देहरादून। प्रदेश में जलविद्युत परियोजनाओं का भविष्य क्या है, इसे लेकर सरकार को एक बार फिर वैज्ञानिकों की अध्ययन रिपोर्ट का इंतजार है। केंद्र सरकार के निर्देश पर वैज्ञानिकों के दल इसका अध्ययन करने में जुटे हैं। चमोली जिले में ऋषिगंगा और धौलीगंगा में ग्लेशियर टूटने की वजह से आए उफान ने बड़ी तबाही मचाई। इसमें जान-माल का काफी नुकसान हुआ है। इस आपदा के बाद से एक बार फिर ये बहस जोर पकड़ चुकी है कि हिमालयी क्षेत्र में बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं नहीं बननी चाहिए। खासतौर पर पर्यावरणविद इन परियोजनाओं की मुखालफत करते रहे हैं। उनका कहना है कि हिमालय का पर्यावरण अत्यंत संवेदनशील है। लिहाजा इससे ज्यादा छेड़छाड़ करना कतई उचित नहीं है।
हालांकि, अब तक राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न समितियों की ओर से पूर्व में आई आपदा एवं जलविद्युत परियोजनाओं की भूमिका का अध्ययन किया गया, उसमें आपदा में इन परियोजनाओं की भूमिका नहीं पाई गई है। इसके उलट यह तथ्य सामने आए हैं कि इन परियोजनाओंओं के कारण बाढ़ के प्रभाव को कम करने में मदद मिली है। केंद्रीय ऊर्जा राज्यमंत्री आरके सिंह यह कह चुके हैं कि चमोली में आपदा की तबाही को रोकने में तपोवन में जलविद्युत परियोजना के बैराज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस बैराज ने लाखों टन मलबे को अपने में समेट लिया। यह मलबा आगे नदी में जाने की स्थिति में आपदा से होने वाली तबाही और बड़ी हो सकती थी। अब केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की नजरें चमोली में आई आपदा के कारणों की तह तक जाने वाले वैज्ञानिकों की अध्ययन रिपोर्ट पर टिकी हैं। वैज्ञानिकों का दल इस काम में जुट चुका है। यह दल अपनी अध्ययन रिपोर्ट दोनों ही सरकारों को सौंपेगा। प्रदेश सरकार भी इस रिपोर्ट की प्रतीक्षा कर रही है। ऊर्जा सचिव राधिका झा के मुताबिक अध्ययन रिपोर्ट से आपदा की वस्तुस्थिति को जानने में मदद मिलेगी।