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श्री विद्यासागर, एक तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड (TNHB) के इंजीनियर हैं, जो 100% श्रवण और वाक् विकलांग हैं। उन्हें तमिल भाषा परीक्षा पास न करने के कारण नौकरी से बर्खास्त किए जाने का खतरा था। यह परीक्षा लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा (viva voce) पर आधारित थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए, न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय की असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए, श्री विद्यासागर को इस भाषा परीक्षा से छूट देने का निर्देश दिया। यह निर्णय, विकलांग व्यक्तियों के प्रति समाज के रवैये पर गंभीर सवाल उठाता है और साथ ही उच्च न्यायालय द्वारा विकलांगों के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता को दर्शाता है। यह लेख इस मामले का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है और न्यायिक फैसले के महत्व को रेखांकित करता है।

उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय

विद्यासागर का संघर्ष और न्यायालय की भूमिका

श्री विद्यासागर, TNHB में तकनीकी सेल में कार्यरत हैं। 100% श्रवण और वाक् विकलांग होने के बावजूद, उन्होंने अंग्रेजी माध्यम से स्कूली शिक्षा पूरी की, 2003 में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की और 2014 में TNHB में नौकरी हासिल की। उनकी यह उपलब्धि अपने आप में उनके दृढ़ संकल्प और लगन का प्रमाण है। हालांकि, 9 जुलाई, 1996 के एक सरकारी आदेश के अनुसार, सरकारी कर्मचारियों को तमिल भाषा परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है, जिसमें कोई छूट नहीं दी जाती है। इस आदेश के चलते TNHB ने उन्हें चेतावनी दी कि यदि वे परीक्षा पास नहीं करते हैं तो उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा। यह बात ध्यान देने योग्य है कि श्रवण और वाक् विकलांग होने के कारण, श्री विद्यासागर के लिए मौखिक परीक्षा देना लगभग असंभव था। उच्च न्यायालय ने इस असामान्य स्थिति को समझते हुए, TNHB को श्री विद्यासागर को भाषा परीक्षा से छूट देने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति वेंकटेश का महत्वपूर्ण अवलोकन

न्यायमूर्ति वेंकटेश ने अपने निर्णय में कहा कि यह मामला समाज में विकलांग व्यक्तियों के साथ व्यवहार की दुर्दशा को दर्शाता है। उन्होंने श्री विद्यासागर की प्रशंसा करते हुए उनके संघर्ष और उपलब्धियों को सराहा। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि समाज को विकलांगों के प्रति अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा और उन्हें मुख्यधारा में शामिल करने के लिए सभी तरह के बाधाओं को दूर करना होगा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विकलांगों के सामने आने वाली चुनौतियाँ केवल शारीरिक बाधाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें गहरे रूढ़िवादिता, रूढ़िबद्ध धारणाएँ और गलतफहमियाँ भी शामिल हैं जो समाज के विभिन्न पहलुओं में व्याप्त हैं।

समाज में विकलांगों के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता

सामाजिक बाधाएँ और भेदभाव

न्यायालय ने यह भी स्वीकार किया कि विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँचने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इन बाधाओं को दूर करने के लिए समाज को अपने रवैये में बदलाव लाना होगा। शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक समान पहुँच सुनिश्चित करना, साथ ही विकलांग व्यक्तियों के लिए एक समावेशी वातावरण बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस निर्णय से उम्मीद की जाती है कि यह भेदभाव को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और समाज को विकलांगों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाएगा।

समावेशी समाज का निर्माण

विकलांग व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए, भौतिक सुगमता के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थागत और कानूनी बाधाओं को भी दूर करना आवश्यक है। यह एक ऐसा समावेशी समाज बनाने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है जहाँ सभी व्यक्तियों को समान अवसर और सम्मान प्राप्त हो। सरकार और नागरिक समाज दोनों को मिलकर ऐसा माहौल बनाने के लिए काम करना चाहिए जहाँ विकलांग व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के अपने अधिकारों और सम्मान के साथ जीवन जी सकें। शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाना, रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक स्थानों पर सुलभता सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण पहलु हैं।

संवैधानिक अधिकार और न्यायिक सक्रियता

अनुच्छेद 226 का महत्व

न्यायालय ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया। यह अनुच्छेद उच्च न्यायालय को किसी भी व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिए आवश्यक कार्यवाही करने की शक्ति प्रदान करता है। इस मामले में, उच्च न्यायालय ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए, श्री विद्यासागर को न्याय दिलाया और TNHB को उनका बर्खास्त नहीं करने का निर्देश दिया। यह दिखाता है कि कैसे न्यायपालिका विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

भविष्य की दिशा

इस निर्णय से न केवल श्री विद्यासागर को न्याय मिला है, बल्कि यह आने वाले समय के लिए एक महत्वपूर्ण प्रमाण भी है। यह विकलांग व्यक्तियों के लिए समानता और न्याय के प्रति न्यायपालिका के समर्पण को दर्शाता है। अब यह ज़रूरी है कि सरकारी और गैर-सरकारी संगठन मिलकर विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाने के लिए कार्य करें और एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहाँ सभी को समान अवसर और सम्मान मिले।

मुख्य बातें:

  • मद्रास उच्च न्यायालय ने 100% श्रवण और वाक् विकलांग इंजीनियर को तमिल भाषा परीक्षा से छूट दी।
  • यह निर्णय विकलांग व्यक्तियों के प्रति समाज के रवैये पर गंभीर सवाल उठाता है।
  • न्यायालय ने विकलांगों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया।
  • समावेशी समाज के निर्माण के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक, संस्थागत और कानूनी बाधाओं को दूर करना होगा।
  • यह निर्णय आने वाले समय के लिए विकलांग व्यक्तियों के लिए न्याय और समानता का प्रतीक है।