आईआईटी से संन्यास तक: अभय सिंह की प्रेरणादायक यात्रा
क्या आप एक ऐसे इंजीनियर की कहानी जानना चाहेंगे जिसने करोड़ों के पैकेज और शानदार करियर को ठुकराकर संन्यास का मार्ग अपना लिया? यह कहानी है अभय सिंह की, एक आईआईटी मुंबई के ग्रेजुएट की, जिन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में 731वीं रैंक हासिल करने के बाद वैराग्य को चुना। अपनी असाधारण यात्रा में, अभय सिंह ने ज्ञान की खोज, आत्म-खोज, और जीवन के असली अर्थ की गहराई को समझा। आइए जानते हैं उनकी कहानी के रोमांचक पहलुओं के बारे में!
आईआईटी मुंबई से प्रयागराज के तट तक
हरियाणा के झज्जर के साधारण से परिवार से ताल्लुक रखने वाले अभय सिंह ने बचपन में IIT का नाम भी नहीं सुना था। उनके जीवन में एक नया मोड़ तब आया जब 12वीं कक्षा के बाद उन्होंने IIT में दाखिला लिया। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में उनके चयन ने परिवार को गर्व से भर दिया होगा, लेकिन अभय का मन दूसरी दिशा में था। उनका सवाल था – क्या यही जिंदगी है? क्या यही जीवन का मकसद है? उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद वो बड़े-बड़े कॉरपोरेट हाउस और लाखों के पैकेज को दरकिनार कर, अपनी आध्यात्मिक खोज के सफ़र पर निकल पड़े।
दर्शनशास्त्र का आकर्षण और आत्म-खोज की यात्रा
आईआईटी की पढ़ाई के दौरान, दर्शन शास्त्र अभय के जीवन में एक प्रकाश की किरण की तरह आया। पोस्ट मॉडर्निज़्म और एपिस्टेमोलॉजी ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया, आने वाले जीवन की घटनाएं जीवन के दरवाजे पर दस्तक देने लगीं। उनका जुनून इंजीनियरिंग से कुछ और ओर बढ़ गया. वे पढ़ाई के साथ ही आड़ी-तिरछी रेखाओं, डिजाइनिंग में भी रुचि रखते थे. आईआईटी में पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके सामने एक बड़ा सवाल था- जिंदगी में अब क्या करना है? दर्शन की किताबों में वो उत्तर ढूंढने लगे। टीचर से बहसें होने लगी- सर आप प्रैक्टिकल तो कुछ बताइए, लाइफ में जो यूज कर सकें। इस सवाल ने उनकी आत्म-खोज की यात्रा को नया आयाम दिया।
फैशन जगत से आध्यात्मिकता तक
अपनी रुचि के अनुरूप उन्होंने मास्टर इन डिजाइन (MDes) किया और कोचिंग संस्थानों में भौतिकी पढ़ाई। फिर उनके कॅरियर में एक नया मोड़ आया जब उन्होंने उत्तराखंड में फोटोग्राफी की और फैशन की प्रसिद्ध पत्रिकाओं जैसे वोग और GQ के लिए काम किया। फैशन फिल्मों में योगदान दिया, और विज्ञापनों के निर्देशन में भी हाथ आजमाया. इन कामों ने अभय को नाम, शोहरत और पैसा तो दिया, लेकिन उनका मन शांत नहीं हुआ।
आध्यात्मिकता का प्रकाश और वैराग्य का मार्ग
काम करते-करते उन्हें एहसास हुआ कि दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है. वे कई नौकरियों से ऊबने लगे और अंततः 2017 में गंभीर अवसाद से जूझने लगे। दोस्तों और अपने द्वारा किये जा रहे आध्यात्मिक साधनाओं की बदौलत उन्होंने खुद को इस स्थिति से बाहर निकाला। कनाडा जाने का निर्णय लिया। कठिन परीक्षा ILETS पास करने के बाद वो वहां गए लेकिन कोविड की वजह से उनकी जिंदगी और जटिल हो गई। इस दौरान उन्होंने मेडिटेशन करना शुरू कर दिया, और उनका मन आध्यात्मिकता में अधिक लगने लगा. 2021 में वह वापस भारत आ गए।