्र के जिस पड़ाव में बसंती हैं उस पड़ाव पर कई महिलाएं अपने घरों में आराम से रहती है, लेकिन वे उन महिलाओं में से हैं, जो कुछ अलग करने का जज्बा रखती हैं। 68 वर्षीय बसंती को यही जज्बा उन्हें अन्य महिलाओं से अलग बनाती है। वे जानती हैं कि महिलाएं समाज की आधार होती हैं। इस उम्र में वे खेती बाड़ी के साथ मछली पालन कर आत्मनिर्भर हुई हैं।
पामगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत हिर्री की रहने वाली बसंती बाई बताती हैं कि 6 साल पहले उनके पति नारायण प्रसाद खन्नाा की मृत्यु होने पर परिवार का भार उनके ऊपर आ गया था। 3 बेटों की जिम्मेदारी के साथ ही उन्हें अपनी खेती-किसानी भी देखनी थी। उन्होंने हौंसला बनाए रखा और अपने परिवार के साथ आत्मविश्वास के साथ खड़ी रही। यही शक्ति थी कि उन्होंने अपने खेतों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के माध्यम से निजी डबरी निर्माण कराने की ठानी। निजी डबरी निर्माण में उनके परिवार ने भी कार्य किया। कार्य को लेकर उनके परिवार की एकता थी कि जल्द ही उनके खेत में निजी डबरी का निर्माण हो गया। जिसके एक ओर उन्हें मनरेगा से मजदूरी प्राप्त हुई तो दूसरी ओर बारिश का पानी संरक्षित करने के लिए निजी डबरी बन गई। बसंती बाई कहती हैं कि खेत बिना पानी के ही खाली पड़े रहते थे तो उनके मन में एक अजीब सी टीस बनी रहती थी, पर कहते है कि जहां चाह होती है वहीं पर राह बन जाती है। उन्होंने भी अपनी राह को बनाया और महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से हितग्राहीमूलक कार्य निजी डबरी को अपने खेत में वर्ष 2018 में पूर्ण कराया। पहली ही बारिश में डबरी में पानी भर गया, जिससे उन्होंने साल भर अपने खेतों में धान की फसल को पानी दिया। इसके साथ ही उन्होंने डबरी के किनारे सब्जी-बाड़ी एवं डबरी में मछली पालन का काम शुरू किया। उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा उन्हें आर्थिक मजबूती के रूप से मिला। आज सालाना वे 50 से 60 हजार रूपए की अतिरिक्त आय अर्जित कर रही हैं, जिससे उनके परिवार का पालन-पोषण बेहतर हो रहा है।