नई दिल्ली। उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने की वजह से आई तबाही के बाद राज्य और केंद्र सरकार मिलकर वहां पर युद्ध स्तर पर राहत कार्य को अंजाम देने में जुटी हैं। इस बीच हिमालय भू-विज्ञान संस्थान ने अपनी एक रिपोर्ट में इस तबाही की वजह ग्लेशिययर का टूटना नहीं माना है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी एक बड़ी वजह इस क्षेत्र में ऊंचाई पर आया एक एवलांच था, जिसकी वजह से ग्लेशियर टूटा और रौंगथी गदेरे में एक झील बन गई। बाद में अत्यधिक दबाव की वजह से ये झील टूट गई और इस क्षेत्र में तबाही देखने को मिली। आपको बता दें कि वाडिया संस्थान हिमालयी अध्ययन का विशेषज्ञ संस्थान है।
इस संस्थान में ग्लेशियर एक्सपर्ट के डॉक्टर संतोष राय ने दैनिक जागरण से बात करते हुए बताया कि इस तरह की घटनाएं वहां पर पहले भी होती रही हैं। पहले इस पूरे क्षेत्र में जनसंख्या न के ही बराबर थी, इसलिए इसकी खबरें या तो सामने नहीं आती थी या फिर इनको नजरअंदाज कर दिया जाता था। हालांकि, अब पिछले कुछ समय से यहां पर लोगों की संख्या काफी बढ़ी है, जिसके चलते इस तरह के हादसों में हताहत होने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ी है। उन्होंने बताया कि संस्थान की टीम उस क्षेत्र में गई है, जहां से इस हादसे की शुरुआत हुई थी। ये टीम कल तक वापस आएगी जिसके बाद वहां के ताजा हालात सामने आएंगे। इन हालातों के विश्लेषण के बाद आगे रिपोर्ट सामने रखी जाएगी।
डॉक्टर राय से ये पूछे जाने पर कि क्या हिमालय के क्षेत्र में होने वाले बांध निर्माण इसकी वजह हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि रैणी तपोवन पावर प्रोजेक्ट इस हादसे की उत्पत्ति वाली जगह से काफी दूरी पर है। इसलिए इस प्रोजेक्ट का इस तबाही से फिलहाल कोई संबंध दिखाई नहीं देता है। उन्होंने ये भी बताया कि संस्थान की तरफ से समय-समय पर शोध और रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। ऐसे में जिस किसी को इस क्षेत्र में हो रही भौगोलिक गतिविधियों की जानकारी चाहिए होती है तो वो वहां से ले लेता है। यदि किसी प्रोजेक्ट के बारे में उनसे पूछा जाता है तब भी उन्हें इसको लेकर उचित सलाह दी जाती है।,
उनके मुताबिक इस तरह के प्रोजेक्ट के दौरान यदि कुछ पैसा इसकी रिसर्च और डेवलेमेंट की मद के लिए रखा जाए तो काफी बेहतर हो सकता है। इस मद को वहां पर नए इक्यूपमेंट लगाने में खर्च किया जाना चाहिए, जिससे वहां की सटीक जानकारी उपलब्ध हो सके। उनका कहना है कि फिलहाल हिमालयी इलाकों में होने वाले शोध का काफी अभाव पाया जाता है। जहां तक ग्लेशियर का टूटने का सवाल है तो ये एक प्राकृतिक घटना है। लेकिन लगातार शोध के जरिए हम आने वाले खतरे को भांपते हुए भविष्य में होने वाले नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं।