भोपाल । मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित विश्व धरोहर भीमबैठका एक बार भी फिर चर्चा में है। बीते साल यहां भ्रमण करने पहुंचे अंतरराष्ट्रीय भू विज्ञानियों की नजर एक जीवाश्म पर पड़ी तो उन्होंने इसकी तस्वीर लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परीक्षण किया। पता चला कि यह जीवाश्म पृथ्वी के पहले जीव का है। हाल ही में गोंडवाना शोध पत्रिका में इसका प्रकाशन हुआ।
अंतरराष्ट्रीय भू विज्ञानी दल का नेतृत्व करने वाले नागपुर स्थित भारतीय भूविज्ञान सर्वेक्षण विभाग (जीएसआइ) के निदेशक रंजीत खंगार ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय 36वीं भूविज्ञान कांग्रेस मप्र की राजधानी भोपाल के नजदीक विश्व धरोहर भीमबैठका में आयोजित होनी थी जो कि स्थगित हो गई। अंतरराष्ट्रीय भूविज्ञानियों के दल के साथ वे 25 फरवरी से 25 मार्च 2020 में भीमबैठका का भ्रमण करने गए थे। इस दल में वे स्वयं व उनके साथी समन्वयक मेराजुद्दीन तथा डेव नकर्सन (कनाडा), ग्रेगरी रिटालैक (अमेरिका), इयान राइन, पामेला चेस्टर (न्यूजीलैंड) व शरद मास्टर (दक्षिण अफ्रीका) शामिल थे। सभी ने मप्र में सांची और भीमबैठका की यात्र की थी।
ऑस्ट्रेलिया में मिला था 5410 लाख वर्ष पुराना जीवाश्म
भीमबैठका में मिला यह जीवाश्म पृथ्वी के सबसे प्राचीन जानवर डिकिनसोनिया का होने की पुष्टि दक्षिण आस्ट्रेलिया में इसी जानवर के 5410 लाख वर्ष पुराने जीवाश्म से मिलान करने पर हुई है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भीमबैठका में मौजूद डिकिनसोनिया का जीवाश्म विश्व का सबसे पुराना है।
जीवाश्म का आकार है 17 इंच
यह जीवाश्म जमीन से 11 फीट ऊंची सभागारनुमा गुफा की छत पर मौजूद है। जीवाश्म की आकृति पत्ते की तरह है जो 17 इंच तक दिखाई दे रही है जो कि 4 फीट तक हो सकती है।
वसा से बना पृथ्वी का पहला प्राणी
विशाल पत्ते या टेबल जितने बड़े अंगुलियों के निशान की तरह नजर आने वाले यह जीवाश्म डिकिनसोनिया कहलाता है। विज्ञानियों का मानना है कि इसे जीवों की उत्पत्ति के दौर का पृथ्वी पर पैदा हुआ सबसे पहला ज्ञात प्राणी कहा जा सकता है। यह एक तरह की वसा यानी कोलेस्ट्रॉल जैसा है। हालांकि अभी भी इसकी कई गुत्थियां सुलझाना बाकी है।
55.8 करोड़ साल पहले बड़ी संख्या में थे मौजूद
इस संबंध में ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कूल ऑफ अर्थ साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर्स 75 साल से दुनिया में मिले जीवों की गुत्थियां सुलझाने में लगे हैं। उनके अनुसार 55.8 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर भारी संख्या में डिकिनसोनिया मौजूद थे।
आधुनिक जीवन शुरू होने के दो करोड़ साल पहले
यह जीव एडियाकारा बायोटा का हिस्सा है। बैक्टीरिया के दौर में यह जीव पृथ्वी पर थे। इसका मतलब यह कि आधुनिक जीवन शुरू होने के लगभग दो करोड़ साल पहले ये मौजूद थे। वैज्ञानिकों के लिए कार्बनिक पदार्थ से लैस डिकिनसोनिया जीवाश्मों को ढूंढना काफी मुश्किल काम रहा।
एक अवधारणा : ऑक्सीजन की कमी से हुआ
विज्ञानियों का मानना है कि मोबिलिटी पर जो विकासवादी प्रयोग चल रहा था वे गैबॉन जीवों के आने के बाद कुछ समय के लिए रुक गया होगा। संभव है कि ऐसा करीब 2.08 अरब साल पहले धरती के वायुमंडल में अचानक ऑक्सीजन की कमी आने की वजह से ऐसा हुआ हो।
ऑस्ट्रेलिया और रूस था घर
ऑस्ट्रेलिया में ऐसे बहुत से जीवों का पता चला था। उत्तर पश्चिम रूस में व्हाइट सी के पास एक टीले से मिला था। इस सुदूर इलाके में जहां अभी भालुओं और मच्छरों का घर है, वहीं टीले के ऊपर बड़ी मात्र में डिकिनसोनिया के जीवाश्म मिले थे।
खास पर्यावरणीय स्थितियों से उत्पन्न
विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ खास पर्यावरण की स्थितियों में 2.5 से 1.6 अरब साल पहले इन जीवों की उत्पत्ति हुई थी। उस समय जीव केवल बैक्टीरिया के रूप में ही नहीं थे, बल्कि जटिल जीव भी पैदा हुए थे।
सैंपल विशेष रूप से संरक्षित किया जाएगा
नागपुर के जीएसआइ निदेशक रंजीत खंगार ने कहा कि अभी सैंपल नहीं लिए गए हैं। सरकारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद नियमों के तहत सभी प्रक्रिया पूरी करेंगे। विभाग की ओर से सैंपल लेने संबंधी कार्य के साथ विशेष रूप से संरक्षित किया जाएगा।
विश्व संरक्षित धरोहर
भोपाल के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के विज्ञानी डॉ. टीकम तेनवार ने कहा कि भीमबैठका की गुफाएं और शैलचित्र विश्व संरक्षित धरोहर हैं। यहां पर हजारों लोग शोध के लिए आते हैं। लगातार शोध कार्य चल रहा है। डिकिनसोनिया के जिस जीवाश्म को यहां होना बताया गया है उसका भी पूरी तरह संरक्षण किया गया है।
पुरातत्व अवशेषों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार संरक्षित किया गया
रायसेन के कलेक्टर उमाशंकर भार्गव ने कहा कि भीमबैठका में मौजूद सभी पुरातत्व अवशेषों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार संरक्षित किया गया है। यहां 5700 लाख वर्ष पुराने जीवाश्म मिलने की बात सामने आई है ।
भीमबैठका क्षेत्र तार फेंसिंग से सुरक्षित किया गया
भीमबैठका के प्रभारी विजय शर्मा ने कहा कि संपूर्ण भीमबैठका क्षेत्र तार फेंसिंग से सुरक्षित किया गया है। प्राचीन धारोहरों को किसी तरह का नुकसान नहीं हो इसका ध्यान रखा जाता है। इसके संरक्षण में अंतरराष्ट्रीय दिशा निर्देशों का पालन किया जाता है।