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आगरा। राजस्थान के बहुचर्चित और भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह हत्याकांड में फैसले की घड़ी नजदीक आ गई है। राजा मानसिंह व दो अन्य लोगों की 21 फरवरी, 1985 को पुलिस मुठभेड़ में मृत्यु हो गई थी। इससे एक दिन पहले राजा ने 20 फरवरी,1985 को राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की डीग में सभा मंच व उनके हेलीकॉप्टर को जोगा की टक्कर से क्षतिग्रस्त कर दिया था। 35 साल पुराने इस मुकदमे में जिला एवं सत्र न्यायाधीश मंगलवार को फैसला सुना सकती हैै। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मुकदमे की सुनवाई मथुरा न्यायालय में की जा रही है। मुकदमे में 14 पुलिसकर्मी ट्रायल पर हैं।

घटना 20 फरवरी 1985 की है। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर डीग में राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए जनसभा करने आए थे। राजा मान सिंह डीग विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। जबकि उनके सामने कांग्रेस के ब्रजेंद्र सिंह प्रत्याशी थे। आरोप है कि कांग्रेस समर्थकों ने राजा मान सिंह के डीग स्थित किले पर लगा उनका झंडा उतारकर कांग्रेस का झंडा लगा दिया था। ये बात राजा मान सिंह को नागवार गुजरी। पुलिस एफआइआर के मुताबिक, राजा ने चौड़ा सभा मंच को जोगा जीप की टक्कर से तोड़ दिया था, इसके बाद सीएम के हेलीकॉप्टर को जोगा से टक्कर मारकर क्षतिग्रस्त कर दिया था।

अगले दिन 21 फरवरी को दोपहर में राजा मान सिंह और डीग के तत्कालीन डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी का अनाज मंडी में आमना-सामना हो गया था। यहां हुई फायरिंग में राजा मान सिंह, उनके साथी सुमेर सिंह और हरी सिंह की मौत हो गई थी। जिस वक्त राजा की मौत हुई, उनकी उम्र 64 वर्ष थी। घटना की रिपोर्ट राजा मान सिंह के दामाद विजय सिंह ने डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी और एसएचओ वीरेंद्र सिंह समेत अन्य के खिलाफ हत्या की धाराओं में दर्ज कराई थी। जबकि पुलिस ने इसे एनकाउंटर करार दिया था। एसएचओ वीरेंद्र सिंह ने राजा मान सिंह, विजय सिंह, सुमेर सिंह, हरी सिंह समेत उनके कई समर्थकों के खिलाफ डीग थाने में लिखाई रिपोर्ट थी। 22 फरवरी को राजा की अंत्येष्टि में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। इस मामले से सियासी बवाल हुआ, तो राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी। जयपुर सीबीआइ कोर्ट में 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। वादी ने सुप्रीम कोर्ट की शरण लेकर मुकदमे को राजस्थान से बाहर स्थानांतरित करने की मांग की। एक जनवरी, 1990 को सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा जिला एवं सत्र न्यायाधीश मथुरा स्थानांतरित कर दिया। इस मामले की पिछली सुनवाई मथुरा में जिला एवं सत्र न्यायाधीश साधना रानी ठाकुर की अदालत में 9 जुलाई को हुई थी, तब 21 जुलाई फैसले पर सुनवाई की तिथि निर्धारित की गई थी।

आज फैसले की तारीख

वादी पक्ष के अधिवक्ता नारायण सिंह व प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता नंदकिशोर उपमन्यु के मुताबिक राजा मान सिंह हत्याकांड को लेकर अदालत में बहस पूरी हो गई। अब अदालत ने भी 21 जुलाई को निर्णय देने की तारीख तय की है।

तो होगा खास संयोग

-21 फरवरी, 1985 को राजा मान सिंह की पुलिस मुठभेड़ में मृत्यु हुई थी। यदि मंगलवार को फैसला सुनाया जाता है तो यह भी 21 तारीख होगी। अंतर सिर्फ इतना होगा, वह फरवरी माह था, जबकि यह जुलाई माह है।

नंबर गेम

-20 फरवरी, 1985 को राजा मान सिंह ने जोगा से टक्कर मार सीएम के सभा मंच व हेलीकाप्टर को क्षतिग्रस्त कर दिया।

-21 फरवरी, 1985 को पुलिस मुठभेड़ में राजा मान सिंह व दो अन्य की मृत्यु हो गई।

-22 फरवरी, राजा मान सिंह के अंतिम संस्कार के वक्त आगजनी व तोडफ़ोड़ हुई। इसमें भी पुलिस फायङ्क्षरग में तीन लोगों की मृत्यु हुई।

-28 फरवरी 1985 को सीबीआइ जांच के लिए नोटीफिकेशन हो गया।

-17 जुलाई, 1985 को सीबीआइ ने जयपुर सीबीआइ कोर्ट में चार्जशीट पेश की।

-61 गवाह अब तक अभियोजन पक्ष की ओर से अदालत में पेश किए गए, जबकि 17 गवाह बचाव पक्ष ने अपनी ओर से अदालत में प्रस्तुत किए।

-1700 से अधिक तारीखें अब तक मुकदमे में पड़ चुकी हैैं।

ये बनाए गए आरोपित

डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी, एसएचओ डीग वीरेंद्र सिंह, चालक महेंद्र सिंह, कांस्टेबल नेकीराम, सुखराम, कुलदीप सिंह, आरएसी के हेड कांस्टेबल जीवाराम, भंवर सिंह, कांस्टेबल हरी सिंह, शेर सिंह, छत्तर सिंह, पदमाराम, जगमोहन, पुलिस लाइन के हेड कांस्टेबल हरी किशन, इंस्पेक्टर श्रीकांत, एसआइ रवि शेखर, कांस्टेबल गोविन्द प्रसाद, एएसआइ सीताराम।

इन आरोपितों का हो गया निधन

कांस्टेबल नेकीराम, कुलदीप और सीताराम। चालक महेंद्र सिंह हो चुके हैं आरोप मुक्त।

एक परिचय: राजा मान सिंह

भरतपुर रियासत के महाराज किशन सिंह के घर राजा मान सिंह का जन्म पांच दिसंबर, 1921 को हुआ था। इंग्लैंड में वर्ष 1928 से 1942 तक इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। दीपा उर्फ कृष्णेंद्र कौर उनकी तीन बेटियों में सबसे बड़ी हैं। 1946-1947 भरतपुर रियासत के मंत्री रहे थे। वर्ष 1947 में उन्होंने रियासत का झंडा उतारने का विरोध किया। 1952 में विधान सभा का पहला निर्दलीय चुनाव जीता। इसके बाद लगातार वह सात बार निर्दलीय विधायक चुने गए।