लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कोराना महामारी के बीच स्कूलों की फीस को लेकर अभिभावक और स्कूल प्रबंधक आमने-सामने हैं। अभिभावकों का आरोप है कि स्कूल जबरिया तीन-तीन महीने की फीस ले रहे हैं और न देने पर नाम काट रहे हैं। प्रदेश भर से ऐसी तमाम शिकायतें आने के बाद उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव आराधना शुक्ला की ओर से सभी जिलों के डीएम और डीआइओएस को निर्देश हैं कि वह यह सुनिश्चित करवाएं कि अगर कोई अभिभावक किन्हीं कारणों से स्कूल की फीस नहीं जमा कर पा रहा है तो उसके बच्चे का स्कूल से नाम न काटा जाए। ऐसे विद्यार्थियों को भी नियमित ऑनलाइन कक्षाएं पढ़ाई जाएं।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा विभाग की अपर मुख्य सचिव आराधना शुक्ला की ओर से जारी निर्देश में कहा गया कि अभिभावकों से मासिक आधार पर ही शुल्क लिया जाए और परिवहन शुल्क किसी कीमत पर न लिया जाए। अभिभावकों को यदि फीस देने में कठिनाई है तो उनसे प्रार्थना पत्र लेकर उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाए। ऐसे अभिभावकों से आसान किश्तों पर फीस लेने की व्यवस्था की जाए, क्योंकि लॉकडाउन के कारण तमाम अभिभावक आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं। कहा गया कि शुल्क से संबंधित मामले में यदि कोई भी पक्ष क्षुब्ध है तो वह उप्र स्वावित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियमन) 2018 के अंर्तगत गठित जिला शुल्क नियामक समिति के सामने अपना पक्ष रख सकता है।
इस तरह के आवेदनों पर जिला शुल्क नियामक कमेटी एक सप्ताह के अंदर निर्णय लेगी। वहीं ऐसे अभिभावक जो नियमित वेतन भोगी सरकारी या सार्वजनिक उपक्रम इत्यादि में कार्यरत हैं और निजी क्षेत्र के वह अभिभावक जो इनकम टैक्स देते हैं, उन्हें नियमित रूप से मासिक आधार पर स्कूल का शुल्क जमा करना होगा, क्योंकि स्कूल प्रबंधन को शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मियों को वेतन भी देना होता है।