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कुष्ठ रोग: एक भाई का प्यार और समाज का दर्द

कुष्ठ रोग: एक भाई का प्यार और समाज का दर्द

15 साल की उम्र में, जब मेरे हाथों में छाले जख्म बनने लगे, तो मेरे जीवन में एक ऐसा दौर शुरू हुआ जो समाज के कठोर सत्य को उजागर करता है। 'कोढ़' शब्द मेरे कानों में गूंजने लगा और मेरी दुनिया बदल गई। यह रोग से ज़्यादा समाज के डर और तिरस्कार का एक भयावह अनुभव था। मैं अकेला, बेबस और निराश था, लेकिन मेरे भाई की मौजूदगी मेरी एकमात्र सहारा बन गई।

एक भाई की रक्षा

मेरा भाई, एक तेजतर्रार और साहसी युवक, हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा। मेरे रोग के कारण, गांववालों की नज़रों में मैं कोढ़ी बन गया था। मेरे दोस्त भी मुझसे दूर होते जा रहे थे। पर, मेरे भाई ने मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा, मेरा साथ दिया, मेरा हौसला बढ़ाया। उनका साथ ही मुझे उस मुश्किल समय में जीने की ताकत देता था।

समाज का कटु सत्य: अस्वीकार और तिरस्कार

कुष्ठ रोग केवल एक बीमारी ही नहीं थी, बल्कि समाज द्वारा मेरे लिए तय की गई एक सज़ा भी थी। लोगों ने मुझे छुआ तक नहीं। हल लेने गया तो किसान ने मुझे कोढ़ी कहकर भगा दिया, ये घटना आज भी मेरे जेहन में ताज़ा है। ये शब्द मेरे दिल में एक गहरा जख्म बन गए। आंसुओं से भरे दिन, औरतों के दिलों को भी तरसा सकते हैं। इस रोग ने मेरा शरीर और मेरे रिश्ते सब कुछ खा गया, मेरे शरीर की बजाय लोगों ने मेरे दिल को छेद डाला।

दिल्ली की यात्रा और संघर्ष

पीलीभीत से लेकर आगरा और फिर दिल्ली, मैंने कुष्ठ रोग से लड़ते हुए कई अस्पतालों की चौखट देखी। कई बार घर से भागकर इलाज के लिए आया लेकिन हर जगह एक समान रवैया मिला। दिल्ली में कुष्ठ अस्पताल में रहने के बाद मैंने सीमापुरी में कुछ महीने बिताये। पर, लोगों का विरोध देखकर, कई जगहों पर बदलते हुए, अंततः मैं एक ऐसी जगह आकर रुका जहाँ मेरे जैसे दूसरे लोग रहते थे।

जीवन का नया अध्याय: काम, परिवार, और खुशी

कुष्ठ रोग से लड़ते हुए, मुझे जेल में काम मिला। बाद में, मैंने मस्जिद में अजान पढ़ने का काम शुरू किया। सरकार की पेंशन और मस्जिद से मिलने वाले पैसे से मेरा जीवन चलने लगा। एक मुलाकात के दौरान मेरी एक बड़ी मुलाकात बेवा से हुई, जिसे में बाद में शादी की। एक नए परिवार के साथ मेरा जीवन धीरे-धीरे एक बेहतर मुकाम पर पहुँचता गया।

एक नई शुरुआत

उसके बाद के मेरे जीवन में सुख-दुःख दोनों ही मिले। मेरी दूसरी शादी से मेरी ज़िंदगी में एक नया सवेरा आया। ये जीवन में कठिनाइयों से उबरने का एक अध्याय रहा। आज भी समाज में मुझे 'कोढ़ी' कहा जाता है। फिर भी, मैं आगे बढ़ रहा हूं और दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाने की कोशिश कर रहा हूं।

कुष्ठ रोग से जुड़ी गलतफ़हमियाँ

मुझे लगता है समाज को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि कुष्ठ रोग आजकल पूरी तरह ठीक हो सकता है। इस रोग को छूने से नहीं फैलता, अगर सही इलाज हो, तो ये रोगी पहले की तरह फिर से पूरी तरह स्वस्थ रह सकता है और फिर समाज में शामिल हो सकता है।

Take Away Points

  • कुष्ठ रोग एक ठीक होने वाला रोग है, इसे समाज के बहिष्कार की ज़रुरत नहीं।
  • समाज को कुष्ठ रोग से जुड़ी गलतफ़हमियों को दूर करने की ज़रूरत है।
  • हमारे जैसे लोगों को भी प्यार और अपनेपन की ज़रूरत है।
  • हमें मुख्यधारा का जीवन जीने का हक है।