लखनऊ में 32 वर्षीय व्यापारी की पुलिस हिरासत में हुई मौत ने रविवार (27 अक्टूबर, 2024) को राज्य में आक्रोश फैला दिया। पीड़ित के परिवार और स्थानीय निवासियों ने उत्तर प्रदेश की राजधानी में कई मंत्रियों के घरों के पास स्थित विभूतिखंड मार्ग को अवरुद्ध कर दिया, न्याय और मुआवजे की मांग करते हुए। परिवार ने आरोप लगाया कि मोहित पाण्डेय के साथ शनिवार (26 अक्टूबर, 2024) की रात क्रूरतापूर्वक मारपीट की गई, जिससे उनकी मौत हो गई और पुलिस ने घटना को छिपाने के प्रयास में उन्हें यहां राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। घटना की जांच के साथ-साथ हिरासत में हुई मौतों की बढ़ती संख्या पर भी चिंता व्यक्त की जा रही है। यह घटना उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था और मानवाधिकारों की स्थिति पर सवाल उठाती है।
पुलिस हिरासत में मौत: मोहित पाण्डेय का मामला
परिवार का आरोप और घटनाक्रम
मोहित पाण्डेय की माँ, तपेश्वरी देवी ने आरोप लगाया कि 25 अक्टूबर को उनके बेटे और आदेश नाम के एक व्यक्ति के बीच मामूली विवाद हुआ था, जिसके बाद दोनों ने पुलिस को बुलाया था। पुलिस मोहित को चिन्हाट थाने ले गई। बाद में, जब मोहित का बड़ा भाई उनसे मिलने गया, तो पुलिस ने उसे भी कथित तौर पर नशे में होने का आरोप लगाते हुए हिरासत में ले लिया। आदेश को, उसके मामा के राजनीतिक नेता होने के कारण, जाने दिया गया। तपेश्वरी देवी के अनुसार, पुलिस ने दोनों बेटों को एक साथ बंद करने से पहले मोहित के साथ बुरी तरह से मारपीट की, जिससे उसकी मौत हो गई। उन्हें मोहित से मिलने की अनुमति नहीं दी गई और बाद में उसे लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया।
एफआईआर दर्ज और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
मोहित पाण्डेय की मौत के बाद, लखनऊ के चिन्हाट थाने के थानाध्यक्ष अश्विनी चतुर्वेदी और अन्य के खिलाफ हत्या और आपराधिक साज़िश के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। इस घटना ने विपक्षी दलों को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर निशाना साधने का मौका दिया। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस घटना को लेकर उत्तर प्रदेश में ‘जंगल राज’ का आरोप लगाया, जहाँ पुलिस क्रूरता का पर्याय बन गई है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राज्य में ‘पुलिस हिरासत’ का नाम बदलकर ‘यातना गृह’ करने का सुझाव दिया।
हिरासत में मौतें और उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था
बढ़ती घटनाएँ और चिंताएँ
मोहित पाण्डेय की मौत उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में हुई मौतों की बढ़ती संख्या का ताज़ा उदाहरण है। यह घटना राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है। ऐसे मामले समाज में भय और असुरक्षा का माहौल पैदा करते हैं, और लोगों का विश्वास न्यायिक प्रणाली से कम होता जाता है। ऐसे मामलों की निष्पक्ष और पारदर्शी जाँच होना अत्यंत आवश्यक है ताकि दोषियों को सजा मिले और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
मानवाधिकारों का उल्लंघन
पुलिस हिरासत में मौतें मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है। संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है, और पुलिस को अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। पुलिस की भूमिका कानून को बनाए रखना और अपराधियों को पकड़ना है, न कि निर्दोष नागरिकों को प्रताड़ित करना या मारना। ऐसी घटनाओं से लोगों में पुलिस के प्रति भरोसा कम होता है, जो कानून व्यवस्था के लिए हानिकारक है।
न्याय और पारदर्शिता की आवश्यकता
निष्पक्ष जाँच और कठोर कार्रवाई
मोहित पाण्डेय के मामले में निष्पक्ष और पारदर्शी जाँच ज़रूरी है। दोषियों को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। यह जांच सुनिश्चित करेगी की न्याय प्रक्रिया सही और निष्पक्ष ढंग से काम कर रही है। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा का मूलभूत हिस्सा है।
प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता
मोहित पाण्डेय की मौत केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं, बल्कि प्रणालीगत कमियों की निशानी है। पुलिस हिरासत में मौतों को रोकने के लिए प्रणालीगत सुधारों की ज़रूरत है। इसमें पुलिस की कार्यप्रणाली में बदलाव, अधिकारियों के प्रशिक्षण में सुधार, और पुलिस की कार्यवाही की निगरानी तंत्र मज़बूत करना शामिल है। यह भी महत्वपूर्ण है कि पुलिस को अपने काम करने के तरीके में जनता के प्रति उत्तरदायित्व की भावना होनी चाहिए।
निष्कर्ष
मोहित पाण्डेय की मौत उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में हुई मौतों की एक दर्दनाक कहानी है। इस घटना से न केवल पीड़ित के परिवार को अपूरणीय क्षति हुई है, बल्कि पूरे राज्य में भय और आक्रोश फैल गया है। न्याय के लिए परिवार और राज्य सरकार दोनों की तरफ से प्रभावी कार्रवाई ज़रूरी है। इसके साथ ही, पुलिस कार्यप्रणाली में व्यापक सुधार की तत्काल आवश्यकता है ताकि ऐसे दर्दनाक मौतों को भविष्य में रोका जा सके।
मुख्य बातें:
- लखनऊ में 32 वर्षीय व्यापारी मोहित पाण्डेय की पुलिस हिरासत में मौत हो गई।
- परिवार ने पुलिस द्वारा क्रूरतापूर्वक मारपीट करने का आरोप लगाया है।
- आरोपियों के खिलाफ हत्या और साज़िश का मामला दर्ज हुआ है।
- विपक्षी दलों ने उत्तर प्रदेश में ‘जंगल राज’ का आरोप लगाया है।
- पुलिस हिरासत में मौतों को रोकने के लिए प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है।