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डेस्क। माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी से ऋतुओं के राजा वसंत का आरंभ हो जाता है और यह दिन नवीन ऋतु के आगमन का सूचक भी है इसलिए इसे ऋतुराज वसंत के आगमन का प्रथम दिन भी माना जाता है। इसी समय से प्रकृति के सौंदर्य का निखार दिखने लगता है।
और वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नए-नए गुलाबी पल्लव मन को मुग्ध करते हैं। इस तिथि से रामजन्मभूमि में विराजमान रामलला के अलावा हनुमानगढ़ी समेत सभी मंदिरों में भगवान को अबीर-गुलाल चढ़ाने की परम्परा भी रही है। इसकी शुरुआत गुरुवार से होगी और होलिकोत्सव यानि कि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तदनुसार आठ मार्च तक यह चलेगी।
हनुमत संस्कृत महाविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य हरफूल शास्त्री ने यह बताया कि पंचमी तिथि बुधवार की सायं 5.58 बजे से शुरू होकर गुरुवार को सायं 4.17 बजे तक रहेगी। और उन्होंने बताया कि इसके चलते वसंत पंचमी गुरुवार को मनाया जाएगा। साथ ही इस अवसर पर वीणा वादिनी मां सरस्वती की जयंती भी मनाई जाएगी। 
साथ ही श्रीरामजन्मभूमि के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येन्द्र दास शास्त्री बताते हैं कि परमात्मा के मुखोल्लास व उनकी प्रसन्नता के लिए विधिपूर्वक पूजन का विधान भी है। पूजन के समय धूप, दीप, नैवेद्य के साथ गंध अर्पित करने की भी परम्परा है। साथ ही अबीर, चंदन, हल्दी, गुलाल व मेंहदी इन सभी को गंध माना गया है। इन गंधो में से अबीर को श्रेष्ठ गंध माना गया है। वहीं अबीर अभ्रक से प्राप्त होता है। इसे अभ्रक भस्म भी कहा जाता है। साथ ही भगवान की मूर्तियों पर अबीर चढ़ाने से मूर्तियां चमकती है और इससे भगवान के अंगों का तेज भी बढ़ता है। अबीर को पूजा में गुलाल के साथ सुगंधित द्रव्य व गंध के रूप में चढ़ाया जाता है। वहीं अबीर को चढ़ाकर तेजस्वी होने की प्रार्थना भी की जाती है।