नई दिल्ली। 72वें गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में किसानों आंदोलन की आड़ में जो हिंसा देखने को मिली उसकी वजह न सिर्फ ये आंदोलन ही शर्मसार हुआ बल्कि देश को भी शर्मसार होना पड़ा। गणतंत्र दिवस के इतिहास में ऐसा पहली बार देखा गया था। इस घटना के लिए हर एक दूसरे को जिम्मेदार बता रहा है। वहीं अब इस घटना के दो दिन बाद अधिकतर किसान दिल्ली के विभिन्न बॉर्डर से वापस घर जाना शुरू हो गए हैं। माना जा सकता है कि आने वाले एक दो दिनों में दिल्ली के बॉर्डर पहले की ही तरह शांत हो जाएंगे। हालांकि किसानों ने कहा है कि वो अपना आंदोलन तब तक जारी रखेंगे जब तक की सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं ले लेती है। जहां तक किसान आंदोलन की बात है तो आपको बता दें कि इस तरह के आंदोलन देश में कई बार हुए। लेकिन ज्यादातर आंदोलन हिंसा की वजह से ही अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सके।
1 मार्च 1987 में करमूखेड़ी आंदोलन की शुरुआत भारतीय किसान यूनियन ने शामली से की थी। इसी आंदोलन में महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के बड़े नेता के रूप में सामने आए थे। ये आंदोलन बिजली की बढ़ी हुई दरों के खिलाफ किया गया था। लेकिन आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में पुलिस का एक जवान शहीद हो गया था। आंदोलनकारी किसानों ने पुलिस की जीप और फायर ब्रिगेड की गाड़ी को आग लगा दी थी और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया था। जवाबी कार्रवाई में दो किसानों की मौत पुलिस की गोली लगने की वजह से हो गई थी। इस हिंसा के बाद ये आंदोलन खत्म हो गया। किसानों को आश्वासन के अलावा कुछ और नहीं मिला था।
27 जनवरी 1988 में किसानों ने मेरठ कमिश्नरी का करीब 24 दिनों तक घेराव किया था। इस धरना प्रदर्शन में कई बार उग्र घटना भी देखने को मिली थी। ठंड की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई थी। हालांकि इसके बाद भी यूपी सरकार ने किसानों से कोई बात नहीं की थी। इसके बाद कपूरपूर स्टेशन पर आंदोलनकारियों ने एक ट्रेन में आग लगा दी थी। इसके बाद जवाबी कार्रवाई में पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। इसका नतीजा ये हुआ कि किसानों ने अपना आंदोलन खत्म कर दिया था।
6 मार्च 1988 को किसानों का आंदोलन पुलिस द्वारा मारे मारे गए पांच किसानों के परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए शुरू हुआ था। महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में ये आंदोलन करीब 110 दिनों से अधिक समय तक चला था। उन्होंने जेल भरो का नारा भी दिया था। इसको भारतीय किसान यूनियन के झंडे तले किया गया सबसे बड़ा आंदोलन भी कहा जाता है। लेकिन ये आंदोलन भी अपना मकसद पूरा किए बिना ही खत्म हो गया था।
25 अक्टूबर 1988 को महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में जो आंदोलन किया उसमें लाखों किसानों ने हिस्सा लिया था। इन्होंने वोट क्लब को अपने कब्जे में ले लिया था। इसमें 14 राज्यों से किसान शामिल हुए थे। पुलिस ने वोट क्लब की घेराबंदी की तो आंदोलनकारियों की पुलिस से झड़प हो गई। इस झड़प में एक किसान की मौत हो गई थी। पुलिस ने बल प्रयोग करते हुए किसानों पर जबरदस्त लाठी चार्ज किया। इसके बाद टिकैत ने आंदोलन खत्म करने का एलान कर दिया था।
27 मई 1989 को अलीगढ़ में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ एकजुट हुए किसानों की पुलिस से झड़प हो गई थी। इसमें कुछ किसानों की मौत हो गई थी। इसके बाद भी कुछ दिनों तक ये धरना प्रदर्शन चला लेकिन फिर बाद में आंदोलनकारियों में इसको लेकर ही विवाद पैदा हो गया था, जिसके बाद इसको खत्म कर दिया गया।
2 अगस्त 1989 को महेंद्र सिंह टिकैत ने मुजफ्फरनगर के एक गांव की युवती के गायब होने के बाद इस आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने देश के सभी किसान नेताओं से वहां आने का आह्वान भी किया था। इस आंदोलन के 42 दिन बाद पहली बार राज्य के मंत्री आंदोलनकारियों के बीच पहुंचे और उनकी मांगों को मानने की घोषणा की थी। ये आंदोलन किसान आंदोलन के इतिहास में सबसे सफल माना जाता है।
1993 में लखनऊ के चिनहट में किसानों ने बिजलीघर का घेराव किया, जिसके बाद पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा था। इसमें दो किसानों की मौत हो गई थी। महेंद्र सिंह टिकैत खुद तीन दिनों तक बिजलीघर पर ही धरने पर बैठे हुए थे। सरकार ने मृतक के परिजनों को मुआवजे के तौर पर तीन-तीन लाख रुपये दिए थे। इसके अलावा किसानों के ट्रेक्टर के नुकसान की भी भरपाई की थी। इस आंदोलन ने भारतीय किसान यूनियन को न सिर्फ एक बड़ी पहचान दी बल्कि उसको उत्तर भारत का एक बड़ा संगठन भी बना दिया था।
14 अगस्त 2010 को अलीगढ़ के टप्पल कांड ने राज्य और केंद्र सरकार को हिलाकर रख दिया था। ये आंदोलन नोएडा की भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किया गया था। इस आंदोलन के उग्र होने के बाद जब पुलिस ने बल प्रयोग किया तो उसमें तीन किसानों की मौत हो गई थी। इसमें पीएसी के एक कंपनी कमांडर की भी मौत हो गई थी। इस घटना के तीन वर्ष बाद नए भूमि अधिग्रहण बिल को केंद्र ने मंजूरी दी थी। इसमें सर्किल रेट को बढ़ाने के साथ कुछ और भी प्रावधान किए गए थे।
23 सितंबर 2018 को किसानों ने दिल्ली की तरफ कूच किया। ये यात्रा करीब 2 अक्टूबर तक चली, लेकिन पुलिस द्वारा बॉर्डर से उन्हें दिल्ली में नहीं घुसने दिया गया। इसके बाद जबरदस्त हिंसा हुई। इसके बाद किसान नेताओं की केंद्रीय गृह मंत्री से बातचीत हुई और आंदोलन खत्म कर दिया गया। ये आंदोलन महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे नरेश टिकैत के नेतृत्व में हुआ था।